शमीम फैजी : एक प्रतिबद्ध व्यक्तित्व
केडी सिंह पूर्व राज्य सचिव, भाकपा (झारखंड) delhi@prabhatkhabar.in न्यू एज और हयात के संपादक शमीम फैजी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य थे. उनका निधन इसी पांच जुलाई की रात साढ़े ग्यारह बजे दिल्ली में हो गया. वह कैंसर से ग्रसित थे. उनका निधन एेसे वक्त में हुआ है, जब भारत […]
केडी सिंह
पूर्व राज्य सचिव, भाकपा (झारखंड)
delhi@prabhatkhabar.in
न्यू एज और हयात के संपादक शमीम फैजी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य थे. उनका निधन इसी पांच जुलाई की रात साढ़े ग्यारह बजे दिल्ली में हो गया. वह कैंसर से ग्रसित थे. उनका निधन एेसे वक्त में हुआ है, जब भारत को प्रगतिशील विद्वानों, लेखकों और पत्रकारों की सख्त जरूरत है. पत्रकारिता की जिम्मेदारियों के एतबार से देखते हैं, तो हम पाते हैं कि शमीम फैजी एक बड़े पत्रकार थे.
शमीम फैजी का लालन-पालन और उनकी शिक्षा नागपुर में हुई. नागपुर से प्रकाशित होनेवाला दैनिक अंग्रेजी अखबार ‘हितवाद’ में उप संपादक की हैसियत से 1965 में उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की.
उन्होंने उस अखबार को ख्याति दिलाने का भरपूर प्रयास किया. चूंकि उन्होंने जर्नलिज्म की शिक्षा प्राप्त की थी, इसलिए कई अखबारों में उन्हें जगह मिली. वह वाम विचार मार्क्सवाद से प्रभावित थे. इसलिए 1965 में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ले ली थी. आगे चल कर उनसे दिल्ली के अजय भवन में रह कर काम करने का आग्रह किया गया, जिसके चलते वह पार्टी का काम भी देखने लगे. शमीम पार्टी के 1979 में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और 1997 में राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य बन गये. वह अंतिम सांस तक इस दायित्व से बंधे रहे.
शमीम फैजी साहब हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के उद्भट विद्वान थे. भाषा पर उनका पूरा कमांड था. साल 1979 में कॉमरेड शमीम फैजी उर्दू में प्रकाशित होनेवाली पत्रिका ‘हयात’ के संपादक बन गये और बाद में भाकपा के मुखपत्र ‘न्यू एज’ के पूर्ण प्रभारी बने. आगे चल कर ‘न्यू एज’ का भी संपादन उन्होंने शुरू किया.
साल 1996 में उनको पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस (पीपीएच) का प्रबंध निदेशक बना दिया गया. वह जीवनपर्यंत इस पद पर बने रहे. उनकी देखरेख में कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन और प्रकाशन हुआ. एक पत्रकार के रूप में अपने दीर्घ जीवन में शमीम साहब उर्दू में प्रकाशित पत्रिका उमंग तथा सीएनएस, दैनिक पैट्रियाॅट और कम्युनिस्ट जायजा से भी जुड़े रहे थे.
शमीम फैजी साहब अपने जीवन में कई सांस्कृतिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे. उन्होंने इंडियंस पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगह पायी थी. साथ ही साथ प्रगतिशील लेखक संघ में भी उनकी भूमिका अनुकरणीय रही. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन किया. एक संपादक के रूप में दिल्ली में वह काफी चर्चित रहे.
दूसरे संगठन के लोग भी अपनी पुस्तकों के प्रकाशन के पहले उनसे भाषाई शुद्धि के लिए संपर्क करते थे. उन्होंने हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में कई तरह के पंपलेट एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज भी लिखे. खासकर भाकपा के महाधिवेशनों और अंतरराष्ट्रीय मामलों के दस्तावेज लिखना शमीम फैजी के ही जिम्मे था.
शमीम फैजी पार्टी के बड़े सिद्धांतकार थे. मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन के प्रति वह काफी सचेत थे. वह लोगों की बेहतरी के लिए धर्मांधता के दलदल से समाज को निकालना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने तंजीम-ए-इंसाफ में उपाध्यक्ष के रूप में काम किया. गौरतलब है कि इस संगठन में उन्होंने गैर मुसलिमों को भी जगह दी. वह देश की साझा सांस्कृतिक विरासत की मजबूती के लिए जीवनपर्यंत प्रयासरत रहे.
एक बार वह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट की समीक्षा के लिए झारखंड आये थे. कई इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने कहा था कि कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम डोमिनेटिंग फोर्स (समाज पर वर्चस्व रखनेवाली ताकत) है, लेकिन वह गरीबों के उत्थान में सतत सक्रिय नहीं है.
आज वाम आंदोलन को शमीम फैजी जैसे विद्वानों की कमी खलेगी. किसी भी रूप में पार्टी फिलवक्त उनकी भरपाई नहीं कर सकेगी. आज तो खासकर भारत की मुख्य भाषाओं हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पर पूरी तरह से अधिकार रखनेवाले साथी कम ही रह गये हैं.
एक ऐसे समय में जब दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता के केंद्र में हैं और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा में विश्वास रखनेवाले लोग मजाक का पात्र बनाये जा रहे हैं, तब शमीम साहब के विचार और संघर्ष हमारी स्मृतियों में बने रहेंंगे.
एक पत्रकार, लेखक, संपादक और विचारक के रूप में एक बड़ी हैसियत रखनेवाले शमीम फैजी को सलाम. उनकी कृतियां और जज्बात हम सबको साहस देते रहेंगे.