जैसे-जैसे झारखंड विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे सूबे में नेताओं का दल-बदल भी तेज हो गया है. रूठने-मनाने का दौर शुरू हो गया है. नेता अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लग गये हैं.
वर्षो की निष्ठा मिनटों में बदल रही है. जो पार्टी अभी तक बुरी थी, वह रातों-रात अच्छी लगने लगी है. दोस्त अब दुश्मन लगने लगे हैं और दुश्मन दोस्त. लेकिन शायद अवसरवाद ही राजनीति का दूसरा नाम है. आखिर इन अवसरवादी और दलबदलू नेताओं पर विश्वास कैसे किया जाये? आज ये इस पार्टी में हैं, तो कल किसी और दल में होंगे.
हम कैसे मान लें कि ये नेता जनता की सेवा करने और उनकी आवाज बनने आये हैं? क्योंकि इनकी दल बदलने की आदत को देख कर तो यही लगता है कि ये नेता जनता की सेवा करने नहीं, बल्कि अपनी सेवा करने और अपनी कुरसी बचाने आये हैं.
विवेकानंद विमल, पाथरोल, मधुपुर