रावण क्लब की बैठक
संतोष उत्सुकवरिष्ठ व्यंग्यकारsantoshutsuk@gmail.com दशहरा की थकावट उतारने के बाद रावण क्लब की सालाना हंगामा बैठक हुई. राक्षस चाहते थे कि उनके हितों के बारे में भी विचार विमर्श हो. अध्यक्ष रावण को सदस्यों ने बताया कि सरकार जनता की भलाई के लिए बहुत काम कर रही है, समाज से बुराई खत्म करने के बेहतर तरीके […]
संतोष उत्सुक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
दशहरा की थकावट उतारने के बाद रावण क्लब की सालाना हंगामा बैठक हुई. राक्षस चाहते थे कि उनके हितों के बारे में भी विचार विमर्श हो. अध्यक्ष रावण को सदस्यों ने बताया कि सरकार जनता की भलाई के लिए बहुत काम कर रही है, समाज से बुराई खत्म करने के बेहतर तरीके निकाले जा रहे हैं. एक समय आयेगा जब समाज से बुराई समाप्त हो जायेगी और राम-राज्य स्थापित हो जायेगा. फिर हमारा क्या होगा, हमें भी सरकार खत्म कर देगी.
यह सब सुनते-सुनते रावण की आंखों में खून उतर आया. वह अट्टहास कर उठा- शांत हो जाओ, मुझे लग रहा है मैं मूर्खों की सभा का अध्यक्ष हूं. जरूर किसी नेता ने तुम्हें बरगलाया है. मेरी नजर से देखो मेरे दिमाग से समझो, समाज में हमारा कद और भी ऊंचा होता जा रहा है, तुम बेवकूफों को पता नहीं है कि इस वर्ष मेरा, दुनिया का सबसे ऊंचा पुतला दो सौ इक्कीस फुट का जलाया गया है. इसके प्रायोजकों ने लाखों रुपये खर्च किये हैं, अपनी जमीन तक बेच दी है. संबद्ध संस्था ने मेरे पुतले को जलते हुए दिखाने का टिकट वसूला. लोग पुतले की ‘अस्थियां’ भी अपने घर ले गये.
हमें बुराई का प्रतीक बताकर वर्ल्ड रिकाॅर्ड कायम किये जा रहे हैं, लेकिन जनता के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है. लाखों जलाकर, बुराई पर अच्छाई की विजय मानी जा रही है, लेकिन इतने साल में पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा चुके हैं, इन्हें समझ नहीं आ रहा.
रामलीला के आयोजन सिकुड़ते जा रहे हैं. वहां राम को देखने इतने दर्शक नहीं जुटते, जितने रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण को देखने आते हैं. हमारी प्रसिद्धि बढ़ ही तो रही है. ये लोग प्रतीक जलाते रहते हैं, इन्हें लगता है कि पुतले फूंकने से बुराई का अंत हो गया.
ये सब हमारे द्वारा समाज में बोयी हुई राक्षसी खूबियों के परिणाम हैं. अच्छाई अब चमकदार मुखौटा बन चुकी है, कोई अपना बुरा आचरण अच्छे में बदलने को राजी नहीं, सबकी जुबान पर राम है और दिमाग में, मैं हूं रावण, हा हा हा. जिनके नाम में भी राम है, उनमें से अधिकांश धर्म प्रवाचक सलाखों के पीछे हैं. हमारा तो कद ही नहीं कुनबा भी बढ़ता जा रहा है.
हमारे दरबार जैसी सुख सुविधाएं, नाच-गाना इनको बहुत पसंद हैं. वे इनमें डूबे हुए हैं और अपने कर्तव्य भूलते जा रहे हैं. मेघनाद ने कहा कि महाराज मैं भी अपनी प्रशंसा कर लूं. मेघनाथ ने कहा- राम होना बहुत मुश्किल है. आदमी बुराई जल्दी सीखता है, अच्छाई नहीं. इन लोगों ने राम का नाम लेकर कितनी लंकाएं बसा दी हैं, हम तो मात्र प्रतीक हैं, लेकिन समाज में तो कितने रावण हैं, मेघनाद और कुंभकर्ण तो करोड़ों हैं.
हमारी असुर प्रवृत्ति समाज में बढ़ रही है. हमारे गुण, अहंकार, हवस, लोभ, मोह, काम, क्रोध, अनीति, अधर्म, अनाचार, असत्य निसदिन बढ़ते जा रहे हैं. बुराई व्यवसाय बन चुकी है, हमारे नाम पर त्यौहार धंधा बन चुका है. मेघनाद को इशारा करते हुए रावण ने कहा- अब बैठक संपन्न हुई. बोलो पराक्रमी, हरयुगी राजा रावण की जय! सबने कहा, जय!