बदल सकते हैं जमीनी हालात

अजय साहनी रक्षा विशेषज्ञ ajaisahni@gmail.com पहले तो ये आसार थे कि मोदी सरकार धारा 370 को समाप्त नहीं कर पायेगी, क्योंकि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है. लेकिन, इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों की चर्चा को देखें, तो कई पार्टियां सरकार के पक्ष में खड़ी दिखीं. हालांकि, कुछ संवैधानिक विकृतियों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2019 7:00 AM
अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ
ajaisahni@gmail.com
पहले तो ये आसार थे कि मोदी सरकार धारा 370 को समाप्त नहीं कर पायेगी, क्योंकि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है. लेकिन, इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों की चर्चा को देखें, तो कई पार्टियां सरकार के पक्ष में खड़ी दिखीं.
हालांकि, कुछ संवैधानिक विकृतियों की बात भी दिख रही है, जिसका विरोध होगा. जिस तरह से राष्ट्रपति के आदेश के साथ वहां संविधान सभा को रद्द करके विधानसभा बना दी गयी है, इस पर आगे आनेवाले दिनों में जरूर कुछ पार्टियां सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं. बेशक संसद का काम कानून बनाना है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी उस कानून की समीक्षा करने का अधिकार है कि वह कानून संविधानसम्मत है या नहीं. लेकिन, यहां यह पहलू भी कमजोर ही नजर आता है, क्योंकि पिछले दिनों के सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को देखें, तो वह भी ज्यादातर सरकार के पक्ष में ही रहा है.
इस साहसिक कदम के पीछे के तथ्यों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. मैं यहां इस्राइल का उदाहरण दूंगा. मसलन कि जमीन पर कुछ सच्चाइयां या हालात ऐसे बना दिये जायें, ताकि लोगों को वहां की जमीन पर होते चले आ रहे झगड़ों की कोई अहमियत ही न रह जाये, और लोग इस बात को स्वीकार कर लें कि सरकार ने जो निर्णय लिया है, वह बिल्कुल सही है. हमारी सरकार ने ऐसा ही किया है. अब इसके बाद कोई सुप्रीम कोर्ट जाता है, तो वह जाता रहे, जमीन पर जो केंद्र सरकार चाहेगी, वही होगा. केंद्र सरकार के लिए समस्या तब आयेगी, जब कोई अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में इस मामले को लेकर चला जायेगा.
चाहे वह प्रवासी तत्व हों, राजनीतिक दल हों या फिर पड़ोसी देश पाकिस्तान हो, हो सकता है ये लोग आईसीजे में चले जायें. लेकिन, इसके सिवा कोई और समस्या नजर नहीं आती, जो धारा 370 हटाये जाने के खिलाफ खड़ी हो जाये.
धारा 370 हटाये जाने और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बांट देने के बाद भी वहां अमन-चैन कायम हो पायेगा कि नहीं, यह सबसे बड़ा सवाल है.
मुझे जहां तक लगता है, पाकिस्तान अब भी कोशिश करेगा कि वहां की शांति भंग हो. घाटी में कुछ तत्व अब भी मौजूद होंगे, जो इस फैसले से खुश नहीं होंगे. लेकिन, यह बात भी उतनी ही सत्य है कि अब घाटी में पहले जैसी हालत नहीं है, अब वहां बहुत कम संख्या में दहशतगर्द हैं या उनके समर्थक हैं, क्योंकि हमारी सेना ने उन्हें मार भगाया है. कुछ छिटपुट हादसे होंगे भी, तो उनके बड़े होने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि अब केंद्रीय प्रशासन का दबाव बढ़ जायेगा, जिसे सह पाना उनके बस की बात नहीं होगी.
जहां तक वादी की बात है, वहां मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी लोग अब आतंकवाद की तरफ रुख नहीं करते हैं. और आतंकी गतिविधियां भी वहां के कुछ ही क्षेत्रों में सिमट कर रह गयी हैं. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि वहां बाकी लोग राष्ट्रवादी हो गये हैं, लेिकन लोग इस बात से तंग आ गये हैं कि वहां जो कुछ हो रहा है, उससे निजात मिलनी चाहिए. इसलिए, इस फैसले के बाद एक हल निकालने की जरूरत तो होगी ही कि वहां अमन-चैन के लिए योजनाएं बनायी जायें.
हां, शुरू में गुस्से की एक लहर होगी, लेकिन अगर कुछ वक्त तक वहां का शासन ठीक रहा, अगर सेना का रवैया ठीक रहा, लोगों को परेशान करना बंद हो जाये और उन्हें सरकार से मदद मिलने लगे, तब कोई बहुत बड़ा जमीनी उबाल नहीं आयेगा. इस ऐतबार से हम यह कह सकते हैं कि सरकार ने वहां के लिए जो रणनीति बनायी है, उसमें उसे सफलता मिल सकती है. बाकी जहां तक संवैधानिक प्रावधान की बात है, तो इस पर कुछ सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है कि क्या होगा. इसके साथ ही, यह भी नजर आ रहा है कि कुछ कानूनी और राजनीतिक झगड़े भी वहां कम होंगे.
लद्दाख एक जमाने से चाह रहा था कि वह वादी से अलग हो जाये. बरसों से उनकी मांग थी कि लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बनाया जाये. अब जाकर उसके हक में फैसला आया है, तो वहां के लोग बेशक खुश होंगे.
बरसों से वहां के लोगों को जो भी आक्रोश था, वह वादी के खिलाफ ही था, भारत सरकार के खिलाफ नहीं है. उनको हमेशा लगता था कि उनके ऊपर वादी के लोग ही शासन करते थे. एक हद तक तो जम्मू की भी यही शिकायत थी कि उस पर वादी का शासन चल रहा है और सबसे ज्यादा नीतियां और योजनाएं वादी को केंद्र में रखकर ही बनायी जाती रही हैं, जिससे न लद्दाख को ज्यादा फायदा मिलता है, न जम्मू को. इसलिए लद्दाख का एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठन उन्हें पसंद आयेगा. अब लद्दाख अलग होने के बाद जम्मू पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी देखने की चीज होगी.
एक महत्वपूर्ण बात समझने की यह है कि जब वहां आगामी दिनों में चुनाव होंगे, तो परिणाम क्या होगा.अगर फिर से वादी की पार्टियां बढ़त बनाती हैं और चुनावों में जीत दर्ज करके वे सरकार बनाती हैं, तो वे फिर से एक प्रस्ताव ला सकती हैं कि धारा 370 हटाया जाना गैर-कानूनी है. इसलिए अभी बहुत कुछ है, जो अनिश्चितता के घेरे में है. फिर भी मैं यही कहूंगा कि धारा 370 का हटाया जाना सरकार के लिए एक बहुत बड़ा कदम है और यह कदम जम्मू-कश्मीर की जमीनी हालात को पूरी तरह से बदल सकता है.
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