पैसों को ले गुरु-शिष्य की परंपराओं में आ रहा ह्रास

शिक्षक दिवस भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. वह पेशे से शिक्षक थे.भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा वर्षों पुरानी है. भारत में ऐसे-ऐसे विद्यार्थी हुए जिन्होंने गुरु की आज्ञा के कारण बहुत से त्याग किये. आज भी गुरु-शिष्य की परंपराओं में एकलव्य एवं अरुणी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 6, 2019 7:47 AM
शिक्षक दिवस भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. वह पेशे से शिक्षक थे.भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा वर्षों पुरानी है. भारत में ऐसे-ऐसे विद्यार्थी हुए जिन्होंने गुरु की आज्ञा के कारण बहुत से त्याग किये. आज भी गुरु-शिष्य की परंपराओं में एकलव्य एवं अरुणी का नाम लिया जाता है. पहले शिक्षक और ब्राह्मण पैसों की खातिर अपना कर्म नहीं किया करते थे, परंतु आधुनिक युग में जहां पैसों की अहमियत बढ़ गयी है, वहां शिक्षक और ब्राह्मण भी पैसों के पीछे पड़ गये हैं.
इस कारण शिक्षकों एवं छात्रों के बीच का संबंध में कुछ ह्रास आया है, क्योंकि शिक्षक भी पैसे के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं. अब समय आ गया है कि गुरु और शिष्य की परंपराओं को आर्थिक रूप से न देखकर इसे शैक्षणिक रूप में देखा जाये.
आनंद पांडेय, रोसड़ा (सम्स्तीपुर)

Next Article

Exit mobile version