अपने देश में हिंदी बोलने वालों को अंग्रेजी बोलने वाले हिकारत की नजरों से देखते हैं, ठीक वैसे ही ‘क्रिकेट’ को अन्य देशी खेलों, हॉकी, फुटबॉल, बालीबॉल, कुश्ती, लंबी कूद, ऊंची कूद, तैराकी, एथलेटिक्स आदि स्पर्धात्मक खेलों और उनके खिलाड़ियों को कमतर करके देखा जाता है. क्रिकेट अंग्रेजों के औपनिवेशिक देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड, आॅस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, वेस्टइंडीज आदि देशों में ही खेला जाता है.
इस देश में यह औपनिवेशिक पंरपरा अभी भी चली आ रही है. वहीं अमेरिका, रूस, चीन आदि देश क्रिकेट को महत्व ही नहीं देते. अब हमें, हमारे समाज और हमारी सरकारों को क्रिकेट के ‘ग्लैमराजेशन’ की मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए और अन्य व्यक्तिगत स्पर्धात्मक खेलों और खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देकर वैश्विक स्तर पर भारत को अन्य देशों जैसे ही आगे बढ़ाना चाहिए.