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पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक के खाताधारक अपनी ही जमा-पूंजी पाने के लिए भटक रहे हैं और उन्हें उम्मीद की कोई सूरत भी नहीं दिख रही है. यह स्वागतयोग्य है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जरूरी होने पर सहकारिता कानूनों में बदलाव करने की बात कही है. मौजूदा कानून के तहत अनेक राज्यों […]

पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक के खाताधारक अपनी ही जमा-पूंजी पाने के लिए भटक रहे हैं और उन्हें उम्मीद की कोई सूरत भी नहीं दिख रही है. यह स्वागतयोग्य है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जरूरी होने पर सहकारिता कानूनों में बदलाव करने की बात कही है.

मौजूदा कानून के तहत अनेक राज्यों में सक्रिय सहकारी बैंकों का नियमन रिजर्व बैंक के जिम्मे है और इसमें सरकार कोई भूमिका नहीं होती है. सहकारी बैंकों में पहले भी भ्रष्टाचार और घपलों के मामले सामने आ चुके हैं. असल में कानूनों को बदलने का काम कई साल पहले हो जाना चाहिए था. जानकारों के मुताबिक, लचर कानूनों की वजह से सहकारी बैंक भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के लिए लंबे समय से एक कमजोर कड़ी बने हुए हैं. ऐसे में रिजर्व बैंक के अधिकार भी सीमित हो जाते हैं, लेकिन यह भी कहा जाना चाहिए कि रिजर्व बैंक ने भी इस समस्या को लेकर सक्रियता नहीं दिखायी और सरकार से बदलाव करने को नहीं कहा.

सरकारें भी हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रहीं. घोटालों के सिलसिले पर रोक लगाने की दिशा में सबसे जरूरी कदम यही है कि सरकार रिजर्व बैंक को सहकारी बैंकों के नियमन के अधिक अधिकार प्रदान करे. सहकारी बैंकों, सार्वजनिक बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं में होनेवाले हर तरह के घपले-घोटाले में एक बात कमोबेश जरूर दिखती है- उद्योगपतियों और बैंक प्रबंधन का भ्रष्ट गठजोड़.

अनेक मामलों में नेताओं की मिलीभगत भी दिखती है. उद्योगपतियों को मनमाने तरीके से कर्ज देकर आम खाताधारकों की जमा-पूंजी को खतरे में डालना आपराधिक है, क्योंकि ये लोग निवेशक नहीं होते हैं और वे मुनाफा कमाने के लिए बैंक में मेहनत से कमाई रकम नहीं रखते हैं.

उन्हें तो बस यह भरोसा होता है कि बैंक में पैसा सुरक्षित है और साधारण खर्च या शादी-ब्याह या बीमारी में उसे इस्तेमाल कर सकते हैं. यह भी कि लोगों को इन संस्थाओं के प्रबंधन एवं नियमन से संबंधित जटिल प्रावधानों का पता नहीं होता है और ऐसी जानकारी रखना आम खाताधारकों के लिए जरूरी भी नहीं है. ऐसे में उनके पैसे की सुरक्षा का जिम्मा सरकार और रिजर्व बैंक को लेना चाहिए.

किसी बैंक के कामकाज पर ठोस निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए. गैर-जिम्मेदार ढंग से जोखिम भरे कर्ज बांटनेवाले बैंकों और कर्जदारों की हालत के बारे सूचनाएं जुटाने की व्यवस्था मौजूद है. कर्ज का इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है तथा कहां लापरवाही या भ्रष्टाचार का मामला है, यह देखना रिजर्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं का काम है. जरूरी हो, तो इस संबंध में अतिरिक्त उपाय होने चाहिए.

आपत्तिजनक लेन-देन और घपले की जानकारी या सुराग देनेवाले व्यक्ति यानी व्हिसलब्लोअर की बात ठीक से सुनी जानी चाहिए और प्राप्त सूचना पर तुरंत जांच व कार्रवाई होनी चाहिए. ऐसे लोगों को प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए. इस प्रक्रिया में तकनीक बहुत मददगार हो सकती है. उम्मीद है कि ऐसे उपाय जल्दी ही अमल में लाने की कोशिशें होंगी.

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