भाजपा के संकटमोचक थे जेटली

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in भारतीय जनता पार्टी में एक ऐसे नेता का नाम बता सकते हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी के जिनता करीब हो, उतना ही लालकृष्ण आडवाणी के नजदीक हो और उतना ही करीब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी हो, उस शख्स का नाम था अरुण जेटली. यह उनकी विशेषता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2019 7:14 AM
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
भारतीय जनता पार्टी में एक ऐसे नेता का नाम बता सकते हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी के जिनता करीब हो, उतना ही लालकृष्ण आडवाणी के नजदीक हो और उतना ही करीब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी हो, उस शख्स का नाम था अरुण जेटली. यह उनकी विशेषता थी कि अपनी खूबियों के कारण वह पार्टी के सभी नेताओं के करीबी बन जाते थे. वह भाजपा के संकटमोचक थे. पार्टी का अंदरूनी मामला हो अथवा विपक्षी दलों से तालमेल का सवाल हो, उनके पास हर संकट की चाबी थी.
जब भी किसी गंभीर विषय पर मीडिया रूबरू होना होता था, तब उसकी जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी जाती थी. भाजपा में वह अरुणजी के नाम से जाने जाते थे. भाजपा के शीर्ष नेताओं से तो उनके नजदीकी रिश्ते थे ही, कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट नेताओं तक से उनके निजी संबंध थे. मीडिया में भी उनका व्यापक संपर्क था. पत्रकार उन्हें इसलिए पसंद करते थे, क्योंकि वह किस्सों की खान थे.
इमरजेंसी से लेकर मौजूदा दौर तक के सत्ता के गलियारों के सैकड़ों किस्से वह रोचक ढंग से सुनाते थे. यही वजह थी कि चाहे संसद हो या भाजपा कार्यालय, पत्रकार हमेशा उन्हें घेरे लेते थे. अरुण जेटली का हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था. वह बहुत सहजता से एक भाषा से दूसरी भाषा में प्रभावी ढंग से अपनी बात रखते थे. संसद और पत्रकारवार्ता में इसका एहसास होता था.
वह वकालत से राजनीति में आये थे. इसलिए वकालत पेशे से जुड़े लोगों से भी उनका नजदीकी रिश्ता था. आशय यह कि उनका हर क्षेत्र के लोगों से व्यापक संपर्क था. जब तक स्वस्थ रहे, वह दिल्ली के लोधी गार्डन में सुबह टहलने जरूर जाते थे. वहां उनकी पूरी मित्र मंडली मौजूद रहती थी.
वहां गपशप भी होती थी. अरसे तक उन्हें भाजपा के अशोक रोड स्थित पुराने केंद्रीय कार्यालय से सटा आवास आवंटित था, लेकिन वह रहते अपने निजी आवास में थे. सरकारी आवास पार्टी के काम आता था. कई बार मित्रों के बेटे-बेटियों के शादी-विवाह भी उनके इस घर से संपन्न हुए. इनमें खेल जगत से लेकर पत्रकार बिरादरी तक के लोग शामिल हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्तों का पता इससे चलता है कि पीएम देश के बाहर थे और उन्होंने वहां से अरुण जेटली को श्रद्धांजलि देते हुए लगातार चार ट्वीट किये. उन्होंने लिखा- मैंने एक अहम दोस्त खो दिया है, जिन्हें दशकों से जानने का सम्मान मुझे प्राप्त था.
मुद्दों पर उनकी समझ बहुत अच्छी थी. वह अनेक सुखद स्मृतियों छोड़ गये हैं. हम उन्हें याद करते रहेंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि भाजपा और अरुण जेटली के बीच एक न टूटने वाला बंधन था. एक तेजस्वी छात्र नेता के तौर पर उन्होंने आपातकाल के समय हमारे लोकतंत्र की सबसे आगे आकर रक्षा की थी.
