कांग्रेस में बगावत या पाला बदल की तैयारी
।। बृजेंद्र दुबे ।। प्रभात खबर, रांची सुना था नाव डूबने वाली होती है, तो सबसे पहले चूहे नाव से कूद जाते हैं. ये सुनी हुई खबर है.. कभी अनुभव करने का सौभाग्य नहीं मिला. लेकिन एक चीज मुझे आज तक नहीं समझ में आयी कि अगर समुद्र में नाव डूबने वाली हो या डूब […]
।। बृजेंद्र दुबे ।।
प्रभात खबर, रांची
सुना था नाव डूबने वाली होती है, तो सबसे पहले चूहे नाव से कूद जाते हैं. ये सुनी हुई खबर है.. कभी अनुभव करने का सौभाग्य नहीं मिला. लेकिन एक चीज मुझे आज तक नहीं समझ में आयी कि अगर समुद्र में नाव डूबने वाली हो या डूब रही हो.. और चूहा नौका छोड़ कर भागे, तो वह समुद्र में ही तो गिरेगा.
इसका मतलब हुआ कि जो नाव पर अंतिम समय तक सवार रहेगा, उसका जीवन कुछ देर के लिए सही बढ़ जरूर जायेगा. नाव पहले छोड़ कर भागने वाले चूहे तो एक तरह से आत्मघाती कदम ही उठाते हैं और नौका पूरी तरह डूबने से पहले ही डूब जाते हैं. फिर भी यह क्रम अनवरत जारी रहता है. ठीक वैसे ही जैसे 10 साल तक सत्ता का सुख भोगने वाले कांग्रेसी, जो लोकसभा चुनाव में हार तय जान कर पार्टी छोड़ भागे थे. भले ही आज उनमें से ज्यादातर नेपथ्य में हैं.
इधर, एक बार फिर इस साल के अंत तक कुछ राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस में फिर हलचल है. महाराष्ट्र, असम और हरियाणा में सीधे-सीधे वहां के मुख्यमंत्रियों को चुनौती मिल रही है. नेता सोनिया और राहुल गांधी को तो नेता मान रहे हैं, लेकिन अपने मुख्यमंत्रियों की बलि चाहते हैं. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में यह नयी बगावत मेरे गजोधर भाई को हजम नहीं हो रही है. गजोधर भाई कहते हैं कि भर समय सत्ता सुख भोगने वाले नेता अब चला-चली की बेला में बगावत क्यों कर रहे हैं? खास कर ऐसे हालात में जब यह तय माना जा रहा है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी का जादू का चलने की पूरी उम्मीद है.
तो अकेले सीएम के बदल देने से कांग्रेस को कौन-सा फायदा हो जायेगा. मैंने कहा, यही तो मुख्य जड़ है.. दूसरे नंबर के नेताओं को लग रहा है कि कम से कम कुछ महीने ही सही, अगर सीएम बन गये, तो बुढ़ापा सुधर जायेगा. जीवन भर के लिए पूर्व सीएम के नाम पर गाड़ी-बंगला और नौकर-चाकर का जुगाड़ हो जायेगा. गजोधर भाई मुझ पर भड़क गये.. आपको क्या लगता है कि ये बगावत इसके लिए है. अरे भाई, कांग्रेस के कुछ महत्वाकांक्षी नेता नमो की शरण में जाने के लिए भूमिका तैयार कर रहे हैं.
सेटिंग-गेटिंग होते ही पाला बदल का दौर शुरू हो जायेगा. आपने देखा नहीं उमर अब्दुल्ला ने राहुल गांधी से दोस्ती तोड़ने के साथ यूपीए से ही किनारा कर लिया. शरद पवार भी एनसीपी को जमाने के लिए कांग्रेस को आंख दिखा रहे हैं. कहावत है न.. जहां गुड़ होता है, वहीं मक्खियां भिनकती हैं. अभी नमो और भाजपा ही गुड़ बने हैं, तो मतलबी नेता उन्हीं के आसपास मंडराने की फिराक में लगे हैं. कांग्रेस की बगावत का संदेश भी यही है. चुनाव आते-आते बहुत सारे नेता कांग्रेसी नाव से कूद कर भाजपा के रथ पर सवार हो जायेंगे. नेताओं को नीति-सिद्धांत और देश से कोई मतलब नहीं है. बस सत्ता का सुख मिलता रहे इसी का गणित लगा रहे हैं. जनता का क्या वह तो नमो मोह में डूबी ही है.