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एक था मोहन

मिथिलेश कु. राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com आप जहां हैं वहीं झूठ की खेती को लहलहाते हुए देख रहे होंगे. आप देख रहे होंगे कि वहां हिंसा का बोलबाला दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. आप कहते होंगे कि अब संतुलन मुश्किल है. लोग गोली-बंदूक की बात कर रहे हैं और देश एटम बम की बात […]

मिथिलेश कु. राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
आप जहां हैं वहीं झूठ की खेती को लहलहाते हुए देख रहे होंगे. आप देख रहे होंगे कि वहां हिंसा का बोलबाला दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. आप कहते होंगे कि अब संतुलन मुश्किल है. लोग गोली-बंदूक की बात कर रहे हैं और देश एटम बम की बात को हवा में उछाल रहा है.
हिंसा और झूठ के बढ़ते कारोबार की गिरफ्त से इस दुनिया को निकालना आपको असंभव सा लगता होगा. आप मन ही मन इस बात को स्वीकारते होंगे कि अब यही इस दुनिया की नियति है. चुप्पी, उदासी, अफसोस और दुख के कारण दुनिया को इन बलाओं से निजात दिलाने के लिए ठोस पहल की जरूरत की ओर आपका ध्यान जाता ही नहीं होगा.
जब आप हिंसा और झूठ पर दुख प्रकट कर रहे होंगे, तब आपके जेहन में यह बात आती ही नहीं होगी कि इस देश में डेढ़ सौ साल पहले एक ऐसे व्यक्ति ने जन्म लिया था, जिसने सत्य और अहिंसा पर अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया. आपको यह याद नहीं आता होगा कि जिसे आप राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित करते हैं, पूरी दुनिया में वे सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में जाने जाते हैं.
लेकिन तभी अगर आपको उस काया की याद आ गयी, तो आपकी हताशा कम हो जायेगी. उस सूखी काया में आपको एक आशा की किरण नजर आयेगी. बदन पर धोती लपेटे और हाथ में लाठी लिये वह प्रकट हो जायेगा और आपको अफसोस कि अतल गहराइयों में डूबने से बचा लेगा.
यदि आप तभी अपने दिमाग पर जोर डालेंगे, तो आपको रास्ता भी सूझ जायेगा कि आगे के रास्ते में बंदूक की गोली के स्थान पर चिड़ियों की कलरव को बढ़ाया जा सकता है. झूठ की खेती के स्थान पर सत्य की हरियाली को लहराया जा सकता है. शांति स्थापना के मार्ग बंद नहीं हुए हैं. उम्मीद अभी शेष है.
तब आप चहकने लगेंगे. आपके दिमाग में सकारात्मक विचार आने लग जायेंगे. आप खुद से कहने लगेंगे कि हमारे सामने भले कई बिगड़ी पीढ़ियां बम-बंदूक लिये हंस रही हो, लेकिन ऐसी पीढ़ियां भी आ रही हैं, जो न बम-बंदूक जानती हैं और न ही झूठ-फरेब. आपकी आंखों के सामने स्कूल जा रहे बच्चों की तस्वीर नाचने लगेगी और आंखों की चमक बढ़ जायेगी.
फिर आपकी वह सोच कि पचीस-पचास साल बाद क्या होगा इस दुनिया का, इस पर यह सोच भारी पड़ जायेगी कि पचीस-पचास साल बाद दुनिया कितनी खूबसूरत लगेगी. हिंसा और असत्य, जिसने आपके विश्वास को डिगा दिया था और आप हताशा की खाई में गिरे जा रहे थे, लगेगा कि बच्चों ने आपको वहां से निकाल लिया है. तब आप योजना बनायेंगे कि क्यों न सत्य और अहिंसा के मंत्र को बच्चों को रटाया जाये.
बापू की 150वीं जयंती के अवसर पर बिहार के स्कूलों में एक प्रयास शुरू किया जा रहा है. वहां बच्चे ‘बापू की पाती’ और ‘एक था मोहन’ शीर्षक पुस्तक की छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से सत्य और अहिंसा वाले गांधी विचार को प्रत्येक दिन चेतना-सत्र में दोहरायेंगे. देश और दुनियाभर में सत्य और अहिंसा के उत्थान के लिए यह एक सराहनीय कदम होगा.

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