बड़बोले और झूठे हैं राष्ट्रपति ट्रंप
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in यह आश्चर्यजनक, किंतु सत्य है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति अक्सर असत्य बोलता है. यह बात अमेरिकी मीडिया खुलेआम कहता आया है और अब धीरे-धीरे दुनिया यह जानने लगी है कि राष्ट्रपति ट्रंप न केवल बड़बोले हैं, बल्कि वह अक्सर झूठ भी बोलते हैं. […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
यह आश्चर्यजनक, किंतु सत्य है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति अक्सर असत्य बोलता है. यह बात अमेरिकी मीडिया खुलेआम कहता आया है और अब धीरे-धीरे दुनिया यह जानने लगी है कि राष्ट्रपति ट्रंप न केवल बड़बोले हैं, बल्कि वह अक्सर झूठ भी बोलते हैं.
दुनिया हतप्रभ है कि ऐसे शख्स का सामना कैसे किया जाए. हमें यह अचंभित करता है, क्योंकि इस देश में शुरुआत से ही सत्य बोलने पर भारी जोर दिया जाता है- सत्यं वद् धर्मम चर. इस देश का सूत्र वाक्य भी सत्य पर आधारित है- सत्यमेव जयते अर्थात सत्य की हमेशा जीत होती है.
शायद यही वजह है कि ऐसा अनुभव हमें चौंकाता है. इसका कटु अनुभव भारत को तब हुआ, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही और उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घसीट लिया. हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की. उसके बाद जैसी कि परंपरा है, एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. इमरान ने सुनियोजित तरीके से ट्रंप की भारी प्रशंसा की.
जिसे भदेस भाषा में कहते हैं, चने के झाड़ पर चढ़ा दिया. इमरान खान ने कहा कि ट्रंप कश्मीर मामले में मध्यस्थता कर उपमहाद्वीप में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. यह बात अमेरिकी मीडिया में सामने आ चुकी है कि राष्ट्रपति ट्रंप शांति का नोबेल पुरस्कार पाने के बेहद इच्छुक है. शांति और मध्यस्थता की बात आते ही वह झाड़ पर चढ़ जाते हैं. इसके लिए वह उत्तर कोरिया जा कर वहां के तानाशाह किम जोंग-उन से मुलाकात कर सकते हैं.
दरअसल, उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है. इमरान खान की बात पर बड़बोले ट्रंप तुरंत चढ़ गये और उन्होंने कहा कि पिछली मुलाकात में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिले थे और उन्होंने भी उनसे कश्मीर में मध्यस्थता का अनुरोध किया था और वह तैयार हैं, लेकिन इस बार उन्होंने कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले को लेकर ऐसा दावा किया, जिसे लेकर अमेरिकी प्रशासन भी सकते में आ गया. इसका असर भारत-अमेरिका संबंधों पर भी पड़ सकता है. अमेरिका को आनन-फानन में सफाई देनी पड़ी और पूरे मामले की लीपापोती करनी पड़ी.
अमेरिकी प्रशासन की समस्या यह है कि वह अपने ही राष्ट्रपति के बयान का खंडन कर उन्हें झूठा नहीं ठहरा सकता है. हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप के इस बयान के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर सफाई देते हुए ट्वीट किया कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है. ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान और भारत के साथ इस मुद्दे पर सहयोग करने को तैयार है.
भारत के लिए भी धर्म संकट है कि कूटनीतिक दृष्टि से राष्ट्रपति ट्रंप को सीधे सीधे झूठा कह देना उचित नहीं है. हालांकि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद के दोनों सदनों में ट्रंप के बयान का दो टूक शूब्दों में खंडन किया और कहा कि पीएम मोदी ने ऐसी कोई बात कही ही नहीं थी.
भारत की वर्षों से स्थापित नीति रही है कि उसे कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत का लगातार यह पक्ष रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता के लिए हमेशा तैयार है, लेकिन बातचीत की शर्त यह है कि पहले सीमा पार से आतंकवाद बंद हो. उन्होंने कहा कि शिमला समझौता और लाहौर घोषणा पत्र पाकिस्तान और भारत के बीच के सभी मु्द्दों के द्विपक्षीय समाधान का आधार प्रदान करते हैं.
