बाढ़ की विभीषिका के आगे बेबस हो चुका है मनुष्य
बिहार, असम, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में बाढ़ की विभीषिका को देखकर मन व्यथित है. पीड़ितों में मासूम बच्चे, असहाय बुजुर्ग, मरीज इत्यादि शामिल हैं. मासूमों के आंसू दिल में चुभन पैदा करती है, बुजुर्गों का चीत्कार रोम-रोम में सिहरन पैदा करता है. घर तो है, लेकिन रह नहीं सकते. चापाकल तो है, लेकिन […]
बिहार, असम, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में बाढ़ की विभीषिका को देखकर मन व्यथित है. पीड़ितों में मासूम बच्चे, असहाय बुजुर्ग, मरीज इत्यादि शामिल हैं. मासूमों के आंसू दिल में चुभन पैदा करती है, बुजुर्गों का चीत्कार रोम-रोम में सिहरन पैदा करता है.
घर तो है, लेकिन रह नहीं सकते. चापाकल तो है, लेकिन पानी नहीं पी सकते. पैसे तो हैं, लेकिन कुछ खरीद नहीं सकते. गाड़ी तो है, लेकिन कहीं जा नहीं सकते. चूल्हे तो हैं, लेकिन खाना पका नहीं सकते.
बिछावन तो है, पर दुधमुंहे को सुला नहीं सकते. सच में मानव असहाय व बेबस है. सिस्टम भी फेल. सरकार संवेदना प्रकट कर रही है. ऐसी परिस्थिति में पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब के `नदी जोड़ो परियोजना की याद आती है. काश, इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श कर लागू किया जाता, तो शायद आज यह दिन देखना नहीं पड़ता.
प्रिंस, पचमहुआ, सिकंदरा (जमुई)