उड़ने की आकांक्षा
डॉ कविता विकास लेखिका kavitavikas 28@gmail.com प्राणी जगत में उड़ने की इच्छा इतनी प्रबल है कि पंछी पंख आने का बेताबी से इंतजार करते हैं. पंखों में बिन ताकत अगर वो उड़ने की कोशिश करते हैं तो गिर पड़ते हैं. मनुष्य चेतनशील प्राणी है इसलिए आकांक्षाओं को जमीन पर उतारने के पहले वह सोचता है […]
डॉ कविता विकास
लेखिका
kavitavikas 28@gmail.com
प्राणी जगत में उड़ने की इच्छा इतनी प्रबल है कि पंछी पंख आने का बेताबी से इंतजार करते हैं. पंखों में बिन ताकत अगर वो उड़ने की कोशिश करते हैं तो गिर पड़ते हैं. मनुष्य चेतनशील प्राणी है इसलिए आकांक्षाओं को जमीन पर उतारने के पहले वह सोचता है कि उसकी उड़ान यथार्थ के धरातल पर है कि नहीं.
समूह छोटा हो या बड़ा, है तो देश की एक ईकाई ही, जिसमें अलग-अलग खूबियों वाले लोग रहते हैं. नेतृत्व की क्षमता हर किसी में नहीं होती. अव्वल तो खुद को ही पहले परखना होता है कि वह सहनशीलता के साथ समस्याओं की तुष्टिकरण कर पाता है या नहीं. अपनी अकड़ के कारण संस्था-प्रमुख पूरी संस्था को गिरा सकता है. वजह वही है, समय से पहले उड़ने की आकांक्षा. थोड़े समय में ही सब कुछ पा लेने का लालच. हिटलर भी नेता था, गांधी भी नेता थे. फर्क सबको पता है.
गांधी के एक इशारे पर हजारों की संख्या में लोग पैदल ही डांडी यात्रा को निकल पड़े. यह गांधी का नेतृत्व था. हिटलर के एक इशारे पर द्वितीय युद्ध आरंभ हो गया, यह भी नेतृत्व की क्षमता है. लेकिन इतिहास के पन्नों में किसकी कितनी महानता है? यह सभी को पता है. समूह कभी भी तानाशाही फरमान नहीं स्वीकार करता है. लोगों में भय पैदा करनेवाला स्वयं ही अंदर से भयभीत रहता है.
अयोग्य व्यक्ति में अभिमान समूह के टूटने का कारण होता है. नेतृत्व की अभिलाषा रखनेवालों को शिष्टाचार के नियम पहले स्वयं अपनाने होते हैं, तभी वे दूसरों पर प्रभाव छोड़ सकते हैं. अपने पद पर खरा नहीं उतरना पूरे समाज के लोगों का विश्वास तोड़ना है. असल में, वर्षों से दबी इच्छा को जब आकाश मिलता है तो आदमी संभाल नहीं पाता है. अनुभव जीवन की पूंजी है, पर हमें बच्चों को सीख देनी चाहिए कि कुछ पाना सब कुछ पा लेना नहीं है. स्वाभिमान जरूर हो, पर अभिमान ना हो.
हम अपने पर गर्व तभी कर सकते हैं, जब हममें सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता होती है. इसके लिए मैं की सीमा लांघ कर हम के दायरे में जाना होगा. सहनशीलता, शालीनता और मृदुभाषिता नेता होने के आवश्यक तत्व हैं. ईर्ष्या–द्वेष, जलना–कुढ़ना आदि दुर्गुण कितना भी छुपाओ, ये आचार और विचार में परिलक्षित हो ही जाते हैं.
अगर किसी को फलते–फुलते और बढ़ते हम नहीं देख पाते हैं, तो इसका मतलब है अभी स्वाध्याय करने की आवश्यकता है. पद की गरिमा खोने के साथ–साथ आत्मसम्मान को क्षति पहुंचाने से अच्छा है पहले स्वयं का अवलोकन कर लिया जाये कि हममें नेतृत्व की क्षमता है या नहीं. जब व्यक्ति–विशेष के इर्द–गिर्द विवेकशील व्यक्तियों का जमघट हो, तो वह उचित–अनुचित पर सलाह–मशविरा लेकर स्वयं को स्थिति के अनुकूल बना लेता है. यह अपने स्तर पर बड़ी विजय है, जो दूसरों के लिए भी प्रेरक होती है.