वह हमारी पार्टी के लोकप्रिय चेहरा थे, जिन्होंने समाज के अलग-अलग तबकों तक पार्टी के कार्यक्रर्मों और विचारों को स्पष्ट रूप से पहुंचाया. गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर अरुण जेटली के निधन पर शोक व्यक्त किया और इसे निजी क्षति बताया. उन्होंने लिखा है कि हमने न केवल संगठन का एक वरिष्ठ नेता खोया है, बल्कि परिवार का एक ऐसा अभिन्न सदस्य भी खोया है, जिनका साथ और मार्गदर्शन हमें वर्षों तक प्राप्त होता रहा. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर जेटली को श्रद्धांजलि दी.
उन्होंने लिखा- जेटली जी को हमेशा अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने और पटरी पर लाने के लिए याद किया जायेगा. भाजपा को अरुण जी की कमी खलेगी. अरुण जेटली जी ने कई क्षमताओं में देश की सेवा की और वह सरकार और पार्टी के लिए एक संपदा की तरह थे. हर मुद्दे पर उनकी गहरी समझ होती थी. उन्होंने अपने ज्ञान और स्पष्टवादिता की बदौलत कई दोस्त बनाये.
अरुण जेटली लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्हें 9 अगस्त को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था. उसके बाद उनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव आते रहे. वह पिछले कई वर्षों से किडनी से संबंधित बीमारी से पीड़ित थे.
उन्होंने 2018 में किडनी प्रत्यारोपण भी करवाया था. इसके बाद वह कई अन्य गंभीर बीमारियों से घिर गये थे. उन्हें अपने इलाज के लिए अमेरिका भी जाना पड़ा था. इस कारण वह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का अंतरिम बजट भी पेश नहीं कर पाये थे. नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जेटली के पास वित्त मंत्री का दायित्व था. इसके अलावा वह राज्यसभा में भाजपा के नेता सदन भी थे.
उन्होंने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ्य कारणों से खुद को राजनीति से अलग रखने का फैसला किया था. जेटली ने 1980 से भाजपा में सक्रिय थे और भाजपा के थिंक टैंक थे. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में राजनीतिक पहचान बनायी थी.
वह लगभग चार दशक तक भारतीय राजनीति में छाये रहे. सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने संसद अथवा विधानसभा का कभी कोई चुनाव नहीं जीता. बावजूद इसके, उनका राजनीति कद भारी भरकम था. 2014 के आम चुनाव में वह अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, पर कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से हार गये थे. वह पहले गुजरात से राज्यसभा सांसद थे. उन्हें मार्च, 2018 में उप्र से राज्यसभा के लिए चुना गया. वह चौथी बार राज्यसभा सांसद बने थे.
अरुण जेटली विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे थे. वह 1974 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. 1975 में आपातकाल के दौरान 19 महीनों तक जेल में रहे. 1977 में वह वकालत के क्षेत्र में सक्रिय हुए.
जेटली को 1989 में वीपी सिंह सरकार में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया था. वह 1991 से भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने. 1999 के दौरान उन्होंने भाजपा प्रवक्ता की जिम्मेदारी संभाली. इसके बाद पार्टी में लगातार उनका कद बढ़ता गया. 1999 में वाजपेयी सरकार में उन्हें सूचना प्रसारण राज्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी. इसी सरकार में उन्होंने कानून मंत्रालय का दायित्व भी संभाला.
भाजपा की केंद्र सरकार से सत्ता जाने के बाद जेटली लगातार संसद में और सदन के बाहर पार्टी की आवाज बने रहे. यूपीए सरकार की नीतियों को सड़क से संसद तक घेरते रहे. 2014 को जब केंद्र में मोदी सरकार बनी, तो अरुण जेटली को वित्त, रक्षा और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी सौंपी गयी.
साथ ही उन्हें राज्यसभा में पार्टी का नेता सदन भी बनाया गया. 2019 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने खुद को राजनीति से अलग कर लिया. पहले सुषमा स्वराज, फिर अरुण जेटली का जाना भाजपा के लिए दोहरा झटका है. इन दोनों नेताओं की कमी आसानी से पूरी नहीं हो पायेगी.

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