ईद रहमतों की बारिश का दिन
वसीमा खान टिप्पणीकार vasimakhan2@gmail.com ‘ईद-अल-अजहा’ इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है. यह त्योहार सुन्नत-ए-इब्राहीमी के नाम से भी जाना जाता है. जिस तरह से ईदुल फितर रमजान की खुशी में मनाया जाता है, ठीक उसी तरह से ईद-अल-अजहा भी हज की खुशी में मनाया जाता है.यह हर साल इस्लामी महीने जिल हिज्जा यानी हज […]
वसीमा खान टिप्पणीकार
vasimakhan2@gmail.com
‘ईद-अल-अजहा’ इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है. यह त्योहार सुन्नत-ए-इब्राहीमी के नाम से भी जाना जाता है. जिस तरह से ईदुल फितर रमजान की खुशी में मनाया जाता है, ठीक उसी तरह से ईद-अल-अजहा भी हज की खुशी में मनाया जाता है.यह हर साल इस्लामी महीने जिल हिज्जा यानी हज के महीने की 10वीं तारीख को पड़ता है. इस दिन सभी मुस्लिम पहले ईदगाह जाकर खास नमाज अदा करते हैं और उसके बाद अपने-अपने घरों में कुर्बानी करते हैं.
हर त्यौहार के मनाने के पीछे कोई न कोई वजह या वाकया होता है, वैसे ही ईद-अल-अजहा के पीछे भी है. इसका वास्ता कुर्बानी से है. इस्लाम के एक पैगंबर हजरत इब्राहिम को खुदा की तरफ से हुक्म हुआ कि यदि तुम मुझसे सच्ची मोहब्बत करते हो, तो अपनी सबसे ज्यादा प्यारी चीज की कुर्बानी करो. हजरत इब्राहिम के लिए सबसे प्यारी चीज थी, उनका इकलौता बेटा हजरत इस्माईल.
लिहाजा हजरत इब्राहिम, अल्लाह की राह में अपने प्यारे बेटे को कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गये. इधर बेटा इस्माईल भी खुशी-खुशी कुर्बान होने को तैयार हो गया. हजरत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे, तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं.
हजरत इब्राहिम यह बात सुन कर सोच में पड़ गये और उनका कुर्बानी देने का मन हटने लगा. उनको लगा कि कुर्बानी देते समय उनके जज्बात आड़े आ सकते हैं, लिहाजा उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माईल की गर्दन पर छुरी चलायी, उनकी जगह एक दुंबा कुर्बान हो गया.
अल्लाह ने हजरत इस्माईल को बचा लिया और हजरत इब्राहिम की कुर्बानी भी कुबूल कर ली. खुदा की ओर से यह महज एक इम्तिहान था, जिसमें पैगंबर हजरत इब्राहीम पूरी तरह से पास हुए. अपनी मुहब्बत, जज्बात और अहसास को अल्लाह की खुशी के लिए कुर्बान कर देना ही इस त्योहार का मकसद है. तभी से हर साल इसी दिन, उस अजीम कुर्बानी की याद में मुसलमान भाई ईद-अल-अजहा मनाते हैं.
इस्लाम में हर त्योहार पर गरीबों का ख्याल जरूर रखा जाता है, ताकि उनमें कमतरी का एहसास पैदा न हो और गरीब मुस्लिम भाई भी अच्छी तरह से त्योहार मना सकें. ईद-अल-अजहा मनाने के पीछे हज की खुशी भी है. हज, इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में से एक है.
हज हर उस मुसलमान पर फर्ज है, जिसके पास उसके सफर का जरूरी खर्च और बीवी-बच्चों के लिए इतना खर्च हो कि व उसके पीछे आराम से अपना गुजर कर सकें. हज का फरीजा (पुनीत कर्तव्य) और अरकान मक्का शहर, मीना और अराफात के मैदान में जिल हिज्जा महीने की आठ से बारह तारीख तक पूरे किये जाते है.
हज के फरीजे को अदा करने के लिए दुनियाभर से मुसलमान मक्का और मदीना मुनव्वरा के लिए सफर करते हैं. जो इंसान अल्लाह में मजबूत यकीन और अकीदा रखता है, उस पर अल्लाह रहमतें बरसाते हैं. यह रहमतों की बारिश का दिन है.