गुरु-शिष्य की अनोखी विरासत
कविता विकास लेखिका kavitavikas28@gmail.com सत्तर साल की एक सेवानिवृत्त शिक्षिका की आंखों की रोशनी और सुनने की क्षमता कम हो गयी थी. कल वह अपार खुशियों से भर उठीं, जब शिक्षक दिवस पर ऊंचे पदों पर आसीन उनके कुछ विद्यार्थी उनका आशीर्वाद लेने आये. शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर से उनका इलाज कराने की जिम्मेदारी भी […]
कविता विकास
लेखिका
kavitavikas28@gmail.com
सत्तर साल की एक सेवानिवृत्त शिक्षिका की आंखों की रोशनी और सुनने की क्षमता कम हो गयी थी. कल वह अपार खुशियों से भर उठीं, जब शिक्षक दिवस पर ऊंचे पदों पर आसीन उनके कुछ विद्यार्थी उनका आशीर्वाद लेने आये. शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर से उनका इलाज कराने की जिम्मेदारी भी ली.
यह कोई महाभारत युग की घटना नहीं, बल्कि आज की घटना है, जब बच्चे और उनके शिक्षक अनुचित व्यवहार और अधकचरे ज्ञान के घेरे में रखे जा रहे हैं. युग में परिवर्तन किसी से छुपा नहीं है. लेकिन ओहदे के अनुसार हमारे देश में निचली श्रेणी में रखे जाने वाले शिक्षकगण की उपयोगिता और विशेषता से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.
मानसिक साधना के तीन सोपान हैं- स्वाध्याय, सुसंगति और सेवा. इसमें सेवा का सबसे ज्यादा महत्व है. इसे हर कोई अपने स्तर पर कर सकता है. मनुष्य के पास तीन तरह की शक्ति होती है- बाहुबल, बुद्धिबल और धनबल. इनमें से बुद्धिबल न हो, तो बाकी दो का उपयोग भी गलत दिशा में हो सकता है.
विद्यार्थियों में ज्ञान और बुद्धि निखारने का श्रेय आज भी स्कूल और शिक्षकों को जाता है. आज शिक्षकों पर ज्यादा जिम्मेदारी है. पढ़ाने के अलावा उन्हें अन्य कामों में लगा दिया जाता है, जबकि शिक्षक का काम बच्चों में उच्च आदर्श भरना है, ताकि उनके सुदृढ़ भविष्य की बुनियाद मजबूत हो सके.
एक शिक्षक की नजर से देखा जाये, तो बच्चों में व्याकुलता बहुत बढ़ गयी है. धैर्य और सहनशीलता की काफी कमी हो गयी है. किसी काम के पूरा होने के पहले ही उसके परिणाम की चिंता उन्हें सताने लगती है.
बढ़ती प्रतियोगिता में अपना स्थान सुनिश्चित करने के डर से उपजा यह तनाव उन्हें अवसाद में डुबो देता है. ऐसी स्थिति में कई बार माता-पिता भी शिक्षकों का ही आश्रय लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे बच्चों का मनोबल बेहतर तरीके से बढ़ा सकते हैं.
इतिहास उदाहरणों से भरा है, जहां गुरु की आज्ञा पर शिष्य अपनी जान उत्सर्ग कर देते थे. आज भौतिकवादी विचारधारा की प्रमुखता और अर्थ कमाने के लिए गलत तरीकों के उपयोग के साथ पाठ्यक्रम में बदलाव भी बड़ा कारण है.
वो विषय और पाठ जिनसे मूल्यों और संस्कृति की रक्षा होती थी, अब गौण हो चुके हैं. रोजगारोन्मुखी विषय ही ज्यादातर पढ़ाये जाते हैं. बुजुर्ग कहानियां सुना कर नाती-पोतों को अपनी समृद्ध संस्कृति से परिचय कराते थे, यह परंपरा खत्म हो गयी है.
खेल, कला और संगीत के क्षेत्र तो और भी उदाहरण योग्य हैं, जहां कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी हुनर पनप नहीं सकता. हमें गुरुओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता जीवनपर्यंत बनाये रखनी चाहिए, क्योंकि गुरु दूसरों का जीवन-निर्माण करनेवाले असाधारण प्राणी होते हैं.
आज देश-विदेश में बसे विद्यार्थी जब शिक्षक दिवस पर अपने गुरुओं को फोन करते हैं, तो एक शिक्षक के लिए वह बहुत ही गौरवान्वित क्षण होता है. आइए, भारत की धरती पर पनपनेवाली गुरु-शिष्य की अनोखी विरासत को जीवित रखने में अपना योगदान दें.