अनुच्छेद 370 खत्म : ऐतिहासिक कदम

रामबहादुर राय वरिष्ठ पत्रकार rbrai118@gmail.com भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में चार संकल्प या प्रस्ताव रखे थे. इन संकल्पों में राज्य में वंचित लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की बात थी, धारा 370 हटाने की बात थी और राज्य के पुनर्गठन का प्रावधान आदि शामिल थे. जम्मू-कश्मीर को लेकर देश के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2019 7:02 AM
रामबहादुर राय
वरिष्ठ पत्रकार
rbrai118@gmail.com
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में चार संकल्प या प्रस्ताव रखे थे. इन संकल्पों में राज्य में वंचित लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की बात थी, धारा 370 हटाने की बात थी और राज्य के पुनर्गठन का प्रावधान आदि शामिल थे. जम्मू-कश्मीर को लेकर देश के लोग जो चाहते थे, उस पर नरेंद्र मोदी की सरकार ने साहसपूर्वक, सोच-समझकर और बड़े धैर्य से ये प्रस्ताव बनवाये और सदन में पेश किया. अब धारा 370 खत्म हो गया है और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो राज्य बन गये हैं.
पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में पुलिस की, सेना की और राजनीति की जो हलचल थी, उस दौरान लोगों के मन में कई सारे सवाल तो थे ही कि पता नहीं क्या होने जा रहा है. तरह-तरह की अटकलें थीं, लेकिन संविधान के दायरे में ही केंद्र सरकार ने ये निर्णय किये हैं और केंद्र को इसका अधिकार भी है कि वह अपने राज्यों के विकास के बारे में सोचे और लोगों की बेहतरी के लिए कानून बनाये.
जम्मू-कश्मीर और भारत की दृष्टि से आज का दिन ऐतिहासिक है. अभी तो संसद ने निर्णय लिया है, लेकिन जब गृह मंत्री अमित शाह के चारों संकल्प पूरे हो जायेंगे, तब भारत की राज्य-व्यवस्था में एक नया अध्याय शुरू होगा.
और तब जम्मू-कश्मीर के बारे में लोगों को सही सूचनाएं मिल सकेंगी. अब तक लोगों को सिर्फ एक बात की ही जानकारी होती रही थी कि घाटी एक अशांत क्षेत्र है, वहां आतंकवाद है और मानो पूरा का पूरा जम्मू-कश्मीर अशांत है. जबकि यह बात सही नहीं है. सिर्फ कश्मीर घाटी के कुछ ही क्षेत्रों में अशांति है, जो कि विदेश यानी पड़ोस-प्रेरित अशांति है. इस अशांति की वजह से ही लद्दाख के क्षेत्र में विकास की कोई रोशनी अभी तक पहुंची नहीं थी और वहां के लोग भी अपने अधिकारों से वंचित रहे हैं. लेकिन अब उनके हक में फैसला हुआ है, वहां जल्दी ही विकास अपनी रफ्तार पकड़ेगी.
जम्मू-कश्मीर में कुछ सीमावर्ती इलाके भी हैं, जहां पिछड़े और गूजर (ये दोनों हिंदू भी हैं, मुसलमान भी हैं) आदि लोगों को जो अधिकार मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल रहा था. इस लिहाज से सरकार का यह कदम बहुत ही अच्छा है. जम्मू-कश्मीर के बारे में पूरी जानकारी लोगों को नहीं थी, अब सब लोग सही-सही और पूरी जानकारी पा सकेंगे.
जम्मू-कश्मीर में एक नयी शासन-व्यवस्था शुरू होने जा रही है. ऐसा मानना है कि पुनर्गठन का जो प्रस्ताव है, उसमें घाटी, जम्मू और लद्दाख, ये तीन क्षेत्र हैं, जो अपने-अपने ढंग से विकास करने के लिए अब स्वतंत्र होंगे और केंद्र उनकी मदद करेगा.
जो सवाल लोगों ने उठाये हैं और आगे भी उठायेंगे, वह यह है कि क्या इन प्रस्तावों को लागू करने से संविधान का कहीं उल्लंघन है? इस बारे में राज्यसभा में अमित शाह ने बहुत स्पष्ट कह दिया है कि संविधान की धारा 373 में ही यह प्रावधान है कि इस तरह की व्यवस्था की जा सकती है.
