या इलाही ये माजरा क्या है!

।। विजय विद्रोही ।। कार्यकारी संपादक एबीपी न्यूज कहीं ऐसा तो नहीं कि बुनियादी मुद्दों से ध्यान बंटाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा है? महंगाई-भ्रष्टाचार कम करने और रोजगार देने जैसे मुद्दों पर सत्ता में आयी थी मोदी सरकार. दो महीनों के कार्यकाल में बहुत कुछ हुआ है, लेकिन बहुत कुछ नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 30, 2014 4:36 AM

।। विजय विद्रोही ।।

कार्यकारी संपादक

एबीपी न्यूज

कहीं ऐसा तो नहीं कि बुनियादी मुद्दों से ध्यान बंटाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा है? महंगाई-भ्रष्टाचार कम करने और रोजगार देने जैसे मुद्दों पर सत्ता में आयी थी मोदी सरकार. दो महीनों के कार्यकाल में बहुत कुछ हुआ है, लेकिन बहुत कुछ नहीं भी हुआ है.

गोवा में भाजपा सरकार है. वहां के एक मंत्री कहते हैं, मोदी हिंदुस्तान को हिंदू राष्ट्र बना देंगे. अगले दिन उप मुख्यमंत्री का बयान आता है कि हिंदुस्तान तो पहले से ही हिंदू राष्ट्र है. ऐसे बयानों पर पार्टी के केंद्रीय नेता या तो चुप्पी साधते हैं या फिर हिंदुत्व को जीने का ढंग बता कर बहस करते हैं.

तेलंगाना के एक भाजपा नेता के लक्ष्मण कहते हैं कि सानिया मिर्जा को राज्य का ब्रांड एंबेसडर नहीं बनाया जाना चाहिए. इस बयान से केंद्रीय नेता किनारा करते हैं, लेकिन उस नेता को कारण बताओ नोटिस जारी करने से परहेज करते हैं. साथ ही सानिया पर लगे एक पुराने आरोप को दोहराते हैं.

शिवसेना के सांसद दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में खाना परोसनेवाले एक मामूली से कर्मचारी के मुंह में जबरन रोटी डालने की कोशिश करते हैं. भाजपा इस आचरण को मर्यादा के खिलाफ तो बताती है, पर इसे कानून-व्यवस्था का मामला बता कर सांसद के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत नहीं महसूस करती.

विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया मुसलमानों को चेतावनी देते हैं कि वे गोधरा और मुज्जफरनगर को नहीं भूलें. विहिप के ही अशोक सिंघल मुसलमानों को धमकी देते हैं कि बहुसंख्यकों का विरोध करके वे अपने अस्तित्व को ही दावं पर लगा रहे हैं. इस पर भाजपा के बड़े नेता टिप्पणी करने से खुद को रोकते हैं.

पश्चिमी यूपी में एक मंदिर में लाउडस्पीकर लगाने को लेकर विवाद होता है, तो आसपास के भाजपा सांसदों, मंत्रियों समेत पूरा कुनबा वहां जुट जाता है. ईद से ठीक पहले पंचायत करने का ऐलान किया जाता है. यहां पार्टी आक्रामक अंदाज में पेश आती है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि मोदी सरकार का गठन हुए अभी दो महीने ही हुए हैं, अभी से संघ परिवार इतना आक्रामक रुख क्यों अपना रहा है, मुसलमानों का नाम लेकर उन्हें अपने निशाने पर क्यों ले रहा है?

बात-बात पर ट्वीट करनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक खामोशी भी कई सवाल खड़े कर रही है. हो सकता है कि संघ परिवार के साथ-साथ भाजपा के एक धड़े को भी लगता हो कि इस देश में धारा 370 और समान नागरिक संहिता पर बहस क्यों नहीं होनी चाहिए.

साथ ही, यूपी में अगर सपा और कांग्रेस मुसलिम तुष्टिकरण की राजनीति करती हैं, तो भाजपा को बहुसंख्यकों की राजनीति के उस सिलसिले को आगे क्यों नहीं नहीं बढ़ाना चाहिए, जिसकी शुरुआत उसने लोकसभा चुनाव में की थी. पर, संघ परिवार को समझना चाहिए कि विपक्ष में रहते हुए जिन मुद्दों पर आसानी से बोला जा सकता है, उन पर सत्ता में आने के बाद संयम बरतना जरूरी होता है.

सरकार बने अभी दो महीने ही हुए हैं. अभी से इन मसलों को उठाना जल्दबाजी होगी और अगर बुनियादी मसले नहीं सुलङो, तो ऐसे बयानों का उल्टा असर भी हो सकता है.

भाजपा का चुनाव जीतना, मोदी का प्रधानमंत्री बनना, संघ द्वारा खुल कर भाजपा का साथ देना, धारा 370 और समान आचार संहिता जैसे मुद्दे को बार-बार उठाना, मुकदमेबाजी में फंसे अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाना, संघ के कार्यकर्ताओं को भाजपा संगठन में भेजना, भाजपा की प्रदेश इकाइयों में भी संघ के सीधे दखल को बढ़ाना.. इन सब कड़ियों को जोड़ कर देखा जाये तो विपक्ष के इन आरोपों में दम नजर आता है कि संघ परिवार एक सोची-समझी रणनीति के तहत अपने एजेंडे को फिर से राष्ट्रीय बहस की परिधि में ला रहा है.

या कहीं ऐसा तो नहीं कि बुनियादी मुद्दों से ध्यान बंटाने के लिए यह सारा खेल खेला जा रहा है? महंगाई-भ्रष्टाचार कम करने और रोजगार देने जैसे मुद्दों पर सत्ता में आयी थी मोदी सरकार. दो महीनों के कार्यकाल में बहुत कुछ हुआ है, लेकिन बहुत कुछ नहीं भी हुआ है. आलू-प्याज, टमाटर आदि के दाम जिस तरह मनमोहन राज में सीढ़ी चढ़ते थे, वैसा ही अब भी हो रहा है.

तब कांग्रेस के नेता अपने बचाव में जो कुछ कहते थे, वही अब भाजपा नेता बोल रहे हैं. सरकार का यह कहना ठीक हो सकता है कि महंगाई रातोंरात कम नहीं होगी, अभी जो कदम उठाये जा रहे हैं उनका असर कुछ महीनों बाद दिखेगा. लेकिन, वोटर बेसब्र होता है. भाजपा को उत्तराखंड में तीन विधानसभा सीटों के उपचुनावों और पंचायत चुनावों के नतीजों पर गौर करना चाहिए. दोनों ही चुनाव मोदी की तसवीर को आगे रख कर लड़े गये थे, लेकिन पार्टी पिट गयी.

मोदी ने चुनावों के दौरान भले ही सब्जबाग दिखाये हों, पर जनता जानती है कि वे कोई जादूगर नहीं हैं जो रातोंरात अच्छे दिन ले आयेंगे. लेकिन, जनता तभी सब्र करेगी जब सरकार अपने वादों पर काम करती दिखे और संघ तथा हिंदुत्व के एजेंडे को हाशिये पर रखे. विवादास्पद बयानों से निशाने पर संघ परिवार नहीं आता, उंगलियां मोदी पर ही उठती हैं.

जिस जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ मोदी के नाम पर वोट दिया है, उसकी उम्मीदों की भ्रूण हत्या रोकने की जिम्मेदारी मोदी की ही है. अभी गालिब होते तो शायद यही कहते- ‘या इलाही ये माजरा क्या है!’

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