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इससे तो अच्छा था हम एलियन होते!

सच्‍चा भारतीय होने के नाते मुङो इस बात की हमेशा जिज्ञासा रहती है कि दूसरे देशों में हमारे देश की छवि कैसी है? दुनिया के दूसरे देश हम भारतीयों के बारे में क्या राय रखते हैं? भारत में होनेवाली अच्छी-बुरी घटनाओं को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया रहती है? इसलिए जब भी कोई बड़ी घटना होती […]

सच्‍चा भारतीय होने के नाते मुङो इस बात की हमेशा जिज्ञासा रहती है कि दूसरे देशों में हमारे देश की छवि कैसी है? दुनिया के दूसरे देश हम भारतीयों के बारे में क्या राय रखते हैं? भारत में होनेवाली अच्छी-बुरी घटनाओं को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया रहती है? इसलिए जब भी कोई बड़ी घटना होती है, तो मैं आदतन देश-दुनिया के अखबारों को इंटरनेट पर सर्च करके अवश्य देखता हूं. हाल में ही हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होकर लौटे हैं. न पक्ष में, न विपक्ष में.. पर कुछ कहना चाहता हूं-

एक राष्ट्र के रूप में भारत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अपने आप में स्वतंत्र ग्रह न होकर हम इसी धरती का हिस्सा हैं, जिसके चलते हमें बाकी राष्ट्रों से मेलमिलाप करना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय आयोजनों का हिस्सा बनना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय मापदंडों पर खरा उतरना पड़ता है. इस सबके चलते हम बेचैनी महसूस करते हैं. हमें लगता है कि हमारी निजता भंग हो रही है.

हमारे बेतरतीब होने को लेकर अगर कोई उंगली उठाता है, तो हमें लगता है कि वो ‘पर्सनल’ हो रहा है. हमारी हालत उस शराबी पति की तरह हो जाती है, जो कल तक घर में बीवी बच्चों को पीटता था और आज मोहल्ले में भी बेइज्जती करवा कर घर आया है. अब घर आने पर वो किस मुंह से कहे कि मोहल्ले वाले कितने गंदे हैं क्योंकि पति के हाथों रोज पिटने वाली उसकी बीवी तो अच्छे से जानती है कि मेरा पति कितना बड़ा देवता है. दुनिया देवता समान पति को घर में शर्मिदा कर देती है. उसके लिए ‘डिनायल मोड’ में रहना कठिन हो जाता है. और नाराजगी में वो घर बेच कर किसी निर्जन टापू पर चला जाता है. जहां वो ‘अपने तरीके’ से रहते हुए बीवी बच्चों को पीट सके और उसे शर्मिदा करने वाला कोई न हो. मगर राष्ट्रों के लिए इस तरह मूव करना आसान नहीं होता. होता तो एक राष्ट्र के रूप में हम भी किसी और ग्रह पर शिफ्ट कर जाते जहां हम अपने तरीके से जीते.

विकास नीतियों की आलोचना करते हुए जहां कोई रेटिंग एजेंसी हमारी क्र ेडिट रेटिंग न गिराती, सरकारी दखल पर इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी ओलिंपिक से बेदखल न करती, ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल जैसी संस्था हमें भ्रष्टतम देशों में न शुमार करती. एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकारों के हनन पर हमें न धिक्कारती. और अगर कोई उंगली उठाता तो हम उसे विपक्ष का षड्यंत्र बताते, अंतरराष्ट्रीय एनजीओ का दलाल बताते, संवैधानिक संस्थाओं पर शक करते और आम आदमी के विरोध करने पर उसे 66ए के तहत भावनाएं आहत करने का दोषी बता गिरफ्तार करवा देते. काश! हम एक स्वतंत्र ग्रह होते तो दुनिया से बेफिक्र , अपने ‘डिनायल मोड’ में जीते और खुश रहते. वैसे भी दुनिया का हिस्सा होते हुए दुनिया को एलियन लगने से अच्छा है, हम औपचारिक रूप से एलियन होते!

अखिलेश्वर पांडेय

प्रभात खबर, जमशेदपुर

apandey833@gmail.com

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