ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे
मुकुल श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार sri.mukul@gmail.com पिछले दिनों करीब पच्चीस साल के बाद अपने पुराने स्कूल जाना हुआ. वह शहर जहां मैंने अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल गुजारे थे. वहां मुझे अपना सबसे प्यारा दोस्त मिला, जिसे मैंने पिछले पच्चीस साल से न देखा था और न ही बात की थी. वह स्कूल के दिनों का […]
मुकुल श्रीवास्तव
स्वतंत्र टिप्पणीकार
sri.mukul@gmail.com
पिछले दिनों करीब पच्चीस साल के बाद अपने पुराने स्कूल जाना हुआ. वह शहर जहां मैंने अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल गुजारे थे. वहां मुझे अपना सबसे प्यारा दोस्त मिला, जिसे मैंने पिछले पच्चीस साल से न देखा था और न ही बात की थी. वह स्कूल के दिनों का मेरा सबसे अच्छा दोस्त था. जब मैं वहां पहुंचा, तो इंसानी रिश्ते का जो एक नया रंग देखा, वह था दोस्ती का रंग.
उसके प्यार और अपनत्व के आगे मुझे अपने रिश्ते फीके से लगे. जिंदगी में ज्यादातर रिश्ते हमें बने-बनाये ही मिलते हैं, जिसमें अपनी पसंद का कोई मतलब नहीं होता है. लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसे हम अपने जीवन में खुद बनाते हैं. हमारी फिल्मों ने प्यार-मोहब्बत के बाद किसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है, वह दोस्ती है. ‘जाने तू या जाने न’, ‘रॉक ऑन’, ‘दिल चाहता है’ और ‘रंग दे बसंती’ जैसी फिल्मों में दोस्ती को ही मुख्य आधार बनाया गया है.
दोस्तों को दुआ देता यह गाना जब आप सुनेंगे, तो निश्चित ही आपको अपने सबसे अच्छे दोस्त की याद आयेगी- ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों. इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई होगा, जो अपने दोस्तों का एहसान न मानता हो. दोस्ती यानी एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें प्यार, तकरार, इजहार, इनकार, स्वीकार जैसे सभी भावों का मिश्रण है. जब दोस्ती पर गानों की बात चली है, तो सबसे ज्यादा चर्चित गाना शोले का ही हुआ- ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे’.
दोस्ती है ही ऐसा रिश्ता, जिसके लिए न समाज की स्वीकृति चाहिए और न ही मान्यताओं और परंपराओं का सहारा. तभी तो कहा गया है- बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा’.
जरा सोचिए, बगैर दोस्ती के हमारा जीवन कैसा होता? आॅफिस, स्कूल, सिनेमा हॉल, रेस्टोरेंट बगैर दोस्तों के कैसे लगते?अाप अपने स्कूल का पहला दिन याद कीजिए, जब आपका कोई दोस्त नहीं था या किसी दिन अकेले कोई फिल्म देखने चले जाइये और उसके बाद कहीं बाहर अकेले खाना खाइये. फिल्म: खुदगर्ज का यह गाना शायद इसी विचार को आगे बढ़ा रहा है- ‘दोस्ती का नाम जिंदगी’. अगर कभी आपको दोस्ती करनी पड़े, तो उस मौके के लिए भी गाना है- ‘हम से तुम दोस्ती कर लो ये हसीं गलती कर लो’.
जिंदगी में रिश्ते हमेशा एक जैसे नहीं होते और यह बात दोस्ती पर भी लागू होती है. कभी दोस्तों के चुनाव में भी गलती हो जाती है या गलतफहमियों से दोस्तों से दूरी भी हो जाती है.
खैर हर रिश्ता कभी भी एक जैसा नहीं होता और वह बात दोस्ती पर भी लागू होती है. आजकल की भागती-दौड़ती दुनिया में अक्सर इस बात को दोष दिया जाता है कि अब रिश्तों की संवेदनाएं खत्म हो रही हैं, पर एक रिश्ता इस तेज रफ्तार दुनिया में आज भी बचा हुआ है. वह है दोस्ती. दोस्त तो दोस्त होते हैं. यह शिकायत हो सकती है कि समय की कमी है, पर जब दोस्त मिलते हैं, तो दोस्ती फिर से जवान हो जाती है.