ध्यान रहे, लालच बुरी बला है
आलोक जोशी वरिष्ठ पत्रकार alok.222@gmail.com बचपन से बार-बार पढ़ते-सुनते रहे हैं कि लालच बुरी बला है. बच्चों को भी पढ़ाया, समझाया और अपने साथ काम करनेवालों को भी. जितना हो सका खुद भी पालन किया. नौकरी की, तो ऊपर की कमाई का लालच भी नहीं किया. किसी ने अपनी खुशी से दिया, रख लिया, मगर […]
आलोक जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
alok.222@gmail.com
बचपन से बार-बार पढ़ते-सुनते रहे हैं कि लालच बुरी बला है. बच्चों को भी पढ़ाया, समझाया और अपने साथ काम करनेवालों को भी. जितना हो सका खुद भी पालन किया. नौकरी की, तो ऊपर की कमाई का लालच भी नहीं किया. किसी ने अपनी खुशी से दिया, रख लिया, मगर किसी से मुंह खोल कर मांगा नहीं. इस चक्कर में किसी का काम भी नहीं अटकाया कि बददुआ मिले. आखिर ऊपर जाकर मुंह भी तो दिखाना है.
लेकिन एक जगह आकर बहुत से लोग फंस जाते हैं. क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि यह लालच है या बुरी बला है, या उससे भी खतरनाक शैतान का जाल है. यह जगह अमूमन आपके आस्पास का कोई कोऑपरेटिव बैंक, कोई चिटफंड कंपनी या कोई ज्वेलर हो सकता है. और कई मामलों में तो यह आपका जाननेवाला कोई दोस्त रिश्तेदार या व्यापारी भी हो सकता है.
भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में पिछले दिनों एक के बाद एक ऐसे हादसे हुए हैं, जिनसे यह बात याद आ रही है और अफसोस भी हो रहा है कि क्यों नहीं समझते हैं लोग, और क्यों सरकार और रिजर्व बैंक ऐसा इंतजाम नहीं कर पाते कि मध्यवर्ग या निम्न-मध्यवर्ग के लोग इस तरह मुसीबत में न फंसें.
पहला किस्सा हुआ पीएमसी बैंक का- रिजर्व बैंक ने इस बैंक के कामकाज पर रोक लगा दी. रोक का पहला असर होता है कि बैंक में जमा रकम निकल नहीं सकती. एक खातेदार को एक हजार रुपये तक निकालने की छूट दी गयी, हालांकि जल्दी ही यह बढ़कर पचास हजार हो गयी.
बैंक के बाहर लंबी लाइनें लगी रहीं और परेशान ग्राहक बेहाल और बीमार होने लगे. चार लोगों की मौत भी हो गयी. इनमें से एक सज्जन को ऑपरेशन के लिए पैसे की जरूरत थी, जो उनके खाते में था, लेकिन वह निकाल नहीं सकते थे. इस तकलीफ की कल्पना ही की जा सकती है. ऐसे कई उदाहरण हैं.
इस मामले में पेंच यह निकला कि बैंक ने एक फाइनेंस कंपनी डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनेंस को मोटा कर्ज दे रखा है, जिसके वापस मिलने की उम्मीद कम है, क्योंकि वह कंपनी बुरे हाल में आ गयी है. कंपनी के डायरेक्टरों पर हेराफेरी का इल्जाम भी है. वह कंपनी भी अपना फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी की स्कीम चलाती है. ऐसे करीब एक लाख लोग हैं, जिनकी रकम इस कंपनी के एफडी में फंसी हुई है और फिलहाल उसका मिलना मुश्किल ही लगता है.
