उत्तर प्रदेश में यमुना एक्सप्रेस-वे पर हुई हृदयविदारक बस दुर्घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर ऐसे हादसों को कैसे रोका जाए. पिछले महीने हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बस के खाई में गिर जाने से 44 लोगों की मौत हो गयी थी. दुर्घटना स्थल पर सड़क भी खराब थी और घुमावदार मोड़ पर अवरोधक भी नहीं लगा था.
चालकों की लापरवाही कई दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार है, परंतु विभिन्न जांच रिपोर्टों को देखें, तो सड़कों की कमजोर इंजीनियरिंग, लचर रख-रखाव और सूचनापटों की कमी भी जानलेवा साबित होती हैं. साल 2015 से 2017 के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, हर साल 11 हजार से अधिक लोग बस दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं.
हर तरह की सड़क दुर्घटनाओं का संज्ञान लें, तो 2017 में 1.47 लाख मौतें हुई थीं. हमारे देश के कई शहरों की आबादी भी इससे कम है. साल 2015 में भारत ने 2020 तक सड़क हादसों में होनेवाली मौतों की संख्या आधी करने के अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया था, लेकिन ऐसा होने की स्थिति दूर-दूर तक नहीं दिखायी देती है. किसी दुर्घटना की स्थिति में चालक को दोष देकर अन्य कारकों को दरकिनार कर दिया जाता है.
इस कारण समस्या पर गंभीरता से विचार नहीं हो पाता है. कुछ जांचों में सड़कों की गलत बनावट और प्रशासनिक खामियों को इंगित भी किया गया है, पर कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. जानकार लगातार कहते रहे हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी की तरह भारत में भी हर दुर्घटना की अनिवार्य वैज्ञानिक जांच करने का नियम बनना चाहिए.
ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि जिन राज्यों में सड़कों का नेटवर्क बड़ा है, वहां बस दुर्घटनाएं अधिक होती हैं. मोटर वाहन कानून में भी दुर्घटनाओं की जांच के लिए तंत्र बनाने का निर्देश है, पर अधिकतर राज्यों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. यह भी विडंबना ही है कि सड़क बनाने के नाम पर राजनीति होती है, पर सुरक्षा को लेकर कोई ठोस पहल या चर्चा नहीं होती है. पिछले साल सरकार ने दुर्घटना की जगहों पर कमियों को दूर करने के लिए 11 हजार करोड़ रुपये मंजूर किये थे, लेकिन हादसों की बड़ी संख्या को देखते हुए यह धन नाकाफी ही माना जायेगा.
लंबी दूरी की बसों में दो चालकों की व्यवस्था करने तथा उनकी सुस्ती दूर करने के उपायों के साथ चुंगी नाका पर उन्हें आगाह भी किया जाना चाहिए. विकास की गति के साथ ही सड़कों का भी लगातार विस्तार हो रहा है और वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है. लोगों के आवागमन में भी बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में सड़क बनाने के तकनीकी पहलुओं पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए.
खतरनाक मोड़ों और पुलों के दोनों तरफ अवरोधक लगाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए. जगह-जगह सूचना पट लगाना भी बहुत अहम है. इन उपायों से दुर्घटनाओं की भयावहता को कम किया जा सकता है और हजारों कीमती जानों की रक्षा की जा सकती है.