दरअसल, यह समय की कसौटी पर जांची-परखी भारत की नीति रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दावे के बाद भारत में लेकर हंगामा मचना तय था. संसद में विपक्ष ने सरकार को घेरने का प्रयास किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सदन में इस विषय पर स्पष्टीकरण देने की मांग की. विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर सदन में हंगामा और वॉकआउट किया.
ऐसा नहीं है कि ट्रंप ने पहली बार झूठ बोला हो. अमेरिका के जाने माने अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के फैक्ट चेकर्स डेटाबेस के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद से अपने कार्यकाल के 869 दिनों में 10 हजार 796 बार झूठ बोला और हवा-हवाई दावे किये. यानी बतौर राष्ट्रपति ट्रंप औसतन रोजाना 12 बार झूठ बोले हैं. वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया कि ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले साल हर दिन औसतन करीब छह झूठे दावे किये. दूसरे साल उन्होंने तीन गुना तेजी से हर दिन ऐसे करीब 17 झूठे दावे किये.
इन दावों में से लगभग पांचवां हिस्सा आव्रजन के बारे में है. उन्होंने चुनाव के दौरान वादा किया था कि अमेरिका से सटे मैक्सिको की सीमा पर वह दीवार खड़ी करवा देंगे. इस विषय में ट्रंप ने सबसे ज्यादा 172 बार झूठा दावा किया कि बस अब दीवार बनायी जा रही है. इसके अलावा उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस के दखल के विषय में भी अनेक बार झूठ बोला है.
ये बातें अमेरिकी और भारतीय अखबारों में समय-समय पर छपती रही हैं. मैं कोई नया खुलासा नहीं कर रहा हूं. मीडिया के संदर्भ से मैं उन्हें पेश कर रहा हूं, लेकिन भारतीयों ने अभी तक इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया है.
अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो ट्रंप अपनी रैलियों में ही जो दावे करते हैं, उनमें लगभग 22 फीसदी झूठे होते हैं. यही नहीं, अपने ट्विटर हैंडल पर भी वह झूठे दावे करने में संकोच नहीं करते हैं. उन्होंने ट्वीट कर जापान, चीन और यूरोपियन यूनियन के साथ व्यापार घाटे पर झूठ बोला था. एक बार ट्रंप ने यहां तक कहा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अमेरिका में पैदा ही नहीं हुए.
बाद ट्रंप ने मिशेल ओबामा पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने ही ओबामा के जन्म को लेकर अफवाह फैलायी थी. ट्रंप ने दावा किया था कि सऊदी अरब और अमेरिका के बीच 450 अरब डॉलर के रक्षा सौदे हुए, जिसे रक्षा विशेषज्ञों ने झूठा बता दिया था. अपने बयानों में वह अमेरिका में बेरोजगारी की दर कभी 5 फीसदी तो कभी 24 फीसदी तक बताते हैं. मुंबई हमले के मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद को लेकर भी वह गलत बयानी कर चुके हैं. सईद की गिरफ्तारी के बाद ट्रंप ने ट्वीट किया था कि दस वर्षों तक तलाश करने के बाद आखिरकार सईद को गिरफ्तार कर लिया गया है.
अमेरिका की विदेश मामलों की समिति ने जवाब ट्वीट किया कि हाफिज सईद पाकिस्तान में खुले आम घूम रहा था. उसे कोई खोज नहीं रहा था. उसे कई बार गिरफ्तार किया गया और छोड़ भी दिया गया. यह सही है कि राष्ट्रपति ट्रंप अक्सर झूठ बोलते हैं, लेकिन यह भी सच है कि वह दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हैं. यह केवल भारत की नहीं दुनिया के सभी देशों के लिए चुनौती है कि उनसे कैसे निबटा जाए, क्योंकि उनकी अनदेखी करने का जोखिम दुनिया का कोई देश भी नहीं उठा सकता है.