गांव-गांव में दूरसंचार
सूचना तकनीक के व्यापक विस्तार के क्रम में देश के 5.54 लाख गांवों को दूरसंचार नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है, पर आज भी 43 हजार गांव इसके दायरे से बाहर हैं. सरकार ने एक साल के भीतर इन गांवों को नेटवर्क से जोड़ने के लिए निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों से सहयोग मांगा है. […]
सूचना तकनीक के व्यापक विस्तार के क्रम में देश के 5.54 लाख गांवों को दूरसंचार नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है, पर आज भी 43 हजार गांव इसके दायरे से बाहर हैं. सरकार ने एक साल के भीतर इन गांवों को नेटवर्क से जोड़ने के लिए निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों से सहयोग मांगा है.
संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद के साथ बैठक में कंपनियों ने इस प्रस्ताव पर सहमति भी दी है. संसद में केंद्रीय मंत्री द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में ये कंपनियां ग्रामीण क्षेत्र में 57.5 हजार से अधिक टावर लगायेंगी. ‘भारतनेट’ परियोजना के तहत सभी ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने के लिए चरणबद्ध प्रक्रिया भी जारी है. अब तक 3.37 लाख किलोमीटर से अधिक ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाया जा चुका है, जिसके जरिये करीब 1.29 लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ा जा चुका है. इनमें से 1.20 लाख से अधिक पंचायतों में सेवा पहुंचाने की तैयारी पूरी हो चुकी है. जीवन के हर हिस्से में इंटरनेट और मोबाइल फोन के बढ़ती अहमियत को देखते हुए ये उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने पूर्वोत्तर में टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर के कामों को जल्दी पूरा करने के निर्देश भी दिया है. एक तरफ 5जी तकनीक दस्तक दे रही है, तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में ग्रामीण क्षेत्रों की बड़ी भूमिका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य देश के सामने रखा है. इसे हासिल करने के लिए दूरसंचार को कोने-कोने तक ले जाना जरूरी है.
संचार मंत्री का मानना है कि इसमें लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी टेलीकॉम सेक्टर की होनी चाहिए. संचार सचिव अरुणा सुंदरराजन ने आशा जतायी है कि आगामी डेढ़ सालों में इस सेक्टर में तीन लाख नौकरियां उपलब्ध हो सकती हैं. इनमें से आधे से अधिक रोजगार ग्रामीण क्षेत्रों में सृजित होंगे. पिछले साल राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति के आने के बाद से एक लाख से अधिक रोजगार के अवसर बने हैं.
इस प्रयास में निजी क्षेत्र के निवेश की जरूरत है. सौ अरब डॉलर निवेश जुटाने के इस नीति के लक्ष्य में से 16 अरब डॉलर का वादा अब तक निजी कंपनियों की ओर से किया जा चुका है. नयी तकनीक की आमद और बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के माहौल में इसके बढ़ने की अपेक्षा है. सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह संचार के क्षेत्र में किसी कंपनी विशेष का एकाधिकार स्थापित नहीं होने देगी. इस संदर्भ में एक बड़ी चुनौती सरकारी कंपनियों की गड़बड़ाती आर्थिक सेहत की है.
भारतीय दूरसंचार क्रांति में इन कंपनियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है तथा दूर-दराज और बिना मुनाफे के इलाकों में भी फोन और इंटरनेट पहुंच सका है. सरकार बीएसएनएल और एमटीएनएल को मुसीबत से निकालने के उपायों पर विचार कर रही है. आशा है कि सरकार और निजी क्षेत्र नीतियों पर अमल कर जल्दी ही ‘डिजिटल इंडिया’ के लक्ष्यों को पाने में सफल होंगे.