इंटरनेट नियमन जरूरी
सूचना और संचार को सुगम बनाने में इंटरनेट ने युगांतकारी भूमिका निभायी है. भविष्य में इसके असीम विस्तार की संभावनाएं हैं. लेकिन, भारत समेत समूची दुनिया में इसके दुरुपयोग और दुष्प्रभाव भी बेहद चिंताजनक होते जा रहे हैं. इन्हें रोकने के अनेक उपाय हुए हैं और कानूनी प्रावधान भी बने हैं, फिर भी सुधार की […]
सूचना और संचार को सुगम बनाने में इंटरनेट ने युगांतकारी भूमिका निभायी है. भविष्य में इसके असीम विस्तार की संभावनाएं हैं. लेकिन, भारत समेत समूची दुनिया में इसके दुरुपयोग और दुष्प्रभाव भी बेहद चिंताजनक होते जा रहे हैं.
इन्हें रोकने के अनेक उपाय हुए हैं और कानूनी प्रावधान भी बने हैं, फिर भी सुधार की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है. समाज, सरकारें और अदालतें भी इस चुनौती से जूझ रही हैं. इस संदर्भ में सरकार एक बड़ी पहलकदमी करने जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि इंटरनेट के नियमन के लिए जनवरी के आखिर तक निर्देशों का निर्धारण कर लिया जायेगा. इंटरनेट एक तकनीकी व्यवस्था है, जिसके तहत विभिन्न कंपनियां अलग-अलग सेवाएं प्रदान करती हैं.
इनमें सोशल मीडिया और सूचनात्मक वेबसाइटों का उपभोग सबसे अधिक होता है. जिस प्रकार से झूठी खबरों, अफवाहों, चरित्र-हनन की कोशिशों, अपमानजनक टिप्पणियों, आधारहीन दोषारोपण, राष्ट्रविरोधी बातों आदि का बाजार गर्म है, उसे देखते हुए सरकार ने उचित ही कहा है कि इंटरनेट का दुरुपयोग लोकतांत्रिक राजनीति को अकल्पनीय नुकसान पहुंचा सकता है. पिछले कुछ सालों में अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आयी हैं, जो सोशल मीडिया की अफवाहों और झूठी खबरों के फैलाने का नतीजा थीं. भीड़ द्वारा हत्याओं के खौफनाक सिलसिले से देश के शायद कुछ ही हिस्से बचे हुए हैं.
वीडियो और टिप्पणियों से नफरत पैदा करने की कोशिशें भी लगातार हो रही हैं. बीते कुछ सालों में इंटरनेट सस्ता होने और उसकी गति तेज होने तथा स्मार्ट फोन के प्रसार ने सोशल मीडिया और वेबसाइटों को गांव-गांव तक करोड़ों हाथों तक पहुंचा दिया है.
एक तरफ इसका इस्तेमाल जरूरी सूचनाओं, समाचारों और जानकारियों को पाने के लिए किया जा रहा है, वहीं समाज-विरोधी तत्व इसके जरिये हिंसा और घृणा के प्रसार में लगे हुए हैं. ऐसे में सरकार ने यह जरूरी समझा है कि मौजूदा कायदा-कानूनों में फेर-बदल कर कठोर और प्रभावी नियमन किया जाये. इस प्रयास में सेवा देनेवाली कंपनियों के लिए भी प्रावधान पर विचार चल रहा है, ताकि उनके प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल रोका जा सके.
केंद्रीय सूचना-तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले साल जुलाई में ही संसद को बताया था कि ऐसे प्लेटफॉर्म को ज्यादा जवाबदेह और मुस्तैद बनाने के लिए 2011 के निर्देशों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. इंटरनेट की जटिलता और व्यापकता के कारण उस पर हो रही गतिविधियों को पूरी तरह नियंत्रित कर पाना लगभग असंभव है, लेकिन अधिक लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और वेबसाइटों पर होनेवाली आपत्तिजनक हरकतों पर लगाम तो लगाया ही जा सकता है.
इस कोशिश में नये नियमन के साथ अपराधों को रोकने के लिए बने कानूनों का भी सहारा लिया जाना चाहिए. यह भी सावधानी रहे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होने तथा नियमन के दुरुपयोग की गुंजाइश न हो.