समाज में समानता आये

एससी/एसटी एक्ट के मूल प्रावधानों को अभी पिछले साल 20 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने खत्म किया था. फिर एक अक्तूबर, 2019 को उसके कुछ प्रावधानों को बहाल कर दिया. दलित और हरिजन शब्दों को एक राजनीतिक लॉलीपॉप बना दिया गया है. इस पर जमकर राजनीति होती रहती है. इसलिए समानता का हर प्रयास अब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 4, 2019 8:11 AM
एससी/एसटी एक्ट के मूल प्रावधानों को अभी पिछले साल 20 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने खत्म किया था. फिर एक अक्तूबर, 2019 को उसके कुछ प्रावधानों को बहाल कर दिया. दलित और हरिजन शब्दों को एक राजनीतिक लॉलीपॉप बना दिया गया है. इस पर जमकर राजनीति होती रहती है. इसलिए समानता का हर प्रयास अब तक असफल रहा है.
पिछले आदेश का प्रावधान यह था कि अगर एक दलित युवती का बलात्कार होता है और उसे जातिसूचक गाली भी दी जाती है, तो उसका एफआइआर तब तक नहीं होगा, जब तक उच्च अधिकारी जांच नहीं कर लेता. जबकि सामान्य वर्ग के लिए ऐसा नहीं है. अब उसकी रिपोर्ट दर्ज भी करनी होगी और तुरंत अभियुक्त की गिरफ्तारी भी होगी. जातीय आधार पर समाज में हो रहे उत्पीड़न का खात्मा तभी संभव है, सिर्फ दो जाति रह जाये, एक स्त्रीलिंग दूसरा पुल्लिंग.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर

Next Article

Exit mobile version