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आप कैमरे की नजर में हैं!

सन्नी कुमार टिप्पणीकार sunnyand65@gmail.com आज का मनुष्य दूसरे मनुष्य की नजर में हो न हो, कैमरे की नजर में जरूर होता है. आप चाहे रेलवे स्टेशन पर हों या किसी शॉपिंग मॉल में या फिर अपने दफ्तर में, हर जगह यह सूत्रवाक्य लिखा मिलेगा कि ‘सावधान! आप कैमरे की नजर में हैं’. जहां-जहां मनुष्य की […]

सन्नी कुमार
टिप्पणीकार
sunnyand65@gmail.com
आज का मनुष्य दूसरे मनुष्य की नजर में हो न हो, कैमरे की नजर में जरूर होता है. आप चाहे रेलवे स्टेशन पर हों या किसी शॉपिंग मॉल में या फिर अपने दफ्तर में, हर जगह यह सूत्रवाक्य लिखा मिलेगा कि ‘सावधान! आप कैमरे की नजर में हैं’. जहां-जहां मनुष्य की पहुंच है, लगभग वहां तक कैमरे की नजर उसका पीछा करती है.
अब तो कुछ स्कूलों के क्लासरूम में भी कैमरे लगाये जा रहे हैं कि बच्चों पर अभिभावक की ‘नजर’ बनी रहे. यह कैमरा जिसे तकनीकी रूप से सीसीटीवी कैमरा कहा जाता है, अपनी इस सर्वव्यापक उपस्थिति का औचित्य आप की ‘सुरक्षा’ करने से सिद्ध करती है. लेकिन, क्या इसका प्रभाव भी बस यहीं तक सीमित रहता है? इसका जवाब जानने के लिए हमें इस ‘नजर के खेल’ में निहित दर्शन को समझना होगा.
दरअसल, आज हम जिस सीसीटीवी कैमरे को देख रहे हैं, इस तकनीक के दर्शन को ठोस रूप अठारहवीं सदी में ही मिल चुका था, जब जेरमी बेंथम जैसे उपयोगितावादी चिंतक ने ‘पेनोप्टीकोन’ का निर्माण किया था. वस्तुतः वह इंग्लैंड में औद्योगीकरण का दौर था और एक औद्योगिक परिसर में ढेर सारे मजदूर काम करते थे. ये मजदूर ‘अनुशासन’ में काम करें, इसके लिए पूरी की पूरी निगरानी टीम होती थी. निगरानी रखने की यह विधि खर्चीली तो थी ही, पूरी तरह प्रभावी भी नहीं थी.
निगरानी रखने की इसी प्रक्रिया के रूप में बेंथम ने ‘पेनोप्टीकोन’ की परिकल्पना की. यह एक वृत्ताकार या अर्धवृत्ताकार भवन संरचना होती थी, जिसके केंद्र में एक ऊंचा टावर होता था. भवन का निर्माण इस प्रकार किया जाता था कि टावर में स्थित एक व्यक्ति भवन के अलग-अलग हिस्सों में काम करनेवाले व्यक्तियों को तो देख सके, किंतु उनमें से कोई व्यक्ति टावर में स्थित निगरानी रखनेवाले व्यक्ति को न देख सके.
हालांकि व्यावहारिक रूप से एक व्यक्ति हर समय हरेक कामगार पर नजर नहीं रख सकता था, लेकिन कामगार को यह नहीं पता होता था कि किस वक्त उस पर नजर रखी जा रही है, किंतु सैद्धांतिक रूप से उस पर हर वक्त नजर रखी जा रही थी. इस प्रकार की भवन संरचना किसी के शरीर में दूसरे की आंख प्रतिस्थापित करने के दार्शनिक भाव से मूर्त हुई थी.
बेंथम का विचार था कि यदि किसी व्यक्ति के मस्तिष्क को नियंत्रण में कर लिया जाये, तो उसके शरीर पर निगरानी की आवश्यकता नहीं रह जायेगी. किसी के मस्तिष्क में यह भय उत्पन्न कर देना कि उस पर नजर रखी जा रही है, उसके शरीर को अपने आप ही नजर रखनेवाले के हिसाब से अनुकूलित कर देता है.
आज का सीसीटीवी कैमरा भी इसी निगरानी दर्शन पर काम करता है, जिसमें दो बातें चिंताजनक हैं. एक तो यह कि हर व्यक्ति संदिग्ध है, इसलिए उस पर नजर रखी जानी चाहिए तथा दूसरा, किसी व्यक्ति के अंत:करण को अदृश्य भय से संचालित करना. ये दोनों ही बातें मनुष्यता को विभाजित कर उसका वस्तुकरण करती हैं. अत: सुरक्षा के नाम पर कैमरा लगाते समय यह ध्यान रहे कि निगरानी समाज न बन जाये.

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