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राष्ट्रपिता का वह आह्वान
शफक महजबीन टिप्पणीकार mahjabee- shafaq@gmail.com हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 150वां शताब्दी वर्ष चल रहा है. हम अपने देश की आजाद हवा में सांस ले सकें, इसके लिए गांधीजी के साथ अनेक महापुरुषों ने आंदोलन किये, अंग्रेजों से लड़ाइयां लड़ीं और अपनी कुर्बानी देने से कभी पीछे नहीं हटे. आजादी के तिहत्तरवें साल में हम […]
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
mahjabee- shafaq@gmail.com
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 150वां शताब्दी वर्ष चल रहा है. हम अपने देश की आजाद हवा में सांस ले सकें, इसके लिए गांधीजी के साथ अनेक महापुरुषों ने आंदोलन किये, अंग्रेजों से लड़ाइयां लड़ीं और अपनी कुर्बानी देने से कभी पीछे नहीं हटे.
आजादी के तिहत्तरवें साल में हम प्रवेश कर चुके हैं, जो पूरे देश के लिए गर्व की बात है. स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण पड़ाव तब आया, जब 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत हुई. यह बहुत बड़ा आंदोलन था, क्योंकि देश के जांबाज लोग डेढ़-दो सौ साल से अंग्रेजों से लड़ते आ रहे थे, लेकिन अंग्रेजों ने अपने रवैये में कोई कमी नहीं की. इसलिए गांधीजी ने आह्वान कर दिया कि अंग्रेजों अब बहुत हुआ, अब तुम भारत छोड़कर जाओ.
आंदोलनों में नारों की महत्वपूर्ण भूमिका हाेती है. ‘भारत छोड़ो’ का नारा पहली बार स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेता यूसुफ मेहर अली ने दिया था, जो अधिवेशन के दौरान ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के रूप में एक आह्वान बना.
उसी दौरान महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा भी दिया था. सुभाष चंद्र बोस ने भी नारा दिया था- ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.’ स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नारा था- ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इसे लेकर रहेंगे’.
साल 1942 में जब भारत ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ने के लिए अपनी कमर कस ली थी, तब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. दुनियाभर में बेचैनियां फैली हुई थीं. इस मायने में भारत छोड़ो का आह्वान महत्वपूर्ण पड़ाव है.
उसके कुछ महीने पहले दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटिश फौज की हार हाेने लगी थी. अमेरिका, चीन और रूस के कहने पर ब्रिटेन ने युद्ध में भारतीयों का समर्थन पाने के उद्देश्य से मार्च 1942 में स्टैनफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा. क्रिप्स के प्रस्तावों को भारतीय नेताओं ने मानने से इनकार कर दिया और मौके का फायदा उठाते हुए गांधीजी के नेतृत्व में 8 अगस्त, 1942 की रात को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा गूंज उठा. अगले दिन नौ अगस्त, 1942 को अंग्रेजों ने गांधीजी के साथ कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जेलों में डाल दिया. देशभर में हिंसा भड़क उठी. यहीं से भारत का स्वतंत्रता संग्राम अपने आखिरी चरण में पहुंचा और महज पांच साल बाद यानी 15 अगस्त, 1947 को देश पूरी तरह आजाद हो गया.
बहुत सारे लोगों के बलिदान से आबाद हुआ है हमारा देश. आज गांधीजी के अाह्वान को याद करने का समय है और देशभर में फैली नफरत से लड़ने का संकल्प लेने का भी समय है. आज हम सबको मिलकर एक नारा देना होगा- ‘नफरत भारत छोड़ो’. अगले सप्ताह आजादी की वर्षगांठ आनेवाली है, इसलिए हमें एक ऐसा संकल्प लेना चाहिए, जिसकी कल्पना गांधीजी ने की थी. उनकी कल्पना में सर्वधर्म समभाव था, ऊंच-नीच से परे एक समृद्ध सामाजिक व्यवस्था थी. गांधीजी के सत्य और अहिंसा में ही हर समस्या का समाधान है.
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