इसके बाद मुंबई का ही एक और सिटी कोआॅपरेटिव बैंक है. इस पर पहले से ही आरबीआइ की नजर टेढ़ी थी. लेकिन वहां उम्मीद थी कि इसका पीएमसी बैंक के साथ विलय हो जायेगा. पीएमसी बैंक के मुसीबत में आते ही इसके ग्राहकों की मुसीबत और बढ़ गयी. इन सब के बीच खबर यह आयी कि गुडविन ज्वेलर्स ने मुंबई और आसपास के अपने दर्जनभर से ज्यादा शो रूमाें पर ताले लगा दिये हैं और मालिक लापता हैं. दुखद है कि वे भी हजारों लोगों का पैसा अपने साथ ले गये.
इन लोगों ने साल दो साल से या और ज्यादा वक्त से उनके पास अपना पाई-पाई जोड़ कर यह पैसा जमा किया था कि बाद में ग्यारह किस्तें देने पर बारह के बराबर या बाईस किस्तें देने पर चौबीस के बराबर के सोने-चांदी के जेवर मिलेंगे. दिवाली के ठीक पहले इन दुकानों पर लगा ताला कितने घरों के लिए दिवाला साबित हुआ होगा, सोचिये. इसके लिए सरकार, पुलिस, आरबीआइ सब जिम्मेदार हैं, जो ऐसे घोटालों को रोक नहीं पाते. घोटालेबाजों को सजा मिलनी चाहिए. लेकिन इतने से काम नहीं बनता. बात घूम कर वहीं आती है- लालच बुरी बला है.
हम और आप क्यों नहीं सोच पाते कि ऐसे बैंक में, ऐसी गोल्ड इंस्टॉलमेंट स्कीम में या ऐसी कंपनी में पैसा फंसाना लालच के हाथों बुद्धि को गिरवी रखना है. जो लोग फंस गये, उनकी मदद तो अब सरकार ही कर सकती है.
लेकिन, अब आप सावधान रहें. आप सिर्फ सावधान ही न रहें, अपने आसपास ऐसे लोगों को देखिए, जो संभवत: शिकार हो सकते हैं, उन्हें तुरंत सावधान करें. मसलन, घर की महिलाओं को विश्वास में लेकर पूछिए कि कहीं वे किसी ज्वेलर के यहां किश्तें तो नहीं भर रही हैं. उसके बजाय उनका बैंक में रिकरिंग खाता खुलवा दीजिए, ताकि वहां पैसा जमा भी हो और बढ़ता भी रहे.
अपने खातों को भी देख लें. अगर आपने अपनी सारी जमा पूंजी किसी कोऑपरेटिव बैंक में रखी हुई है, तो तुरंत जागिये. कम-से-कम आधी रकम किसी बड़े सरकारी बैंक में या बड़े प्राइवेट बैंक में रखिए. अगर कोऑपरेटिव नहीं भी है, तब भी अपना पूरा पैसा किसी एक बैंक में रखना समझदारी नहीं है.
खासकर परिवार के बुजुर्ग जो रिटायर हो चुके हों, उनसे बात कीजिए कि उनका फंड और ग्रेच्युटी का पैसा कैसे बैंक में कहां रखा है. उन्हें यह यकीन होना भी जरूरी है कि आप कहीं इस बहाने उनके पैसे पर नजर तो नहीं लगा रहे. अगर वे आपकी बात न मानते हों, तो जिस पर भरोसा करते हों, उनसे कहलवाएं.
इसके अलावा एक बहुत जरूरी काम यह है कि आप अपने घर में काम करनेवाली महिलाओं यानी बाई, ड्राइवर, माली, चौकीदार, सफाई कर्मचारी और अपने आसपास के सब्जी-भाजी वालों, प्लंबर, मैकेनिक वगैरह जो लोग आपके काम आते हैं, उन सबसे भी इस बारे में बात करके उन्हें जागरूक करिये. यह जागरूकता उनके लिए बहुत काम की बात होगी. हो सकता है कि वे किस बड़े खतरे से बच जायें और इसी बहाने आपको पुण्य कमाने का मौका भी मिल जाये.