झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती हताश महसूस कर रहे हैं. क्योंकि वह जो करना चाहते हैं, उसके लिए अफसरशाही से उन्हें समर्थन नहीं मिल पा रहा है. मुख्य सचिव कहते हैं कि वह एक बुलबुले की तरह है. शक्तिविहीन हैं. उनकी यह पीड़ा या लाचारी राज्य के हालात को बयान करने के लिए काफी है. राज्य के मुख्य सचिव प्रभार में चल रहे हैं. सरकार पिछले दो महीने से राज्य में मुख्य सचिव तय नहीं कर पायी है. राज्य के शीर्ष पद पर बैठा अधिकारी जब सिस्टम से इतना हताश हो सकता है, तो राज्य में शासन का इकबाल कितना है यह कहने की जरूरत नहीं है.
मुख्य सचिव की फाइलें मुख्यमंत्री के यहां जा कर अटक जाती हैं. पूरा सिस्टम अप्रभावी हो गया है. सरकार जब अनिर्णय की स्थिति में हो, नीतिगत फैसले करना छोड़ दे, यहां तक कि रूटीन टाइप काम भी न कर पा रही हो, तो फिर किसी तरह के विकास की बात बेमानी हो जाती है. पिछले तीन महीने लोकसभा चुनाव के आचार संहिता में चले गये. विकास के काम नहीं हुए. अब जब काम करने का मौका था, तो सरकारी सिस्टम फेल है. बजट का पैसा विभाग खर्च नहीं कर पा रहे हैं.
अब तक बजट का 10 प्रतिशत पैसा खर्च नहीं हो पाया है. शासन व्यवस्था को पटरी पर राजनीति लाती है. झारखंड में गंठजोड़ की राजनीति चल रही है. सरकार में शामिल घटक दलों का अपना-अपना एजेंडा है. आम आदमी के हक में काम करनेवाली जवाबदेह व्यवस्था कायम हो, इसकी चिंता किसी को नहीं है.
खाओ-पकाओ किस्म की राजनीति चल रही है. सरकार की घोषणाएं जमीन पर नहीं उतर रहीं. नीतियां बन नहीं रहीं या बनाना नहीं चाहते हैं. सवाल रोजगार का हो या फिर दूसरे मसले हों, सुलझाने की इच्छाशक्ति शासन व्यवस्था में बैठे लोगों में नहीं है. झारखंड विवादों के भंवरजाल से बाहर नहीं निकल पा रहा है. सरकार के स्तर पर साहसिक फैसले नहीं हो रहे हैं. झारखंड के हालात सुधारने हैं, तो नेतृत्व में बैठे लोगों को अपने राजनीतिक आचरण से लेकर काम करने का तरीका तक बदलना होगा. राजनीतिक सौदेबाजी से झारखंड का भला नहीं होने वाला है. जो अफसर मेहनती हैं, यथास्थिति को बदलना चाहते हैं, उन्हें सरकार को संश्रय और संरक्षण देना होगा.