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शौचालयों की कमी से जूझता देश

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 125 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में आज भी 62 करोड़ लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इनमें से 30 फीसदी महिलाएं हैं जो खुले में शौच जाती हैं और यौन प्रताड़ना की शिकार होती हैं. यह […]

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 125 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में आज भी 62 करोड़ लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इनमें से 30 फीसदी महिलाएं हैं जो खुले में शौच जाती हैं और यौन प्रताड़ना की शिकार होती हैं. यह अकाट्य सत्य है कि आजादी के छह दशक बाद भी आधी आबादी का दर्जा प्राप्त कई महिलाएं आज भी खुले में शौच जाने को विवश हैं.

ऐसे में यह रिपोर्ट हमारी सभी स्तर की सरकारों की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न् लगाने को काफी है. इस संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजा है और उनसे शौचालय की कमी के कारणों पर रिपोर्ट देने को कहा है. कुछ माह पूर्व पहले शौचालय फिर देवालय सूत्र वाक्य बोलने पर नरेंद्र मोदी को कथित धर्मगुरुओं की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था. बदायूं में शौच के लिए खुले में गयी दो बहनों के साथ हुए दुष्कर्म के बाद शौचालय न बनवाने के प्रति लोगों का रवैया तो बदला ही, साथ ही इस रिपोर्ट ने इस बात पर मुहर भी लगा दी कि दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना का एक बड़ा कारण महिलाओं का खुले में शौच जाना है.

भारत सरकार निर्मल भारत अभियान के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रु पये खर्च कर रही है, लेकिन हम हैं कि इसका लाभ ही नहीं उठाते! खुले में शौच जानेवाले कई लोगों का मत है कि खुले में शौच से मन में ताजगी का अहसास होता है, लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि इस बहाने वे तमाम बीमारियों को दावत दे रहे हैं. शौचालय निर्माण में सरकारी मदद की घोषणा के बाद भी ऐच्छिक सफलता नहीं मिली, लेकिन अगर हर सरकारी स्तर से लोगों को जागरूक कर आर्थिक सहायता दी जाये, तो हालात बदलते देर न लगेगी!

सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा

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