बेहतर हो मेडिकल शिक्षा
उत्कृष्ट चिकित्सा व्यवस्था के बिना सक्षम स्वास्थ्य तंत्र बनाना संभव नहीं है. हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा के सामने मानव संसाधन का अभाव एक बड़ी चुनौती है. चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या तो कम है ही, विशेषज्ञों का भी बहुत अभाव है. यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि बदलते समय की स्वास्थ्य समस्याओं के […]
उत्कृष्ट चिकित्सा व्यवस्था के बिना सक्षम स्वास्थ्य तंत्र बनाना संभव नहीं है. हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा के सामने मानव संसाधन का अभाव एक बड़ी चुनौती है. चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या तो कम है ही, विशेषज्ञों का भी बहुत अभाव है.
यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि बदलते समय की स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान की क्षमता चिकित्सकों में हो. जानकारों की मानें, तो हमारे मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम पुराने हो चुके हैं और उसमें वर्तमान और भविष्य के अनुरूप बदलाव अपेक्षित हैं. हाल के वर्षों में मेडिकल शिक्षा में सुधार के लिए अनेक अहम कदम उठाये गये हैं. साल 2016 से अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा (नीट) आयोजित हो रही है.
नीट की शुरुआत 2013 में ही हो गयी थी, परंतु विवादों के कारण इसे रोकना पड़ा था. इस वर्ष संसद ने राष्ट्रीय मेडिकल आयोग गठित करने के विधेयक को पारित कर दिया है. यह आयोग भारतीय चिकित्सा परिषद् का स्थान लेगा तथा इसका काम चिकित्सा शिक्षा, पेशे और संस्थाओं की निगरानी और बेहतरी करना होगा. आयोग को नियमन करने का अधिकार भी है. सरकार ने कुछ दिन पहले 75 नये मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा भी की है. ये कॉलेज जिला स्तर पर स्थापित होंगे, जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने में भी बड़ी मदद मिलेगी. अगले साल तक 15,700 सीटें और जुड़ जायेंगी.
बीते पांच सालों में स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों में 45 हजार सीटें बढ़ी हैं. इस अवधि में 82 नये मेडिकल कॉलेज भी खोले गये हैं. देश के मौजूदा पांच सौ से ज्यादा मेडिकल कॉलेजों से सालाना करीब 70 हजार स्नातक चिकित्सक निकलते हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 23 हजार ही आगे के पाठ्यक्रमों के लिए योग्य होते हैं.
पिछली नीट परीक्षा में पोस्ट-ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए केवल 70 हजार ही योग्य पाये गये थे, जबकि परीक्षार्थियों की कुल संख्या 1.40 लाख से अधिक थी. नये कॉलेजों और सीटें बढ़ाने की जरूरत इसलिए भी है कि इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक और योग्य छात्रों की संख्या भी बढ़ रही है. इस वर्ष स्नातक स्तर पर प्रवेश के लिए 14 लाख परीक्षार्थी थे, जिनमें करीब आठ लाख योग्य पाये गये हैं.
इसके साथ मेडिकल कॉलेजों के नियमन पर भी ध्यान देने तथा नयी पद्धतियों को अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. तकनीक, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से दुनिया के अनेक देशों के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में बदलाव आ रहा है. भारत में भी कुछ जगहों पर अत्याधुनिक तंत्र लगाये जा रहे हैं.
इन्हें अपनाने की जरूरत है. चिकित्सा परिषद् से जुड़े विवादों और खामियों से भी शिक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा है. उम्मीद है कि नीट और आयोग जैसी पहलों से उन कमियों को दूर किया जा सकेगा. चिकित्सा शिक्षा को बेहतर बनाकर ही समृद्ध और स्वस्थ भारत का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है.