पानी से रिश्ते का महापर्व

मिथिलेश कु. राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com दिवाली बीत गयी. अब छठ की तैयारी है. कक्का कहते हैं कि छठ में नदी, पोखर और ताल-तलैये के सुनहले दिन लौट आते हैं. वे ठीक ही कहते हैं. छठ का समय आता है, तो हम अपने आस-पास के नदी, नहरों और पोखर की साफ-सफाई और पानी की पवित्रता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2019 6:20 AM
मिथिलेश कु. राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
दिवाली बीत गयी. अब छठ की तैयारी है. कक्का कहते हैं कि छठ में नदी, पोखर और ताल-तलैये के सुनहले दिन लौट आते हैं. वे ठीक ही कहते हैं. छठ का समय आता है, तो हम अपने आस-पास के नदी, नहरों और पोखर की साफ-सफाई और पानी की पवित्रता का टोह लेने घर से निकल पड़ते हैं. घाट बनाने में जुट जाते हैं.
नदियों से हमारा रिश्ता पुराना है. हमारी प्राचीन सभ्यताएं किसी न किसी नदी के किनारे ही विकसित हुई हैं. यहां तक कि आधुनिक काल के शहर और तमाम गांव ने भी नदियों के किनारे बसना पसंद किया.
जिस गांव से नदी दूर थी, वहां नदी के छोटे रूपों पर काम किया गया और तालाब-पोखर खुदवाये गये. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि बिन पानी जीवन के बारे में कल्पना करना व्यर्थ था. लेकिन मनुष्य को जैसे-जैसे पानी का अन्य विकल्प मिलता गया, हमारी नजरों से नदियां और पोखर दूर होते गये. धीरे-धीरे वे इतने उपेक्षित हो गये कि देश में गंगा जैसी नदियों की पवित्रता मैली होकर बहने लगी.
यह हमारे पूर्वजों का हम पर किया एक उपकार ही है कि वे हमें एक ऐसा पर्व सौंप गये, जिसमें हम सालभर में कम-से-कम एक बार नदियों के किनारे आते हैं. पवित्र भाव से उनमें खड़े होकर अपने और अपने परिजनों की सलामती के लिए याचना करते हैं. इससे पहले उनकी साफ-सफाई करते हैं. छठ पर्व में शुचिता का पूरा ध्यान रखा जाता है और इसकी शुरुआत नदियां-पोखर के घाट की साफ-सफाई से ही होती है.
गांव के लोग इन दिनों सामूहिक सफाई अभियान पर कंधे पर कुदाल लेकर निकलते हैं और देखते ही देखते शैवाल से भरे पोखर और गंदी दिखनेवाली नदी के कुछ हिस्से का हुलिया बदलकर रख देते हैं. दिवाली, गोवर्धन पूजा और भैया-दूज के बाद छठ पर्व मनाने के लिए जो तीन-चार दिन का समय बचता है, उसमें घर की महिलाएं यानी व्रती जहां पूजा-अर्चना के इंतजाम में जुट जाती हैं, वहीं परिवार के पुरुष सदस्य के साथ किशोर और बच्चों का एक महत्वपूर्ण काम यह होता है कि वे नदी या पोखर के किनारे के अपने घाट की साफ-सफाई करें. छठ के अवसर पर घाट की सफाई को लेकर एक अनकही प्रतिस्पर्द्धा छिड़ जाती है कि किसका घाट सबसे अधिक साफ और सबसे सुंदर दिखता है.
परिवार के युवा पहले तो समूह में मिलकर पोखर-नदी में तैरते हैं और टोले के घाट के सामने से शैवाल व गंदगी को निकाल बाहर करते हैं. ऐसा करते ही पानी की स्वच्छ चमक लौट आती है और उसकी धार कल-कल करके बहने लगती है. इसके बाद हरेक परिवार अपना-अपना घाट छेंकते हैं और वहां से किसी भी तरह की गंदगी को हटाने में जुट जाते हैं.
एक ऐसा पर्व, जिसका संबंध पानी से हो- नदी, नहर या पोखर के पानी से. नदी, पोखर, पानी, पवित्रता आदि को मिलाकर क्या यह पर्व एक ऐसा दृश्य नहीं रचता है, जिसमें आम लोगों का ध्यान उन नदियों और पोखरों की तरफ लौटता है, जो या तो अपवित्र होकर मंथर बह रही हैं या जमी हुई हैं!

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