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बेहतर हो स्वास्थ्य सेवा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को डॉक्टरों की तादाद बढ़ाने का सुझाव दिया है. हमारे देश में औसतन 10,189 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. इस हिसाब से अभी छह लाख चिकित्सकों की कमी है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, 2018 के मुताबिक सबसे बेहतर स्थिति दिल्ली में है, जहां 2203 लोगों के लिए एक डॉक्टर है. […]

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को डॉक्टरों की तादाद बढ़ाने का सुझाव दिया है. हमारे देश में औसतन 10,189 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. इस हिसाब से अभी छह लाख चिकित्सकों की कमी है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, 2018 के मुताबिक सबसे बेहतर स्थिति दिल्ली में है, जहां 2203 लोगों के लिए एक डॉक्टर है. सबसे चिंताजनक स्थिति बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में है.
औसतन एक डॉक्टर पर बिहार में 28,391, उत्तर प्रदेश में 19,962, झारखंड में 18,518, मध्य प्रदेश में 16,996, छत्तीसगढ़ में 15,916 तथा कर्नाटक में 13,556 लोगों की जिम्मेदारी है. वहीं देशभर में ज्यादातर डॉक्टर शहरों में हैं. गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों में डॉक्टरों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बड़ी कमी है. इसमें सुधार के लिए कुछ दिन पहले उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने डॉक्टरों से अपने गांव में काम करने और स्वास्थ्य केंद्रों को कारगर बनाने का निवेदन किया था. डॉक्टरों के अलावा संबंधित कर्मियों की भी बहुत कमी है. हमारे 95 फीसदी से अधिक केंद्रों में कार्यरत लोगों की संख्या पांच से कम है. इस हालत में गरीब और कम आयवाले मरीज समय पर जांच और सही इलाज नहीं करा पाते हैं.
ऐसे में बीमारी के गंभीर और जानलेवा होने की आशंका रहती है. हमारे देश में करीब 90 फीसदी मौतों का संबंध बीमारियों से है. कुपोषण, प्रदूषण, अशिक्षा आदि की वजह से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं और चिंताजनक हो जाती हैं. देश में करीब 11 लाख पंजीकृत और हर साल निकलनेवाले 50 हजार नये डॉक्टरों की संख्या के बावजूद चिकित्सकों की बड़ी कमी बेहद आश्चर्यजनक है. इसका हिसाब लगाया जाना चाहिए कि डिग्री व पंजीकरण के बाद भी ये डॉक्टर कहां जाते हैं. स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की भी जरूरत है. स्वास्थ्य पर जीडीपी का लगभग सवा फीसदी खर्च के साथ भारत अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे पीछे है.
हालांकि, केंद्रीय बजट में और राज्य सरकारें इस मद में आवंटन में लगातार बढ़ोतरी कर रही हैं, फिर भी इलाज का 62 फीसदी खर्च लोगों को अपनी जेब से भरना पड़ता है. सरकार भी मानती है कि 75 लाख परिवार इलाज के बढ़ते खर्च के कारण गरीबी के शिकार हो जाते हैं. इन चुनौतियों का सामना करने के लिए केंद्रीय व राज्य सरकारों की योजनाओं और उपलब्ध संसाधनों में तालमेल बनाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में डेढ़ लाख स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना का लक्ष्य है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण का प्रस्ताव भी स्वागतयोग्य है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने पिछले कार्यकाल में विविध उद्देश्यों को समायोजित कर नीतिगत और व्यावहारिक पहल की ठोस शुरुआत कर दी है. लेकिन सरकार को आवंटन के कम होने के संदर्भ में सीएजी और विशेषज्ञों द्वारा जतायी गयी चिंता का संज्ञान लेना चाहिए. स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने और चिकित्सा शिक्षा में हो रहे सुधारों की कोशिशों के साथ चिकित्सकों की जवाबदेही तय करना भी जरूरी है.

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