मरुस्थलीकरण पर रोक

पूरे विश्व में लगभग दो अरब हेक्टेयर भूमि पर क्षरण का खतरा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह क्षेत्र चीन के आकार का दो गुना है. इतना ही नहीं, 1.20 करोड़ हेक्टेयर भूमि हर साल मरुस्थल में बदल जाती है. भूमि क्षरण की समस्या के समाधान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2019 6:13 AM

पूरे विश्व में लगभग दो अरब हेक्टेयर भूमि पर क्षरण का खतरा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह क्षेत्र चीन के आकार का दो गुना है. इतना ही नहीं, 1.20 करोड़ हेक्टेयर भूमि हर साल मरुस्थल में बदल जाती है. भूमि क्षरण की समस्या के समाधान के लिए 450 अरब डॉलर सालाना खर्च का आकलन है.

इस विध्वंसक प्रक्रिया से निकट भविष्य में विश्व में 3.2 अरब लोगों का जीवन संकटग्रस्त हो सकता है. इस मसले पर विमर्श के लिए 195 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने भारत में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भागीदारी की. आयोजन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व से जल संरक्षण को प्राथमिकता देने का आह्वान किया है. भारत ने इस दिशा में ठोस पहल के साथ प्लास्टिक पर नियंत्रण, स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छता पर भी ध्यान केंद्रित किया है.

कृषि भूमि के स्वास्थ्य का ब्योरा रखा जा रहा है, प्राकृतिक तरीकों से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा कम पानी के इस्तेमाल पर बल दिया जा रहा है. अन्य देशों को भी ऐसे उपाय करने चाहिए तथा इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा प्रयासों पर जोर देना चाहिए. दुनिया के अनेक देशों की तरह भारत भी भूमि क्षरण की समस्या से जूझ रहा है.

वन क्षरण, अत्यधिक कृषि गतिविधियों, नमी घटने आदि कारणों से हमारे देश की 30 प्रतिशत से अधिक भूमि क्षरण से ग्रस्त है. यह क्षेत्र मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के क्षेत्रफल के लगभग बराबर है. इससे 72 हजार करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान भी हो चुका है, जो पिछले साल के कृषि बजट से 24 प्रतिशत अधिक है.

क्षरण और मरुस्थलीकरण से हमारे सकल घरेलू उत्पादन में 2.5 प्रतिशत का घाटा तो है ही, उपज में भी गिरावट आ रही है. इससे जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव भी सघन होते जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि भारत 2030 तक 2.60 करोड़ हेक्टेयर भूमि के क्षरण का उपचार करेगा. पहले यह लक्ष्य 2.10 करोड़ हेक्टेयर का था.

उन्होंने व्यापक वृक्षारोपण और वन विस्तार के द्वारा ढाई से तीन अरब मीटरिक टन कार्बन को अवशोषित करने के प्रयासों का भी उल्लेख किया. इस समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता इसलिए भी है कि हमारे देश में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा बसता है, लेकिन हमारे हिस्से में भूमि का 2.4 प्रतिशत भाग ही है. साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्धारित सत्तत विकास लक्ष्यों में भी भूमि क्षरण को रोकने को प्राथमिकता दी गयी है.

लेकिन अभी तक भारत समेत कुल 122 देशों ने ही इस पर सहमति जतायी है. आशा है कि इस आयोजन और ‘दिल्ली घोषणा’ के बाद इस प्रयास में अन्य देश भी शामिल होंगे. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान के बढ़ने तथा मानवीय जीवन के लापरवाह तौर-तरीकों ने धरती को तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है. ऐसे में भूक्षरण को रोकना मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है.

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