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अच्छे दिनों के अवरोधक

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में संपन्न हुए चुनाव ने निराश देशवासियों को काफी समय के बाद एक बार फिर एकजुट होने का और मौजूदा व्यवस्था मे परिवर्तन लाने का मौका दिया. पूरे संसार ने इस बार भारतीय मतदाताओं की लोकतांत्रिक भावना को सराहा. जनता ने अच्छे दिन दिखानेवाले को जनादेश देकर देश की तकदीर […]

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में संपन्न हुए चुनाव ने निराश देशवासियों को काफी समय के बाद एक बार फिर एकजुट होने का और मौजूदा व्यवस्था मे परिवर्तन लाने का मौका दिया.

पूरे संसार ने इस बार भारतीय मतदाताओं की लोकतांत्रिक भावना को सराहा. जनता ने अच्छे दिन दिखानेवाले को जनादेश देकर देश की तकदीर बदलने की चुनौती दी है. पर अच्छे दिन का आधार है अच्छी मानसिकता, जो तमाम भ्रष्टाचार व भेदभाव को दरकिनार कर विशुद्ध राष्ट्रवाद की लहर बहा सके.

पर क्या मौजूदा समय में यह संभव है? कानून व्यवस्था दौलतमंदों की रहनुमाई करने में ही अपनी पूरी ऊर्जा खर्च करती है. यहां जनता की नियति पिसने की और हुक्मरानों की पीसने की है. क्या लोगों की मानसिकता में भोग की भावना को दूर कर त्याग की भावना भरी जा सकती है? तभी आयेंगे अच्छे दिन.

महादेव महतो, हजारीबाग

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