रस्म अदायगी रह गयी है बजट की प्रस्तुति
पांच जुलाई को सुबह से लेकर देर शाम तक बजट की गूंज सुनाई देती रही. दूसरे दिन अखबारों ने हेडलाइन बनाया. इससे क्या हुआ? वही हुआ जो हर साल होता है. सत्तापक्ष और उसके समर्थक इसे इस सदी का बेहतरीन बजट बताते रहे हैं, तो वहीं विरोधी और आलोचक कहते हैं कि इसमें कुछ नहीं […]
पांच जुलाई को सुबह से लेकर देर शाम तक बजट की गूंज सुनाई देती रही. दूसरे दिन अखबारों ने हेडलाइन बनाया. इससे क्या हुआ? वही हुआ जो हर साल होता है. सत्तापक्ष और उसके समर्थक इसे इस सदी का बेहतरीन बजट बताते रहे हैं, तो वहीं विरोधी और आलोचक कहते हैं कि इसमें कुछ नहीं है.
बजट एक रस्म अदायगी बन कर रह गयी है. सरकार को जमा खर्च करने के लिए पहले से प्रावधान करने पड़ते हैं. वही किया जाता है. वरना वेतन भोगी को क्या मिला? व्यापारी वर्ग को क्या मिला? खेतिहर किसानों को क्या मिला? मिलता किसी को कुछ नहीं है.
सच में अगर बजट के जरिये स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, बिजली और आधारभूत संरचना के लिए सरकारों ने कुछ काम किया होता, तो आज हम पिछड़े नहीं कहलाते. वास्तविकता यह है कि अगर अगले आठ साल तक आठ फीसदी विकास दर होगा, तब जाकर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हम बना पायेंगे.
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर