न रोका जाये नदियों का प्रवाह

श्रीश चौधरी जीएलए विवि, मथुरा shreeshchaudhary@gmail.com जब तक फरक्का बैराज नहीं हटता है, तब तक उत्तर बंगाल, झारखंड, उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश बाढ़ से परेशान रहेंगे. बीते एक हफ्ते से हम पटना एवं गंगा के दोनों किनारे बाढ़ देख रहे हैं. फरक्का बैराज गंगा को आगे बहने से रोकता है. इसके 120 फाटकों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 4, 2019 8:11 AM

श्रीश चौधरी

जीएलए विवि, मथुरा

shreeshchaudhary@gmail.com

जब तक फरक्का बैराज नहीं हटता है, तब तक उत्तर बंगाल, झारखंड, उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश बाढ़ से परेशान रहेंगे. बीते एक हफ्ते से हम पटना एवं गंगा के दोनों किनारे बाढ़ देख रहे हैं. फरक्का बैराज गंगा को आगे बहने से रोकता है. इसके 120 फाटकों में 60 से ज्यादा कई वर्षों से बंद पड़े हैं.

शेष फाटकों से जो पानी निकलता है, उसे नहर के सहारे ये हुगली में ले जाते हैं और फिर उसका कलकत्ता के बंदरगाह में जहाज के आने लायक गहराई बनाने के लिए उपयोग करते हैं. बरसात एवं बाढ़ के दिनों में कुछ और फाटक बंद हो जाते हैं. नतीजा, सूखे के दिनों में सारा पानी कलकत्ता के बंदरगाह की ओर जाता है एवं बाढ़ के दिनों में यह पानी गंगा के ऊपरी राज्यों को मिलता है.

फरक्का का बांध गंगा के पानी को वापस बिहार में भेज देता है. जब गंगा नदी ढेर सारा पानी लेकर इतनी दूर से आती है एवं तेज गति से बांध से टकराती है, तो वह पानी फिर निचली धारा बनकर वापस काफी दूर तक जाता है. इंजीनियरों का कहना है कि फरक्का से लौटा अंडर करेंट मुंगेर तक वापस आता है एवं अपने साथ तैरती हुई मिट्टी एवं मलबे भी वापस लाता है.

यही मलबे एवं मिट्टी सतह पर बैठते चले जाते हैं और गंगा उथली होती चली जाती है. स्वयं फरक्का के 56 फाटकों के पीछे इतनी मिट्टी जमा हो गयी है कि ये फाटक अब कभी भी नहीं खुल सकते हैं. फरक्का के बांध को तोड़ने के अलावा स्वयं बंगाल तथा गंगा किनारे के अन्य राज्यों को बचाने का दूसरा कोई उपाय संभव नहीं है. हमें सबसे पहले इस बैराज को हटाने की मांग करनी चाहिए. नीतीश कुमार स्वयं इंजीनियर हैं और वह खुद सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि नदियां यदि अबाध नहीं बहेंगी, तो मर जायेंगी.

बिहार एवं उत्तर प्रदेश के दर्द को टिहरी का बांध भी काफी बढ़ाता है. गंगा का 60 प्रतिशत से अधिक पानी सूखे के दिनों में टिहरी के बांध पर दिल्ली एवं देहरादून को बिजली देने के लिए रोक लिया जाता है. किंतु बरसात के दिनों में अचानक सामान्य से कहीं अधिक पानी नीचे आने दिया जाता है. पानी के इस प्रवाह में अगल-बगल की नदियों एवं नालों से आनेवाला पानी आसानी से एवं पूरी तरह नहीं समाता है. फलत: इन उप-नदियों एवं नालों का प्रवाह भी मंद पड़ जाता है.

सूखे के दिनों में कम पानी होने से एवं उप-नदी-नालों का प्रवाह सामान्य होने से तथा फरक्का से वापस आयी मिट्टी एवं मलबों से गंगा काफी उथली हो चुकी होती है. गंगा का पूरा पानी यदि बहता तो शायद हमारे शहरों के सारे मल एवं मैल बह जाते, किंतु चूंकि गंगा का 40 प्रतिशत से भी कम पानी बनारस, पटना, भागलपुर, मुंगेर आदि पहुंचता है, यद्यपि मल एवं मैल कई गुना ज्यादा पहुंचता है, इसलिए उसका प्रवाह निश्चल एवं असहाय हो जाता है.

यदि गंगा किनारे के राज्यों को बचाना है, यहां की खेती, जल परिवहन एवं व्यापार को बचाना है, तो टिहरी एवं फरक्का को हटाना होगा. हमें मानना होगा कि यह बहुत बुरी इंजीनियरिंग थी. अन्यथा बड़ा भय है कि भविष्य और भी भयावह होगा.

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