छह सीटाें से चुनाव लड़े थे राजा साहब चार जीते, दाे पर मिली थी शिकस्त
अनुज कुमार सिन्हा, रांची : काेई प्रत्याशी एक चुनाव में चार सीटाें से विजयी हाे जाये, ताे उसकी लाेकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. 1951-52 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हाे रहा था. रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह ने छाेटानागपुर-संतालपरगना जनता पार्टी नामक नया दल बनाया था. चुनाव में वे छह सीटाें से […]
अनुज कुमार सिन्हा, रांची : काेई प्रत्याशी एक चुनाव में चार सीटाें से विजयी हाे जाये, ताे उसकी लाेकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. 1951-52 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हाे रहा था. रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह ने छाेटानागपुर-संतालपरगना जनता पार्टी नामक नया दल बनाया था. चुनाव में वे छह सीटाें से खुद प्रत्याशी थे.
इनमें से चार सीटाेें पर वह विजयी घाेषित हुए, जबकि दाे सीटाें से चुनाव हार गये थे. रामगढ़ राजा का छाेटानागपुर में काफी प्रभाव था. बगाेदर, पेटरवार, गाेमिया, बड़कागांव से वे चुनाव जीते थे. जबकि, गिरिडीह सह डुमरी आैर चतरा विधानसभा सीट से वह चुनाव हार गये थे. गिरिडीह में उन्हें कृष्ण वल्लभ सहाय ने आैर चतरा में सुखलाल ने हराया था. बाद में कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.
जीत के बाद कामाख्या बाबू ने पेटरवार, बगाेदर आैर गाेमिया सीट से इस्तीफा दे दिया था. बड़कागांव सीट से वह विधायक बने रहे. कामाख्या बाबू द्वारा छाेड़ी गयी तीन सीटाें पर जब उपचुनाव हुए, ताे यह तीनाें सीटें कांग्रेस ने जीत ली थी. इससे पता चलता है कि इन तीनाें सीटाें पर लाेगाें ने पार्टी को नहीं अपने राजा काे वाेट दिया था. जब राजा खड़ा नहीं हुए, ताे उनके प्रत्याशी काे हार का सामना करना पड़ा.