संसदीय समितियों की अनदेखी नहीं
भूपेंद्र यादव राष्ट्रीय महामंत्री, भाजपा संसद सदस्य, राज्यसभा bhupenderyadav69@gmail.com हाल ही में राज्यसभा में विपक्षी दल के नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने संसदीय स्थायी और प्रवर समितियों को समीक्षा के लिए भेजे बगैर जल्दबाजी में कई कानून पारित करवाये हैं. आश्चर्यजनक है कि विपक्ष को इस बात पर आपत्ति है कि […]
भूपेंद्र यादव
राष्ट्रीय महामंत्री, भाजपा संसद सदस्य, राज्यसभा
bhupenderyadav69@gmail.com
हाल ही में राज्यसभा में विपक्षी दल के नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने संसदीय स्थायी और प्रवर समितियों को समीक्षा के लिए भेजे बगैर जल्दबाजी में कई कानून पारित करवाये हैं. आश्चर्यजनक है कि विपक्ष को इस बात पर आपत्ति है कि संसद अधिक कानून लाकर अपने समय का समुचित उपयोग कर रही है और सदन का वर्तमान सत्र पिछले अन्य सत्रों के मुकाबले ज्यादा सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो रहा है. वस्तुत: विपक्षी दलों के आरोप निराधार हैं.
सही तथ्य यह है कि यूपीए सरकार ने 2009 से 2014 तक राज्यसभा में केवल पांच विधेयकों को संसद की प्रवर समिति को भेजा था, जबकि एनडीए सरकार ने 2014 से 2019 के बीच कुल 17 विधेयक समीक्षा के लिए भेजे हैं. साफ है कि विधेयकों को संसद की समितियों के पास नहीं भेजने को लेकर विपक्ष का आरोप तथ्यहीन है.
जो लोग राज्यसभा सत्र के दौरान चर्चाओं और ध्यानाकर्षण प्रस्तावों को बाधित करते रहे हैं, वही आज सदन में सुचारु ढंग से हो रहे कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं.
उन्हें स्वयं से यह सवाल करना चाहिए कि आखिर मानसून सत्र 2015, बजट सत्र 2018, शीतकालीन सत्र 2018 और अंतरिम बजट सत्र 2019 में कामकाज की गति क्यों ठप जैसी हो गयी थी? हैरानी की बात है कि सदन में सकारात्मक रुख के साथ बहस और चर्चा करने की बजाय अनेक अवसरों पर गतिरोध पैदा करने वाले इस बात पर सवाल खड़े कर रहे हैं कि सदन का प्रदर्शन अच्छा क्यों हो रहा है!
यह संसदीय परंपरा का ही हिस्सा रहा है कि केंद्र सरकार के किसी भी संस्थान को सशक्त करने से जुड़े आमूलचूल संशोधन और प्रावधान को प्रवर समिति नहीं भेजा जाता था.
यह ठीक है कि प्रवर समितियों को विधेयक भेजना सदन की प्रक्रिया का हिस्सा रहा है, किन्तु यह भी सच है कि ऐसा विधेयक के लिए अनिवार्य नहीं है. कभी-कभी प्रवर समितियां कानून में फेरबदल करने की सलाह देती रही हैं और इसके परिणामस्वरूप कुछ विधेयकों में उन सिफारिशों को लागू भी किया जाता रहा है.
महत्वपूर्ण तथ्य है कि कुछ विधेयक प्रवर समितियों में विचार होने के बावजूद सदन का सत्र नहीं होने की वजह से पारित नहीं हो पाते हैं. इस कारण उन्हें दोबारा सदन की पटल पर रखना पड़ता है. इस तरह के विधेयकों में ज्यादातर वे हैं, जो लोकसभा द्वारा पारित भी हुए तथा स्थायी समिति द्वारा उन्हें अनुमोदित भी किया गया था. उदाहरण के लिए द मोटर व्हीकल्स (अमेंडमेंट) बिल 2019, जिसकी समीक्षा पहले स्टैंडिंग कमेटी द्वारा की गयी. फिर लोकसभा द्वारा पारित किया गया था.
इसके बाद राज्यसभा ने इस बिल को प्रवर समिति के पास भेज दिया था, लेकिन लैप्स होने के कारण इसे फिर से लोकसभा में लाना पड़ा. इसी तरह ट्रिपल तलाक बिल में विपक्ष के सुझाव पर संशोधन करके दो बार इसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया है. चूंकि इसे राज्यसभा में यह दो बार पारित नहीं हो सका. अंत: इसे तीसरी लोकसभा में पारित कराना पड़ा है.
ऐसे अनेक विधेयक हैं, जिन पर या तो प्रवर समिति या स्थायी समिति में विचार हो चुका है और इन्हें राज्यसभा द्वारा अभी पारित होना है.
मसलन, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019, वेतन संहिता 2019, अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019 तथा कंपनी संशोधन विधेयक 2019.
पिछले संसदीय सत्रों की तुलना में वर्तमान सत्र कानून के अधिनियमन के लिहाज से अधिक प्रभावी व अधिक उपयोगी रहा है. कई बार सदन की कार्यवाही शाम छह बजे के बाद तक चला. इस सत्र में विधेयकों के पारित होने के अलावा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा हुई है.
शून्यकाल और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से सार्वजनिक महत्व के कई मुद्दों पर भी चर्चा हुई है. इस सत्र में प्रश्नकाल भी सार्थक रहा है. गौरतलब है कि हाल के पांच सत्रों में से चार सत्र बर्बाद चले गये, इसके बावजूद एनडीए सरकार के दौरान 2014 से 2019 के मध्य कम समय के लिए अवधि की जो चर्चाएं हुईं, जिनकी संख्या 29 थी. यह 2009 से 2014 के दौरान यूपीए सरकार की 27 चर्चाओं से अधिक है.
संसद की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी द्वारा सदन के कामकाज को अंतिम रूप दिया जाता है, जिसमें सभी दलों का प्रतिनिधित्व होते हैं और सभी विधेयकों को उसके आवंटित समय के अनुसार इस समिति द्वारा पारित होने के बाद सूचीबद्ध किया जाता है. लंबे समय के बाद लांग ऑवर चर्चाएं सदन में फिर से होने लगी हैं. ऐसा तब हुआ है, जब व्यवधानों और अनावश्यक हस्तक्षेपों के कारण संसदीय सत्र अनियमित रहे हैं.
कानून बनाना संसद का महत्वपूर्ण कार्य है और विपक्ष की रचनात्मक प्रतिक्रिया और सार्थक हस्तक्षेप इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन केवल विरोध के लिए विपक्ष को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है. विपक्ष को यह समझने की आवश्यकता है कि किसी भी विधेयक के संबंध में सहमति-असहमति की प्रतिक्रिया स्वीकार्य है, परंतु अनावश्यक बाधा उत्पन्न करना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही नहीं है.
विपक्ष को अपनी भूमिका के महत्व का एहसास करने और रचनात्मक विपक्ष के रूप में कार्य करते हुए लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में समझदारी से काम करने की आवश्यकता है. संसदीय कामकाज के लिहाज से यह उत्साहजनक है कि इस सत्र के दौरान सदन का कामकाज पहले की किसी भी अन्य सरकारों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से पूरा हो रहा है.