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मोदी-जयशंकर की राजनयिक उपलब्धि
प्रो पुष्पेश पंत अंतरराष्ट्रीय मामलोंके जानकार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आगामी भारत यात्रा के कई महत्वपूर्ण आयाम हैं. पिछले दिनों मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में जो नाटकीय परिवर्तन किये गये, उस पर चीन ने शुरू में बड़ी बेरुखी दिखायी थी और पाकिस्तान का समर्थन किया था, बावजूद इसके चीनी राष्ट्रपति भारत के दौरे […]
प्रो पुष्पेश पंत
अंतरराष्ट्रीय मामलोंके जानकार
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आगामी भारत यात्रा के कई महत्वपूर्ण आयाम हैं. पिछले दिनों मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में जो नाटकीय परिवर्तन किये गये, उस पर चीन ने शुरू में बड़ी बेरुखी दिखायी थी और पाकिस्तान का समर्थन किया था, बावजूद इसके चीनी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर तमिलनाडु के मामल्लापुरम(महाबलिपुरम) आने को तैयार हैं, तो इस यात्रा को सफलता की दृष्टि से देखा जाना चाहिए. महाबलिपुरम वह जगह है, जहां आज से करीब डेढ़-दो सौ वर्ष पहले भारतीय नौसैनिक बेड़े दक्षिण एशिया की तरफ गये थे.
बहरहाल, जहां एक तरफ हमारे रक्षा मंत्री राफेल के लिए फ्रांस पहुंचे हुए हैं और शस्त्र पूजा कर रहे हैं, वहीं इस तरफ चीन के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आ रहे हैं. इसके संकेत साफ हैं.
राफेल के आने से हमारी रक्षा क्षेत्र को मजबूती तो मिलेगी ही, साथ ही चीन और पाकिस्तान के प्रति हमारी सुरक्षा तैयारी भी पुख्ता हो जायेगी. इस संकेत के परे जाकर देखें कि अगर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत-यात्रा से हमें भले कोई बड़ी चीज हासिल न हो, लेकिन एक उपलब्धि तो होगी कि जम्मू-कश्मीर में परिवर्तन के बाद उस पर कोई बात होगी. अगर यह यात्रा अपनी सार्थकता को पहुंचती है, तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के सूझ-बूझ से हासिल राजनयिक उपलब्धि भी होगी.
अब रहा सवाल भारत-चीन के बीच व्यापारिक बढ़त की, तो जिनपिंग के दौरे में होनेवाली वार्ता के बाद उसका अगला चरण व्यापार पर होनेवाली वार्ता ही होगी. चीन जब हमारे पक्ष में हो जायेगा, तो स्वाभाविक है कि वह हमसे व्यापार भी बढ़ायेगा. अगर चीन सीधे तौर पर पाकिस्तान का समर्थन करता, तो भारत के साथ व्यापार करने में थोड़ी हिचक तो होगी ही. लेकिन इस दौरे के बाद भारत-चीन के बीच संबंध सुधरेंगे, जिसका अगला चरण दोनों देशों के बीच व्यापार ही होगा, जो फिलहाल दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए बहुत जरूरी है.
भारत और चीन की हालिया वार्ताएं
बीते कुछ वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग विभिन्न मंचों पर नियमित अंतराल पर मिलते रहे हैं. पिछले 13 जून, 2019 को बिश्केक एससीओ सम्मिट के दौरान दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी. साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह दोनों नेताओं की बीच अब तक 15 मुलाकातें हो चुकी हैं. इससे पहले पिछले वर्ष जून में चीन के किंग्दाओ में, जुलाई में जोहांसबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान और उससे पहले दिसंबर में अर्जेंटीना में जी-20 सम्मेलन के दौरान मोदी-जिनपिंग की मुलाकात हो चुकी है.
एससीओ-2019 : किर्गिजिस्तान के बिश्केक में संघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में दोनों नेताओं की बीच बैठक हुई थी. इस दौरान रूस के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता हुई थी. मोदी सरकार की 2019 में सत्ता वापसी के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली द्विपक्षीय वार्ता थी. इसमें आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की गयी.
किंग्दाओ वार्ता : 9 जून, 2018 को चीन के किंग्दाओ में आयोजित बैठक में भारत और चीन ने दो महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. इसमें चीन द्वारा हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने का मामला भी शामिल था. इस सम्मेलन में ‘वुहान स्पिरिट’ का जिक्र किया गया था. इसके तहत दोनों देशों द्वारा परस्पर संप्रभुता का सम्मान करना है.
विशेष प्रतिनिधि स्तरीय वार्ता : नवंबर, 2018 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता चीन के चेंग्दू में आयोजित की गयी थी. इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और चीन की तरफ से विदेश मामलों के मंत्री वांग यी शामिल थे. वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच ‘विकास साझेदारी’ के महत्व और उसे मजबूत करने पर फोकस किया गया.
कश्मीर पर चीन का बदलता राग
कुछ दिनों पहले चीन ने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान यूएन चार्टर के अनुसार होना चाहिए. चीनी राष्ट्रपति ने भी अपने स्टैंड पर कायम रहने की बात कही है.
हालांकि, कुछ दिनों पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि यह द्विपक्षीय मसला है, जिसे भारत और पाकिस्तान को आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि इससे दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ेगा और समस्याएं हल होंगी. हालांकि, अगस्त महीने में अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करने पर चीन ने आपत्ति जाहिर की थी. पाकिस्तान इस मामले को जब संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में ले गया, तो वहां चीन ने उसे समर्थन दिया था.
मतभेदों को संवेदनशीलता के साथ संभालने की कोशिश
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन भले ही पाकिस्तान की तरफदारी करे, लेकिन, चीन इस बात को स्वीकार करता है कि भारत उसका सबसे अहम पड़ोसी है. वह तमाम हितों को साधने के लिए वार्ता को तवज्जो देता है. दोनों विकालशील देश हैं और उभरते हुए बड़े बाजार भी हैं. गेंग शुआंग के अनुसार, दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग कर रहे हैं और हर मतभेद को संवेदनशीलता के साथ
संभाल रहे हैं.
अनिश्चितता के माहौल में आपसी सहयोग जरूरी : चीन
भारत में चीन के राजदूत सुन वेईडॉन्ग ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितता भरे माहौल में भारत और चीन को आपसी सहयोग मजबूत करने पर बल देना चाहिए. उन्होंने पंचशील समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियाद बन चुका है.
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