भारी जुर्माने का दर्द
परिवहन नियमों के उल्लंघन पर जनता को दर्द मिलना ही चाहिए, लेकिन सरकार तो उसे घायल ही किये दे रही है, या कहें तो पूरी तरह बर्बाद कर देने पर तुली हुई है. आश्चर्य की बात है कि जुर्माने की राशि दस गुणा होते ही ट्रैफिक पुलिस कैसे इतनी रेस हो गयी. यही तेजी या […]
परिवहन नियमों के उल्लंघन पर जनता को दर्द मिलना ही चाहिए, लेकिन सरकार तो उसे घायल ही किये दे रही है, या कहें तो पूरी तरह बर्बाद कर देने पर तुली हुई है. आश्चर्य की बात है कि जुर्माने की राशि दस गुणा होते ही ट्रैफिक पुलिस कैसे इतनी रेस हो गयी. यही तेजी या मुस्तैदी पहले वाले कम जुर्माने में भी पुलिस दिखाती थी, तो ऐसा नहीं था कि नियमों के उल्लंघन करने वालों की धड़कने तेज नहीं होती थी या भय नहीं होता था. डर तो लगा ही रहता था. क्या ट्रैफिक पुलिस से लैस चौक चौराहों पर बिना हेलमेट, बिना सीट बेल्ट लगाये कोई गुजरने का साहस करता था?
क्या ट्रिपल राइडर ऐसे चौराहों से गुजर जाते थे? पहले पुलिस ने इतनी तो चुस्ती-फुर्ती कभी नहीं दिखाई. जितनी दिखाती थी, उतने भर से ही 90% लोग नियमों का पालन कर ही रहे थे. इसलिए सरकार थोड़ी संवेदनशील बने. जुर्माने की राशि कम करे और सख्ती-चौकसी बढ़ा कर देखे, तो चारों तरफ मचा हाहाकार कम हो जायेगा.
पारस नाथ सिन्हा, हरमू एच कॉलोनी, रांची