चुनावों में स्थानीय मुद्दे पड़े भारी
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम का ईमानदारी से आकलन किया जाये, तो दोनों राज्यों में भाजपा के सीटों का घटना इस बात की ओर इशारा करता है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे भारी पड़े, जो राज्य के चुनाव में स्वाभाविक भी है. साथ ही, विपक्ष में बिखराव के बाद भी […]
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम का ईमानदारी से आकलन किया जाये, तो दोनों राज्यों में भाजपा के सीटों का घटना इस बात की ओर इशारा करता है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे भारी पड़े, जो राज्य के चुनाव में स्वाभाविक भी है.
साथ ही, विपक्ष में बिखराव के बाद भी खासकर हरियाणा में बहुमत तक नहीं पहुंचना पार्टी के अंदर कैडरों की उपेक्षा से उत्पन्न असंतोष और गुटबाजी को दर्शाता है. वहीं महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की ‘तुम्हीं से मोहब्बत तुम्हीं से रार है, ऐसा अपना प्यार है’ वाली नीति को जनता ने बेमन से स्वीकारा है.
सीटों की संख्या घटने से ऐसा प्रतीत होता है कि हो सकता है दोनों राज्य में भाजपा की सरकार बन जायें, लेकिन स्थानीय मुद्दे और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा जारी रही, तो आगामी चुनाव में उसके परिणाम और गंभीर हो सकते हैं.
ऋषिकेश दुबे, पलामू