यह कम ही लोगों को मालूम है कि साल 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति के आदेश से धारा 370 को लागू किये जाने के प्रावधान किये गये थे, लेकिन संविधान में इसका उल्लेखित नहीं किया गया. राष्ट्रपति का वह आदेश इस बात का प्रमाण है कि धारा 370 एक अस्थायी प्रावधान है, जिसे हटाया जा सकता है या फिर जिसमें बदलाव संभव है. आठ-नौ साल पहले इस संबंध में जब मैंने लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल रह चुके सीके जैन से बात की थी, तो उन्होंने स्पष्ट कहा था- ‘यह कंस्टीट्यूशनल फ्रॉड है.’ यानी 1954 का जो राष्ट्रपति का आदेश है, वह आदेश संविधान में कहीं जोड़ा नहीं गया था.
लेकिन, हम पाते हैं कि करीब 14 पेज वाले राष्ट्रपति के उस आदेश में यह बात दर्ज है कि यह एक अस्थायी प्रावधान है. इस बात के हवाले से ही अमित शाह ने सदन को बताया कि संविधान ने धारा 370 हटाने की व्यवस्था दी है और इसके लिए संविधान संशोधन की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इसलिए नहीं पड़ेगी, क्योंकि वह संविधान का हिस्सा ही नहीं है. इस तरह देखें, तो कई चीजें पिछले कई साल से एक मिथक के रूप में चल रही थीं. ऐसे में इस सरकार ने सही निर्णय लिया है. मैं मानता हूं कि सरकार इस मजबूत निर्णय से जम्मू-कश्मीर के कई मसलों को भी हल करने में मदद मिलेगी.
धारा 370 कोई मस्जिद या मंदिर में स्थापित देवता नहीं है कि उसे हटाया नहीं जा सकता.यह कोई पवित्र चीज नहीं है, जिसमें कोई फेरबदल नहीं किया जा सकता था. जम्मू-कश्मीर में नेहरू के समय में जब जैसी जरूरत थी, तब वैसा प्रावधान लाया गया था. इसको लाते समय नेहरू ने भी यही कहा था कि यह अस्थायी प्रावधान है. और ऐसे बहुत-से प्रावधान थे, जिनको जरूरत के हिसाब से या तो हटा दिया गया या फिर उसमें कुछ संशोधन किया गया. इसलिए धारा 370 भी हटाये जाने के योग्य था, इसलिए मोदी सरकार ने अब इसे हटा दिया है.
अब सवाल यह उठता है कि धारा 370 हटाये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के लोग इसे किस रूप में लेंगे. इस संदर्भ में मेरा ख्याल है कि जो विभाजनकारी या विघटनकारी प्रवृत्तियों वाले लोग वहां मौजूद हैं और अपनी राजनीति चमका रहे हैं, वे जरूर इसके विरोध में आवाज उठायेंगे, सरकार से लड़ेंगे और अंत में परास्त होकर के इस व्यवस्था को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन, जम्मू-कश्मीर की जनता और पूरे देश के लोग इसका स्वागत करेंगे, यह मेरा विश्वास है.
अरसे से मेरा मानना रहा है कि इस धारा को बहुत पहले हटा दिया जाना चाहिए था. इसलिए हम देर आये, लेकिन दुरुस्त आये. दरअसल, जिस नेतृत्व में संकल्प न हो, उसकी सरकार इस तरह के फैसले नहीं कर सकती. लेकिन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह फैसला हुआ है, यह मंत्रिमंडल का फैसला है.
कोई चोरी-छिपे से नहीं, बल्कि संसद में बिल लाकर, सबकी बहस सुनने के बाद ही इस निर्णय पर पहुंचा गया है. आगे आनेवाले दिनों में अगर किसी संसद सदस्य को इसमें संशोधन की जरूरत महसूस होगी, तो वह संशोधन के लिए संसद में अपनी बात रख सकता है. संसद का काम कानून बनाना है, इसलिए मुझे लगता है कि संसद ने अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ यह निर्णय लिया है, जो आगे आनेवाले समय में जम्मू-कश्मीर को विकास के रास्ते पर ले जायेगा. साथ ही, वहां अमन-चैन भी कायम होगा.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
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