अहम सऊदी दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे समय में सऊदी अरब की यात्रा पर हैं, जब मध्य-पूर्व में अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल है. उस क्षेत्र के विभिन्न प्रभावशाली देश सभी विवादों एवं तनावों में एक-दूसरे के आमने-सामने हैं. भारत उन चंद देशों में है, जिनके संबंध उन सभी देशों से अच्छे हैं तथा वे देश भारत एवं […]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे समय में सऊदी अरब की यात्रा पर हैं, जब मध्य-पूर्व में अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल है. उस क्षेत्र के विभिन्न प्रभावशाली देश सभी विवादों एवं तनावों में एक-दूसरे के आमने-सामने हैं.
भारत उन चंद देशों में है, जिनके संबंध उन सभी देशों से अच्छे हैं तथा वे देश भारत एवं उसके नेतृत्व को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, चाहे वह सऊदी अरब और खाड़ी देश हों, ईरान हो या फिर इस्राइल. इन देशों के साथ परस्पर संबंधों को प्रधानमंत्री मोदी ने किसी तीसरे आयाम से प्रभावित नहीं होने दिया है.
द्विपक्षीय संबंधों में ऐसे समीकरण का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत ने व्यापारिक, वाणिज्यिक, वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग बढ़ाने के साथ रणनीतिक संबंधों की बेहतरी को भी विदेश नीति की प्राथमिकताओं में शामिल किया है. स्वाभाविक रूप से इस दौरे में ऊर्जा और निवेश समेत सहयोग के विशेष मुद्दों पर सहभागिता के विस्तार पर चर्चा होगी तथा कई समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे.
दोनों देशों के बीच निवेश और ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान की बड़ी संभावनाएं हैं. सऊदी अरब तेल का बहुत बड़ा उत्पादक है और भारत शीर्ष के आयातकों में है. वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री मोदी के सऊदी दौरे और इस वर्ष फरवरी में शहजादा मोहम्मद की भारत यात्रा के दौरान तथा दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच इस संबंध में सहयोग व निवेश बढ़ाने के तौर-तरीकों पर ठोस चर्चाएं होती रही हैं.
इस यात्रा में भारत-सऊदी अरब रणनीतिक सहयोग परिषद बनाने की घोषणा से परस्पर संबंधों को नयी ऊंचाई मिलेगी. भारत की ओर से प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी अरब की ओर से बादशाह सलमान की अध्यक्षता में यह व्यवस्था रणनीतिक संबंधों की प्रगति की निगरानी करेगी.
इसके तहत दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की अगुवाई में एक प्रणाली के पास राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों को तथा वाणिज्य मंत्रियों के नेतृत्व में दूसरी प्रणाली के पास व्यावसायिक और ऊर्जा संबंधों का उत्तरदायित्व होगा. दुनिया के इस्लामिक देशों और मुस्लिम आबादी में भी सऊदी अरब का बहुत असर है.
पाकिस्तान अपने निहित स्वार्थों को साधने के लिए हमेशा इन देशों और इस समुदाय को भारत के विरुद्ध उकसाने के प्रयास में रहता है. बीते कुछ महीने से कश्मीर के मसले पर भी उसने यही रवैया अपनाया है. हालांकि, सऊदी अरब समेत लगभग सभी इस्लामिक देशों का समर्थन भारत को मिलता रहा है, लेकिन इस यात्रा और रणनीतिक सहयोग परिषद् से इसमें बड़ी मदद मिलने की आशा है.
इसके अलावा बड़ा तेल उत्पादक और निवेशक होने के नाते तथा पश्चिमी देशों के साथ अच्छे संबंधों के कारण सऊदी अरब वैश्विक स्तर पर भी प्रभावशाली देश है. चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के साथ भी उसका नाता है. परस्पर संबंधों की प्रगाढ़ता से इस स्थिति का लाभ भारत को मिल सकता है. बादशाह और शहजादा से प्रधानमंत्री की निकटता भी एक सकारात्मक पहलू है.