खिलना याद रहता है फूलों को!

मिथलेश कु राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com कक्का कह रहे थे कि मौसम एक मेहमान की तरह आता है. कुछ दिन रहता है, फिर लौट जाता है. इसलिए इसके आने से दृश्यों में परिवर्तन आने लगते हैं. हालांकि ढंग की सर्दी आने में अभी वक्त है, लेकिन वह अपने आने का संकेत दे चुकी है. जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 22, 2019 7:11 AM
मिथलेश कु राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
कक्का कह रहे थे कि मौसम एक मेहमान की तरह आता है. कुछ दिन रहता है, फिर लौट जाता है. इसलिए इसके आने से दृश्यों में परिवर्तन आने लगते हैं.
हालांकि ढंग की सर्दी आने में अभी वक्त है, लेकिन वह अपने आने का संकेत दे चुकी है. जब मैंने यह कहा कि अभी सर्दी कहां आयी है. अभी तो लोग बनियान पहनकर घूम रहे हैं और जब बिजली चली जाती है, तो हाथ पंखा ढूंढने लगते हैं. तब कक्का मुस्कुराने लगे. बोले- हम इंसान हैं. संवेदनशील हैं. लेकिन अभी भी पेड़-पौधे हमसे कई गुना अधिक संवेदनशील हैं. हम सिर्फ सामने के दृश्यों को देख पाते हैं. लेकिन पेड़-पौधे उस दृश्य के प्रकट होने की आहट को भी पकड़ लेते हैं.
कक्का जब यह कह रहे थे, उनका ध्यान सामने की ओर था. सामने कुछ क्यारियां थीं. उन क्यारियों में अंकुर थे. मुझे यह पता था कि कक्का ने कुछ दिन पूर्व ही पालक और गाजर के बीज बोये हैं. दो सप्ताह के बाद ये अंकुर अपनी पत्तियों से अपनी पहचान बना लेंगे. ये सब सर्दियों के भोज्य-पदार्थ हैं.
सर्दी का मौसम ही इनके लिए इनका स्वाद लेकर आता है और चुपके से इनकी जड़ों के पास रख देता है. जड़ों से वह स्वाद मनुष्यों के जिह्वा पर चढ़ता है और उनका मन तृप्त हो उठता है. वही स्वाद लोगों को मौसम के लिए तैयार करता है.
कक्का यह कह रहे थे कि बीज को अंकुराना याद रहता है. फूल के स्मरण में खिलना संचित रहता है. मौसम के आते ही वे स्वतः खिलने लगते हैं. वे कह रहे थे कि देखो, चीरा-मीरा खिलने लगे हैं. हरसिंगार में फूल आने लगे हैं. गेंदे और गुलदाउदी की रंगत देखो, वे तेजी से हृष्ट-पुष्ट हो रहे हैं. इन सबका मतलब समझते हो? सर्दी भले ही अभी कुछ दूर है, लेकिन इन फूलों ने उसे आते हुए देख लिया है. ये उसी खुशी में खिल रहे हैं.
इसको तुम ऐसे भी समझ सकते हो कि मौसम इन फूलों के माध्यम से अपने आने का संदेश भेज रहा है. यह संदेश पाकर ही दृश्यों में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. सवेरे चार-पांच बजे जग कर देखोगे, तो पता चलेगा कि अब सुबह की रंगत बदली हुई है. अब जो शाम ढल रही है, क्या उसका चेहरा एक महीने पहले वाले चेहरे से मेल खाता है!
कक्का ठीक कह रहे थे. अब मौसम बदल जायेगा, इस वाक्य को प्रकृति कुछ दृश्यों के माध्यम से लिख देती है. मुझे याद हो आया. गिरे बीज से आंगन में एक चीरा-मीरा का पौधा उग आया था. वह पौधा खूब बड़ा हो गया, लेकिन उसमें भर ग्रीष्म फूल नहीं लगे. अब जाकर उसमें फूल आये हैं.
परसों मेरी नजर हरसिंगार के फूलों पर पड़ी थी. शाम भी अब पहले से कुछ अलग लगती है. यह सब देख मैं मुस्कुराने लगा. कक्का कह रहे थे कि मेहमान के आने से पहले कुछ परिवर्तन हो ही जाते हैं.
जैसे ही आने का संदेश मिलता है, घर-आंगन को उसके लिए तैयार किया जाता है और जब तक वे रहते हैं, उनके लिए एक अलग ही माहौल बनाकर रखना पड़ता है. यह मेहमान के आगमन से स्वतः घटित होता है. जैसे सर्दी के आगमन को लेकर दृश्य खुद को बदलने लगा है!

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