अगले कुछ दिनों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काठमांडू यात्रा को लेकर नेपाल सकारात्मक परिणामों की आस में है. 1997 में इंद्र कुमार गुजराल की नेपाल यात्रा के बाद यह पहली बार संभव हो रहा है कि कोई भारतीय प्रधानमंत्री नेपाल से अपने संबंध सुदृढ़ करने जा रहे हों.
पसी देशों से अपने संबंधों को लेकर नरेंद्र मोदी ने पहले ही इशारा कर दिया है कि वे अपने छोटे और करीब के पसियों से पुन: अच्छे और उपयोगी संबंध चाहते हैं. नरेंद्र मोदी की निर्णायक छवि और पूर्ण जनादेश पसी मुल्कों में भी यह चर्चा का विषय बना दिया है कि वे काम तो करना ही चाहते हैं, इसके साथ ही व्यवसाय बढाना भी चाहते हैं.
नरेंद्र मोदी एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश के मुखिया होने के नाते अपने चार अगस्त के नेपाल संसद के भाषण में यह जरूर इंगित करेंगे कि वहां भी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र स्थापित हो. भारत-नेपाल संबंधों में काफी उतार-चढाव आये हैं, पर भारत के लिए नेपाल काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसके साथ हमारी 1850 किमी की सरहद है, जो पांच राज्यों से साझा होती है.
समय-समय पर नेपाल को ऐसा लगता रहा है कि भारत नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाजी करता है और इस कारण तल्ख संबंध हुए हैं, पर नरेंद्र मोदी जी से उम्मीद है वे फिर से आपसी विश्वास कायम कर पाने में सफल होंगे.
नेपाल से ऊर्जा, व्यावसायिक नीति और राजनैतिक पहलुओं पर संधि और वार्ता होनी चाहिए. भारत विरोधी हरकतों पर भी नेपाल से बात होनी चाहिए. ऐसा कुछ हो कि दोनों मुल्कों के बीच फिर से विश्वास जगे और एक दूसरे के प्रति समर्थन का भाव बढे – मनोज आजिज, आदित्यपुर, जमशेदपुर