एक खबर जिसकी हत्या हुई!
जिस नयी अर्थव्यवस्था में हम जी रहे हैं, उसमें आत्महत्या की आशंका जिसकी सबसे ज्यादा है, इसमें सबसे पहला नाम वैसे लोगों का है, जो या तो निरक्षर हैं या फिर मुश्किल से माध्यमिक स्तर की शिक्षा पाये हैं. बात आत्महत्या से संबंधित खबरों की हो, तो अपने देश के अखबार आत्महत्या का सामाजिक आधार […]
जिस नयी अर्थव्यवस्था में हम जी रहे हैं, उसमें आत्महत्या की आशंका जिसकी सबसे ज्यादा है, इसमें सबसे पहला नाम वैसे लोगों का है, जो या तो निरक्षर हैं या फिर मुश्किल से माध्यमिक स्तर की शिक्षा पाये हैं.
बात आत्महत्या से संबंधित खबरों की हो, तो अपने देश के अखबार आत्महत्या का सामाजिक आधार खोजते हुए शादी-ब्याह तक पहुंचते हैं और यह बताते हैं कि भारत में आत्महत्या कुंवारों से ज्यादा शादीशुदा लोग कर रहे हैं. वर्षो से यही चलन जारी है. इस साल भी एक अखबार ने सुर्खी लगायी है कि ‘शादीशुदा लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा!’ और पाठकों को ज्ञान दिया है कि ‘देश में कुंवारों के मुकाबले विवाहितों में जान देने की प्रवृत्ति ज्यादा होना सीधे तौर पर बताता है कि बदलते सामाजिक-आर्थिक परिवेश में पति-पत्नी के बीच का आम भावनात्मक जुड़ाव पहले के मुकाबले कम हो गया है.’आत्महत्या विषयक इन समाचारों का स्नेत होता है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत नये आंकड़े. आत्महत्या की खबर को चटखदार दिखाने के लिए इन आंकड़ों का पाठ कुछ ऐसे किया जाता है कि ‘एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड’ रिपोर्ट की आत्मा ही बदल जाती है. समाचारों में आत्महत्या को शादीशुदा व कुंवारे पुरुषों के बीच होनेवाली कुश्ती के रूप में देखा जाता है और महीन संकेतों में बता दिया जाता है कि आत्महत्या करनेवालों में शादीशुदाओं की संख्या यदि ज्यादा है, तो इसकी वजह है स्त्रियां, क्योंकि वही पारिवारिक विघटन का आधार हैं.
हैरत कीजिए कि एनसीआरबी की रिपोर्ट किसी एक साल में देश में हुई आत्महत्याओं की संख्या बताते हुए जो तथ्य पेश करती है, उन्हें अगर ठीक से पढ़ा जाये, तो अखबारी व्याख्या से एकदम ही अलग एक तसवीर उभरती है. ऐसी तसवीर, जो बता सके कि आज के भारत में किन लोगों के लिए जीवन-निर्वाह करना सबसे कठिन साबित हो रहा है. ऐसे लोगों में एक है ‘हाऊसवाइफ’ यानी वह महिला जो काम तो दिन-रात करती है, लेकिन जिसके काम की ना तो अर्थव्यवस्था के भीतर गणना होती है, ना ही कोई भुगतान. इस माह आयी एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2013 में भारत में कुल एक लाख से ज्यादा (1,34,799) लोगों ने आत्महत्या कर जान गंवायी. इनमें महिलाओं की संख्या 44,256 थी और आत्महत्या की राह अपनानेवाली महिलाओं की इस संख्या में कुल 22,742 यानी 51.4 प्रतिशत महिलाएं हाऊसवाइफ थीं. आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों की संख्या का यह 16.9 प्रतिशत है. याद रहे कि यह आंकड़ा देश-स्तर का है. राज्य-स्तर पर भिन्नता बहुत ज्यादा है. मसलन, मध्य प्रदेश में आत्महत्या करनेवाले लोगों में 25.1 प्रतिशत महिलाएं हैं. गुजरात में 24.2 प्रतिशत हैं तो उत्तर प्रदेश में 22.1 प्रतिशत. इसमें यह जोड़ लें कि आत्महत्या करनेवाली महिलाओं में सर्वाधिक संख्या (97.1 प्रतिशत) वैसी आत्महत्याओं का है, जिनकी जड़ में रिपोर्ट के अनुसार ‘दहेज संबंधी विवाद’ हैं. अब आप खुद ही निष्कर्ष निकालिए कि आत्महत्या विषयक अखबारी समाचार सच्चाई बताने से कितने दूर या करीब हैं.
रिपोर्ट में दर्ज है कि जिस नयी अर्थव्यवस्था में हम जी रहे हैं, उसमें आत्महत्या की आशंका सबसे ज्यादा किसकी है. इसमें सबसे पहला नाम आता है वैसे लोगों का, जो या तो निरक्षर हैं या फिर मुश्किल से माध्यमिक स्तर की शिक्षा पाये हैं और इस कारण जिनकी दशा जीविका के मामले में खस्ताहाल है. रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में मात्र 3.3 प्रतिशत लोग स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त थे और मात्र 0.5 प्रतिशत लोग एमए स्तर की शिक्षा प्राप्त थे. जबकि आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में निरक्षर, प्राथमिक या फिर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त लोगों की कुल संख्या तकरीबन 65 प्रतिशत है.
इसी के अनुकूल, आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में सरकारी श्रेणी की नौकरी करनेवाले लोगों की संख्या 1.3 प्रतिशत है, पब्लिक सेक्टर यानी सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी करनेवाले लोगों की संख्या 1.9 प्रतिशत, प्राइवेट श्रेणी की नौकरी करनेवाले लोगों की संख्या 9.2 प्रतिशत, जबकि छात्रों की संख्या 6.2 प्रतिशत और बेरोजगारों की संख्या 7.2 प्रतिशत है. इस मामले में छात्रों और बेरोजगारों से भी ज्यादा दुर्भाग्य के मारे हैं वैसे लोग, जिन्हें जीविका ना तो निजी क्षेत्र में हासिल है ना ही सरकारी क्षेत्र में, बल्कि जो रोज की रोटी चलाने के लिए स्वरोजगार में लगे हैं. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करनेवाले कुल लोगों में स्वरोजगार में लगे लोगों की संख्या 38.0 प्रतिशत है, जिसमें 8.7 प्रतिशत लोग खेती-बाड़ी यानी किसान श्रेणी के हैं, जबकि 5.2 प्रतिशत लोग छोटे-मोटे व्यवसायी तथा 2.9 प्रतिशत लोग पेशेवर हैं. रिपोर्ट के आंकड़े स्पष्ट हैं कि भारत को नॉलेज इकोनॉमी में बदलने की कोशिश हर साल पहले से ज्यादा लोगों को आत्महत्या की तरफ ढकेल रही है, लेकिन आत्महत्या की खबर के तथ्य ऐसे पेश किये गये कि उनके भीतर बैठा बड़ा सच आंख खोलने से पहले ही मर गया.
चंदन श्रीवास्तव
एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस
chandanjnu1@gmail.com