जेटली की जगह भरना मुश्किल

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com अरुण जेटली, जिनसे मेरी पहचान लगभग 40 साल पुरानी थी, जब वे छात्र नेता थे. इमरजेंसी समाप्त हो चुकी थी और वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव करवा रहे थे. वक्त बीतता रहा और हमारी मुलाकातें होती रहीं. लेकिन, उनसे मेरी घनिष्ठता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2019 7:10 AM

डॉ अश्वनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

अरुण जेटली, जिनसे मेरी पहचान लगभग 40 साल पुरानी थी, जब वे छात्र नेता थे. इमरजेंसी समाप्त हो चुकी थी और वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव करवा रहे थे. वक्त बीतता रहा और हमारी मुलाकातें होती रहीं. लेकिन, उनसे मेरी घनिष्ठता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार में वित्त मंत्री के नाते अधिक हो गयी.

विभिन्न आर्थिक नीतियों से संबंधित मुद्दों को लेकर उनसे निरंतर मिलना होता था और उस दौरान उनके ज्ञान, देशभक्ति, निष्ठा और समझ की गहराई को नजदीक से जानने के अवसर मिलते रहे. जैसा कि सब जानते हैं कि अरुण जेटली का शुमार देश के नामी वकीलों में होता रहा है.

न्यायपालिका में उनकी पहचान एक सुलझे हुए वकील के रूप में रही, जिन्होंने राजनेता के रूप में अच्छी राजनीति भी की. अपनी भारी कमाई वाली वकालत को त्याग कर उन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला. एक समय तो उन्हें वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री दोनों का ही कार्यभार संभालना पड़ा था, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया भी.

अरुण जेटली ने जब वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला, तो उस समय उन्हें जो अर्थव्यवस्था विरासत में मिली, उसमें जीडीपी ग्रोथ की दर बहुत नीचे आ चुकी थी और महंगाई की दर काफी ऊपर थी.

इसके कारण रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बहुत बढ़ा दी थी, यानी अर्थव्यवस्था के सभी संकेतक उसके संकट ग्रस्त होने की ओर इशारा कर रहे थे. बैंकिंग समेत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र भ्रष्टाचार की चपेट में थे. बैंकों के एनपीए, जिन्हें अभी तक पिछली सरकार ने छुपा कर रखा था, धीरे-धीरे उजागर होने लगे थे. उद्योगों के उत्पादन बढ़ने की रफ्तार ऋणात्मक हो गयी थी और बढ़ते व्यापार घाटे के चलते रुपया भी भारी दबाव में था. भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया में हीन भावना से देखा जा रहा था.

अर्थव्यवस्था को सही पटरी पर लाना कालेधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना, बैंकों के संकट का निवारण और भारत को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर उसका अपेक्षित स्थान दिलाना, एनडीए की नयी सरकार की पहली जिम्मेदारी थी और खास तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली की ही जिम्मेदारी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया.

वित्तीय जानकार जानते थे कि पिछली सरकार के अंतिम बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपनी सरकार की कमियों को छुपाने के लिए काफी फेरबदल किये थे. इसलिए मंडराते राजकोषीय संकट का भी समाधान करना था. ऐसे में अनुभवी जेटली ने जान लिया था कि बैंकिंग संकट का दीर्घकालीन समाधान दिवालिया कानूनों के माध्यम से ही हो सकता है.

इसलिए नया दिवालिया कानून बनाया गया, जिसके अनुसार भुगतान में कोताही होने पर निश्चित समय के अंतर्गत व्यक्ति या फर्म को दिवालिया घोषित कर, उससे उधार वसूला जा सके. आज हम देख रहे हैं कि नया दिवालिया कानून बनने से न केवल बड़ी मात्रा में एनपीए की समस्या का समाधान हो सका है, बल्कि आज इस आज ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत दुनिया में 142वें से 77वें पायदान पर पहुंच चुका है.

वित्तीय समावेशन समय की जरूरत थी. आम आदमी बैंक की चौखट पर जाने से डरता था. अधिकांश लोगों के पास बैंक खाता नहीं था. प्रधानमंत्री की जनधन योजना के अंतर्गत छोटे से कालखंड में 32 करोड़ नये बैंक खाते और वह भी शून्य बैलेंस के साथ खोलना एक विश्व रिकॉर्ड था. यह अरुण जेटली के मंत्रालय ने संभव किया.

विपरीत परिस्थितियों में भी राजकोषीय घाटे को सीमित रखते हुई और सरकारी खर्च में अनुशासन और कुशलता लाकर महंगाई, जो यूपीए शासन में 12 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी, उसे तीन प्रतिशत तक लाने का श्रेय अरुण जेटली को ही जाता है.

इस सरकार की एक बड़ी चुनौती जीएसटी को लागू करने की थी. पिछले कई साल से जीएसटी की कवायद चल रही थी. उसमें प्रमुख बाधा यह थी कि जीएसटी के बारे में केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति नहीं थी.

अधिकांश राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार होने के बावजूद अरुण जेटली के नेतृत्व में जीएसटी लागू किया जा सका और दुनिया का सबसे बड़ा जीएसटीएन नेटवर्क बनाया जा सका. लगातार जीएसटी दरों को कम किया जाना और कुशलता से जीएसटी को लागू करवाना, इन सबके लिए देश हमेशा अरुण जेटली को याद रखेगा.

देश में भ्रष्टाचार का बड़ा कारण सब्सिडी और अन्य सरकारी खर्च में लीकेज रहा है. एक पूर्व प्रधानमंत्री ने यह कहा था कि केंद्र से जानेवाले पैसे में से मात्र 15 प्रतिशत ही अपेक्षित लाभार्थी तक पहुंच पाता है.

भ्रष्टाचार की समाप्ति कर अपेक्षित लाभार्थी तक सब्सिडी पहुंचाने का काम अरुण जेटली के नेतृत्व में तकनीक की मदद से संभव हो सका. माना जाता है कि कम से कम एक लाख करोड़ रुपये के राजस्व की बचत इस कारण से ही हो सकी. मोदी सरकार के तमाम लोकप्रिय कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में अरुण जेटली का एक विशेष योगदान माना जाता है.

चाहे चुनाव मैनेजमेंट हो या अर्थव्यवस्था मैनेजमेंट, जेटली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उनके निधन के कारण आज सरकार और संगठन में एक खालीपन महसूस किया जा रहा है. इसे भरना काफी कठिन काम होगा.

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