मैंने तुझे लाइक किया, तू भी मुझे कर!

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshkant@gmail.com फेसबुक गजब की दुनिया है. ‘गजब’ शब्द को लोग आजकल कुछ अच्छे अर्थ में इस्तेमाल करने लगे हैं. जैसे कोई फेसबुक पर अपनी कविता चिपकाये, जिसके कविता होने का पता उसके इस आग्रह से ही लग पाता हो कि मैं अपनी इस कविता पर आपका आशीर्वाद चाहता हूं, और कोई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 19, 2019 7:01 AM

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

फेसबुक गजब की दुनिया है. ‘गजब’ शब्द को लोग आजकल कुछ अच्छे अर्थ में इस्तेमाल करने लगे हैं. जैसे कोई फेसबुक पर अपनी कविता चिपकाये, जिसके कविता होने का पता उसके इस आग्रह से ही लग पाता हो कि मैं अपनी इस कविता पर आपका आशीर्वाद चाहता हूं, और कोई आशीर्वाद-स्वरूप ही कमेंट में लिख दे- गजब!

और कवि फिर इसके लिए उसका आभार व्यक्त करे. लेकिन मूल रूप में ‘गजब’ का अर्थ बिलकुल भी अच्छा नहीं है, जो कि आफत, अंधेर, जुल्म आदि होता है. कमेंट करनेवाला अगर इसी अर्थ में ‘गजब’ का इस्तेमाल कर रहा हो, तो बात अलग है, पर उस हालत में कवि उसका आभार व्यक्त करके गजब कर देता है.

फेसबुक का यह लोक इहलोक और परलोक के बीच कहीं पड़ता है और इसलिए इसे इहलोक की तर्ज पर ‘उहलोक’ कहा जा सकता है. कहने को इसे परलोक की तर्ज पर ‘अपरलोक’ भी कहा जा सकता है, पर उसमें ‘अपर’ को लेकर कुछ वैसी ही भ्रांति होने की संभावना है, जैसी नूरजहां के हाथ में दो के बजाय एक ही कबूतर देखकर जहांगीर को हो गयी थी- एक कबूतर देख हाथ में, पूछा, कहां अपर है? उसने कहा, अपर कैसा, वह उड़ गया सपर है.

फेसबुक पर लोग लाइक और कमेंट पाने के लिए गजब ढाते हैं. वे किसी की पोस्ट को लाइक करने का बदला फौरन अपनी पोस्ट लाइक किये जाने के रूप में चाहते हैं. ‘मैंने तुझे लाइक किया, तू भी मुझे कर’ ही उनकी जिंदगी का एकमात्र मोटो होता है.

उनमें से रोज कोई न कोई यह धमकी देता मिलता है कि मेरे मित्रों में से जो-जो लोग मेरी पोस्ट पर लाइक या कमेंट नहीं करते, मैं उन्हें अनफ्रेंड कर दूंगा. वे मित्र के केवल मित्र ही बने रहने के कायल नहीं होते, जैसे गालिब लहू के केवल रगों में दौड़ते फिरने के कायल नहीं थे.

बकौल गालिब, जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है, उसी तरह, बकौल उनके, जब लाइक या कमेंट ही न किया तो फिर फ्रेंड क्या है? एक डॉक्टर हैं फेसबुक पर, जो अपने ही शब्दों में उपचार द्वारा लोगों को जिंदगी देते हैं, पर फेसबुक पर वे लोगों की जिंदगी लेने पर उतारू रहते हैं. एक दिन उन्होंने भी कहा कि मेरे इतने फ्रेंड हैं, पर लाइक-कमेंट कोई नहीं करता. आज फ्रेंड-लिस्ट देखता हूं, वे जिंदा भी हैं या मर-मरा गये.

कुछ लोग नाराज होकर दोस्तों को अनफ्रेंड तो कर देते हैं, पर ‘मोको और न तोको ठौर’ कहावत के अनुसार ज्यादा देर अनफ्रेंडावस्था में नहीं रह पाते, पुन: फ्रेंड बन जाते हैं. कुछ दिन बाद वे उन्हें फिर अनफ्रेंड कर देते हैं और यह सिलसिला जारी रहता है. कुछ लोग अहमद फराज के-से अंदाज में पुराने दोस्तों को फ्रेंड बनने के लिए बुलाते हैं- रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे अनफ्रेंड कर जाने के लिए आ!

उधर अनफ्रेंड किये गये कुछ लोग पुन: फ्रेंड बनने के लिए आ धमकते हैं, मानो शायर अब्दुल हमीद अदम की तरह कह रहे हों- शायद मुझे अनफ्रेंड करके पछता रहे हों आप, फ्रेंड-रिक्वेस्ट लेके इस खयाल से फिर आ गया हूं मैं!

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