भारत की चिंता को समझे अमेरिका

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com सितंबर के अंतिम सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा सुर्खियों में रही. लेकिन, इस दौरान भारत-अमेरिकी व्यापार समझौता नहीं हो पाया. ऐसा कहा जा रहा है कि अमेरिका के सख्त एवं अड़ियल रवैये के कारण यह समझौता नहीं हो पाया. पिछले कुछ समय से अमेरिका ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2019 7:38 AM
डॉ अश्वनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
सितंबर के अंतिम सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा सुर्खियों में रही. लेकिन, इस दौरान भारत-अमेरिकी व्यापार समझौता नहीं हो पाया. ऐसा कहा जा रहा है कि अमेरिका के सख्त एवं अड़ियल रवैये के कारण यह समझौता नहीं हो पाया.
पिछले कुछ समय से अमेरिका ने चीन और भारत से व्यापार युद्ध छेड़ रखा है. विश्व व्यापार समझौते (डब्ल्यूटीओ) के बावजूद अमेरिका चीन के साथ-साथ भारत से आनेवाले उत्पादों पर भी आयात शुल्क बढ़ाता जा रहा है. यही नहीं दशकों से भारत से आनेवाले कई उत्पादों को प्राथमिकता देते हुए जो शुल्क में रियायत दी जा रही थी, उसे भी खत्म कर दिया गया. उसके खिलाफ भारत अभी तक अमेरिका के आक्रामक रुख को अनदेखा कर रहा था, लेकिन उसने अब अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाकर अमेरिकी रुख का प्रतिकार किया है.
यह सभी जानते हैं कि अमेरिकी कंपनियां और सरकार हमेशा से भारतीय पेटेंट कानून में जन स्वास्थ्य की रक्षा हेतु कई प्रावधानों और किसान की सुरक्षा हेतु बीज, पौधों और जीवन के पेटेंट की मनाही के खिलाफ शिकायत करती रही हैं.
ध्यातव्य है कि मोनसेंटो नाम की कृषि कंपनी जीएम बीज के झूठे पेटेंट के नाम पर अभी तक किसानों से 8,000 करोड़ रुपये की रायल्टी वसूल चुकी है. भारत में दवाइयों के पेटेंट के आधार पर कंपनियों पर प्रभावी अंकुश है.
वास्तव में अमेरिकी इ-कामर्स कंपनियों द्वारा अनुचित रूप से दिये जा रहे डिस्काउंट और हिंसक कीमत नीतियों के चलते भारत सरकार द्वारा जो अंकुश लगाये गये हैं, उससे इन कंपनियों की शिकायत के कारण अमेरिकी प्रशासन भारत पर दबाव बना रहा है कि वह इन कंपनियों को मनचाहे डिस्काउंट देने की अनुमति दे.
लेकिन, मुश्किल यह है कि इन डिस्काउंट के कारण भारत के छोटे व्यापारी, रेहरी-पटरी के लोगों का धंधा चौपट हो रहा है और उनमें बेरोजगारी बढ़ रही है. ये कंपनियां अपनी आर्थिक ताकत के आधार पर न केवल परंपरागत खुदरा व्यापार को नष्ट कर रही हैं, बल्कि नये इ-कामर्स स्टार्टअप भी इसके आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. कुछ समय पहले भारत सरकार द्वारा हृदय स्टेंट और घुटने इंप्लांट जैसे मेडिकल उपकरणों की कीमतों पर नियंत्रण लगाया गया था. कारण यह था कि ये कंपनियां भारत में मरीजों से मनमानी कीमत वसूल रही थीं. अब ये कंपनियां अमेरिकी प्रशासन के माध्यम से इन नियंत्रणों में ढील चाहती हैं.
अमेरिकी प्रशासन यह भी चाहता है कि भारत अमेरिका से दूध के आयात पर पाबंदी हटा दे. गौरतलब है कि अमेरिका में दुग्ध उत्पादकों द्वारा गायों को रक्त एवं मांस का सेवन करवाया जाता है. चूंकि भारत में दूध एक शाकाहारी भोजन है, इस प्रकार से उत्पन्न दूध का आयात प्रतिबंधित है.
लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर इस प्रकार के दूध का आयात किसी भी प्रकार से संभव नहीं है. अमेरिकी प्रशासन की यह शिकायत रहती है कि भारत द्वारा अत्यधिक दर पर आयात लगाये जाते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि भारत द्वारा औसत आयात शुल्क मात्र 10 प्रतिशत से भी कम है, जबकि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा औसत 40 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की अनुमति है.
अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि भारत को उसकी कृषि एवं दवा कंपनियों की मांग के अनुरूप अपने बौद्धिक संपदा कानून को बदलना चाहिए. अमेरिकी मोटरसाइकिल हार्ले डेविडसन के आयात पर आयात शुल्क घटना चाहिए. हृदय स्टेंट और घुटनों के इंप्लांट पर कीमत नियंत्रण समाप्त करना चाहिए, ताकि अमेरिकी कंपनियों के लाभ बरकरार रहें.
अमेरिकी दुग्ध उत्पादों को खुल तौर पर अुनमित हो, इ-कामर्स कंपनियों को डिस्काउंट देने की इजाजत हो और उन पर लगाये जा रहे अंकुश समाप्त हो जायें. आयात शुल्क, खास तौर पर टेलीकॉम उत्पादों पर, हटाये जायें. यही मांगों को लेकर, अमेरिका-भारत की व्यापार वार्ताएं शुरू हुईं, लेकिन कोई समझौता नहीं हो पाया.
समझौते के लिए जरूरी है कि दोनों पक्षों की मांगों पर आपसी सहमति हो सके. लेकिन अधिकांश मामलों में अमेरिकी रुख अकारण है. हार्ले डेविडसन पर आयात शुल्क घटाना तो संभव हो सकता है, लेकिन जनस्वास्थ्य को ताक पर रखकर न तो हृदय स्टेंट और घुटनों के इंप्लांट पर कीमत नियंत्रण समाप्त करना संभव है और न ही पेटेंट कानूनों में अमेरिकी इच्छानुसार बदलाव करना. आज जब हमारे आयात शुल्क पहले से ही काफी कम हैं, उन्हें और घटाना हमारे उद्योगों और कृषि के लिए घातक हो सकता है. जहां तक टेलीकाॅम और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने का मामला है, उसमें भी कोई रियायत संभव नहीं है. अमेरिका को समझना चाहिए कि यदि भारत यह मांग मान भी जाता है, तो भी उसका लाभ चीन को ही मिलेगा.
कुल मिलाकर देखें, तो भारत-अमेरिकी राजनयिक संबंधों के मधुर होने के बावजूद, अमेरिकी प्रशासन के कड़े और अनुचित रुख के चलते दोनों देशों के बीच सीमित व्यापार समझौता भी नहीं हो सका. ऐसे में अमेरिका को समझना होगा कि भारत यदि अपने छोटे व्यापारियों के हित में इ-कामर्स कंपनियों के डिस्काउंट पर रोक चाहता है, अपनी दवाओं या इंप्लांट की कीमतों पर नियंत्रण करता है या अपने उद्योगों को संरक्षण के लिए आयात शुल्क बढ़ाता है, तो यह गलत नहीं है. अमेरिका को भारत की इन चिंताओं को समझना चाहिए.

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