बढ़े स्त्री भागीदारी
देश की आर्थिक बढ़त की गति तेज करने के लिए आगामी एक दशक में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ा कर 48 फीसदी के वैश्विक औसत तक पहुंचाने की जरूरत है. नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने इस बात पर जोर दिया है कि अगर देश की आधी आबादी का समुचित हिस्सा […]
देश की आर्थिक बढ़त की गति तेज करने के लिए आगामी एक दशक में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ा कर 48 फीसदी के वैश्विक औसत तक पहुंचाने की जरूरत है. नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने इस बात पर जोर दिया है कि अगर देश की आधी आबादी का समुचित हिस्सा कार्यबल में नहीं होगा, तो अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को 9-10 फीसदी तक ले जाना संभव नहीं हो सकेगा.
फिलहाल हमारे कार्यशक्ति में स्त्रियों की मौजूदगी सिर्फ 23 फीसदी से कुछ ज्यादा है, पर कुछ आकलनों के मुताबिक यह 27 फीसदी के आसपास है. आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो दुनिया में महज नौ ही ऐसे देश हैं, जो इस लिहाज से भारत से कमतर हैं.
इन देशों में सीरिया और इराक जैसे देश भी शामिल हैं. देश के भीतर अनेक राज्यों की स्थिति बेहद चिंताजनक है. उदाहरण के लिए, अगर बिहार एक स्वतंत्र देश होता, तो ऐसी अंतरराष्ट्रीय सूची में सबसे निचले पायदान पर होता. वैसे तो सार्वजनिक और पेशेवर जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी मेधा, क्षमता और लगन के शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है, किंतु कामगार स्त्रियों के रोजगार की गुणवत्ता बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है.
शहरी क्षेत्रों में कपड़े से जुड़े कामों में स्त्रियां सबसे अधिक हैं. इसके बाद घरेलू काम करनेवाली महिलाओं का है. मौजूदा हालात का मतलब यह है कि 15 साल से अधिक उम्र की चार में से तीन महिलाएं न तो काम कर रही हैं और न ही काम की तलाश में हैं.
ऐसे में संभवत: ये महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल में लगी हैं. उच्च शिक्षा में लड़कियों के अधिक नामांकन से भी कार्यबल में महिलाओं की संख्या घटी है. यह एकमात्र सकारात्मक पहलू है. नेशनल सैंपल सर्वे के अध्ययन के मुताबिक, 30 से 50 साल की उम्र की तीन में से दो महिलाएं कार्यबल में शामिल नहीं हैं तथा इनमें से ज्यादातर घरेलू जिम्मेदारियां निभा रही हैं. ग्रामीण महिलाएं बहुत ज्यादा खेती से जुड़ी हैं.
इसका मतलब साफ है कि उनके लिए खेती के अलावा के कामों की उपलब्धता बेहद कम है. सरकारी और अन्य संगठनों के अध्ययन इंगित करते हैं कि कार्यशक्ति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए अनेक स्तरों पर पहलकदमी की दरकार है.
वैसे महिलाओं के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रहों में लगातार कमी हो रही है तथा पढ़ने व काम करने के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है, परंतु आज भी समाज का बड़ा हिस्सा स्त्री एवं पुरुष की बराबरी को लेकर सहज नहीं है. ऐसी मानसिकता में बदलाव लाना होगा. महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने पर जोर देने की जरूरत है ताकि स्त्रियां नाउम्मीद होकर घर की चहारदीवारी में सिमटने के लिए मजबूर न हों.
महिलाओं की शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण और उनके कल्याण की योजनाओं को सफल बनाने पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों से अधिक सक्रियता की अपेक्षा तो है ही, समाज को भी समानता और सहभागिता बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी.