खतरनाक होता प्लास्टिक

दुनिया के कई देशों की तरह भारत भी प्लास्टिक कचरे से छुटकारा पाने की कोशिश में है. पिछले साल विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक एक बार इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक से निजात पाने का लक्ष्य देश के सामने रखा था. कुछ दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2019 7:06 AM

दुनिया के कई देशों की तरह भारत भी प्लास्टिक कचरे से छुटकारा पाने की कोशिश में है. पिछले साल विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक एक बार इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक से निजात पाने का लक्ष्य देश के सामने रखा था.

कुछ दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में उन्होंने फिर आह्वान किया है कि इस वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक ही हम इस मुसीबत से पीछा छुड़ा लें. प्रधानमंत्री की बात का संज्ञान लेते हुए लोकसभा सचिवालय ने संसद परिसर में दोबारा इस्तेमाल नहीं होनेवाली प्लास्टिक की चीजों पर पाबंदी लगा दी है. संसद हमारे लोकतंत्र का केंद्र है और देश की सबसे बड़ी पंचायत है. उस परिसर में प्लास्टिक पर रोक का निर्णय न केवल सराहनीय है, बल्कि अनुकरणीय भी है. इस पहल से आशा बंधी है कि विभिन्न संवैधानिक, सरकारी और औद्योगिक संस्थाएं भी ऐसे कदम उठायेंगी और देशभर में एक ठोस संदेश भेजेंगी.

आमतौर पर रोजमर्रा की चीजें कूड़े-कचरे में बदल जाने के कुछ वक्त बाद खुद ही खत्म हो जाती हैं, लेकिन प्लास्टिक को खत्म होने में सैकड़ों साल लग जाते हैं. साल 2012 में ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक आकलन किया था कि भारत में रोजाना करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से 10 हजार टन से ज्यादा को बटोरा भी नहीं जाता है. बिखरा हुआ यह प्लास्टिक हमारी जमीन में मिल जाता है और नालों से होता हुआ नदियों व समुद्र में चला जाता है. उल्लेखनीय है कि समुद्र में जानेवाला दुनिया का 90 फीसदी प्लास्टिक सिर्फ 10 नदियों के जरिये पहुंचता है.

इनमें से दो नदियां- सिंधु और गंगा- भारत में बहती हैं. एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के अध्ययन के अनुसार, 2050 तक दुनियाभर के समुद्रों में जमा प्लास्टिक का वजन मछलियों से भी ज्यादा हो जायेगा. हमारे देश में एक बड़ी समस्या प्लास्टिक कचरे की मात्रा की सही जानकारी का न होना है. साल 2017-18 में देश के 35 क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में से सिर्फ 14 ने ही केंद्रीय बोर्ड को कचरे की मात्रा के बारे में बताया था.

इसका मतलब यह हुआ कि 60 फीसदी से ज्यादा राज्यों के आंकड़े ही हमारे पास नहीं हैं. हालांकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई की है, पर इसे प्रशासनिक स्तर पर ही ठीक करना होगा. प्लास्टिक उद्योग के मुताबिक भारत में हर साल 1.65 लाख टन प्लास्टिक की खपत होती है, जिसमें से 43 फीसदी एक बार इस्तेमाल होनेवाला प्लास्टिक होता है.

कुछ रिपोर्टों का मानना है कि प्लास्टिक के रिसाइकल करने के आंकड़े भी भरोसेमंद नहीं हैं. राज्य सरकारों को इस्तेमाल और रिसाइकल से जुड़े अपने नियमों व निर्देशों की समीक्षा कर तथा केंद्र सरकार के साथ मिल कर एक ठोस कानूनी पहल करना चाहिए. प्लास्टिक प्रदूषण और इससे जनित बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है. प्लास्टिक पर काबू पाने की अन्य देशों के सफल प्रयासों से भी सबक लेना चाहिए.

Next Article

Exit mobile version