लगभग हर शहर में अब अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम बन गये हैं. दोनों अलग-अलग जगहों पर बनाये गये हैं. ऐसे में सरकार से मेरी अपील है कि प्रत्येक शहर में अनाथाश्रम एवं वृद्धाश्रम को एक ही भवन अथवा परिसर में स्थापित किया जाए. इससे जहां कम मानव संसाधन और बजट से ही इनकी समुचित देखभाल व सेवा-सुश्रुषा संभव हो पायेगी, वहीं अनाथ बच्चे और अपने संतानों द्वारा उपेक्षित-तिरस्कृत वृद्धजन एक-दूसरे के पूरक बन सकेंगे.
वृद्धजनों को जहां पोते-पोतियों जैसे सदृश प्यारे-प्यारे खिलौने मिल जायेंगे और उनके एकाकीपन का दर्द बहुत हद तक दूर हो सकेगा. वहीं अनाथों को दादा-दादी-सा प्यार-दुलार मिल जायेगा. इससे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, शिष्टता, मनोरंजन सहित अन्य कई तरह से देखभाल होगी तथा मानवीय गुणों में बहुत बढ़िया परिणाम शीघ्र परिलक्षित होगा.
सुरजीत झा, गोड्डा